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दुनिया में इंसान हो या जानवर कोई भी खाने के बिना रह सकता है लेकिन पानी बिना नहीं। इसलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि काले मुंह वाले बंदर, जिन्हें लंगूर कहते हैं, जब प्यास लगती है तो ये पानी की बजाय एक खास पेड़ की तलाश करते हैं।
ये पेड़ ऐसा होता है जो पसीना निकालता है और लंगूर उसी पसीने को चूसकर अपनी प्यास बुझाते हैं। पेंच टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में ऐसे लंगूर बहुतायत में पाए जाते हैं।
आइए जानते हैं कि ये पेड़ कैसे लंगूरों की प्यास बुझाने में मदद करता है।
🌳 मोपेन पेड़ का चमत्कार
पेंच टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में हजारों की संख्या में काले मुंह वाले बंदर रहते हैं। गर्मी के मौसम में जब पानी कम होता है, तो जानवर और इंसान पानी के स्रोतों जैसे तालाब, नदी या कुएं की तलाश करते हैं।
लेकिन लंगूरों का तरीका थोड़ा अलग होता है। वे मोपेन नाम के पेड़ को ढूंढते हैं, जो पसीना जैसा चिपचिपा पदार्थ निकालता है। ये पसीना सूखकर गोंद जैसा हो जाता है।
वनस्पति विशेषज्ञ का कहना है कि मोपेन पेड़ दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है, लेकिन पेंच और सतपुड़ा के जंगलों में भी इसकी अच्छी खासी मौजूदगी है।
इस पेड़ की पत्तियां तितली के आकार की होती हैं और इसकी फलियां गुर्दे जैसी होती हैं। गर्म, सूखे इलाके में ये पेड़ खूब उगता है। जब पेड़ से ये चिपचिपा रस निकलता है, तो लंगूर उसे चूसकर अपनी प्यास बुझाते हैं और अपने शरीर की पानी की कमी भी पूरी करते हैं।
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🌿 गोंद और पेड़ का पसीना
मोपेन पेड़ के अलावा भारत में भी कई पेड़ ऐसे हैं जो पसीने जैसा पदार्थ निकालते हैं और सूखने पर गोंद बन जाते हैं। जैसे बबूल, कत्था, धौरा, सेमल और नीम के पेड़। ये गोंद कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और दवाइयों में काम आते हैं।
लेकिन खास बात यह है कि लंगूरों को मोपेन पेड़ का पसीना सबसे ज्यादा पसंद आता है।
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🐒 काले मुंह वाले लंगूर और उनके साथी
काले मुंह वाले बंदरों का चेहरा काला होता है, जबकि लाल मुंह वाले बंदरों का चेहरा लाल या भूरे रंग का होता है। काले मुंह वाले बंदर अक्सर शहरों के पास के जंगलों में रहते हैं और इंसानों के संपर्क में रहना पसंद करते हैं। वहीं, लाल बंदर जंगलों में दूर-दूर रहते हैं और इंसानों से कम मिलते हैं।
वन विभाग के नियमों के अनुसार काले मुंह वाले बंदरों को पकड़कर वन क्षेत्र में छोड़ने के लिए विशेष ध्यान रखा जाता है। वहीं लाल बंदरों के लिए ऐसे नियम नहीं होते।
💡 इंसान और लंगूर की प्यास बुझाने की कहानी
जहां हम इंसान प्यास लगने पर सीधे पानी पीते हैं, वहीं लंगूर जैसे जानवरों की प्रकृति ने उन्हें अलग तरीका सिखाया है। जब जंगल में पानी कम होता है, तो ये अपने आप को जीवित रखने के लिए पेड़ों के पसीने का सहारा लेते हैं।
यह न केवल उनके शरीर की पानी की कमी पूरी करता है, बल्कि जंगल के जीवन चक्र को भी संतुलित रखता है।
इस तरह से प्रकृति ने हर जीव को अपने हिसाब से अनोखा तरीका दिया है जिससे वे अपने अस्तित्व को बनाए रख सकें। लंगूर और मोपेन पेड़ का यह संबंध प्रकृति की अद्भुतता का एक बेहतरीन उदाहरण है।
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