अधिकारियों पर रोब झाड़ता था चपरासी, कलेक्टर कार्यालय में भृत्य का दबदबा

जबलपुर के कलेक्टर कार्यालय के अंदर ही एक एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों ने एक कक्ष पर लंबे समय से कब्जा जमाया हुआ था। यह कर्मचारी स्वयंभू कंट्रोल रूम प्रभारी बना बैठा था, जिसकी भनक खुद जबलपुर जिला कलेक्टर तक को नहीं थी

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Jitendra Shrivastava
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नील तिवारी, JABALPUR. यूं तो आम भाषा में किसी भी काम के ढुलमुल रवैये पर तंज कसने के लिए "सरकारी ढर्रे" शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, पर जबलपुर में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने इन शब्दों को सच साबित करते हुए जिला प्रशासन सहित मीडिया कर्मियों को भी सकते में डाल दिया। दरअसल जबलपुर के कलेक्टर कार्यालय के अंदर एक कंट्रोल रूम है। यह कंट्रोल रूम तत्कालीन कलेक्टर के द्वारा कोरोना काल में स्थापित किया गया था। स्वास्थ्य संस्थानों और जनता के बीच सामंजस्य बनाने हेतु इस कंट्रोल रूम में कुछ समय के लिए एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी उमाशंकर अवस्थी को नियुक्त किया गया था। सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हुए इस कर्मचारी ने खुद को कंट्रोल रूम प्रभारी घोषित कर दिया और समय बीतते-बीतते इस झूठ को प्रशासनिक अधिकारियों सहित मीडिया कर्मियों ने भी ने सच मान लिया। इसका कारण यह था कि उमाशंकर अवस्थी अन्य कंट्रोल रूम प्रभारी की तरह मीडिया तथा अन्य विभाग को लगातार जानकारियां प्रेषित करता रहता था। समय के साथ ही इस कार्यालय में उसका रुतबा बड़ा और धीरे-धीरे वह खुद को सच में कंट्रोल रूम प्रभारी समझ बैठा। इस मामले की कलई खोलते ही जबलपुर जिला कलेक्टर ने तत्काल इस कंट्रोल रूम को ही बंद करा दिया है।

कथित कंट्रोल रूम प्रभारी बन शुरू किया दलाली का खेल

कोरोना कल में कंट्रोल रूम में बैठना शुरू करने वाले उमाशंकर अवस्थी ने कलेक्ट्रेट कंट्रोल रूम के नाम से 7 से 8 व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं और इन ग्रुप में वह लगातार कलेक्टर की सोशल मीडिया में अपलोड की जाने वाली जानकारियों सहित कुछ अखबारों की कॉपी पेस्ट स्क्रिप्ट और फोटो भी भेजने लगा, लगातार मिल रही जानकारी के फलस्वरूप मीडिया कर्मियों ने भी इसे सच में कंट्रोल रूम प्रभारी मान लिया। मीडिया और अन्य अधिकारियों की तो बात दूर तत्कालीन कलेक्टर के बाद जबलपुर जिले में आए सभी जिला कलेक्टर भी इसे कंट्रोल रूम प्रभारी ही मानते रहे। यह कर्मचारी बाकायदा किसी को मिल रहे सम्मान में जिला कलेक्टरों के साथ फोटो भी खिंचवाता रहा, जिससे अन्य लोगों को इसपर शक करने की कोई गुंजाइश नहीं थी। किसी भी प्रशासनिक कार्य को चुटकियों में करवाने के लिए इसका एक फोन कॉल ही काफी होता था। राजस्व विभाग में तो इसकी तूती बोलती थी जहां इसके मात्र एक फोन कॉल से महीनों में होने वाला काम मिनटों में हो जाता था। इसका कारण यह था किया फोन कर बताता था कि यह कलेक्टर कंट्रोल रूम से बात कर रहा है और फोन उठाने वाले अधिकारी और कर्मचारी कलेक्टर कार्यालय से आए हुए मौखिक आदेश की अवहेलना करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। धीरे-धीरे कलेक्टर कार्यालय मैं बने कंट्रोल रूम में उमाशंकर अवस्थी का पूरी तरह से कब्जा हो गया। यहां बाकायदा विभाग के कर्मचारियों और निवेदकों की बैठक होने लगी, सूत्रों ने बताया कि इन बैठकों में यह कर्मचारी मामले निपटाने के लिए दलाली का काम करता था। पर इस दौरान बाकी विभागों से सामंजस्य न बैठाना ही इस कर्मचारी को भारी पड़ गया और इसकी पोल खुल गई।

कैसे सामने आई सच्चाई

दरअसल कथित कलेक्टर कंट्रोल रूम प्रभारी करो धीरे-धीरे उमाशंकर अवस्थी के सर चढ़कर बोलने लगा। हद तो तब हो गई जब चुनाव ड्यूटी के दौरान एक नायाब तहसीलदार को इस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने दफ्तर में ही फटकार लगा दी, उसके बाद जबलपुर में मतदान संपन्न होने के बाद मतदान जागरूकता में अच्छा कार्य करने वाले लोगों का सम्मान इस कर्मचारी ने अपनी ही मर्जी से जिला कलेक्टर के द्वारा करवा दिया और इस सम्मान में वह खुद भी शामिल हो गया। इसने बाकायदा प्रशस्ति पत्र छपवाकर बाकी सच में सम्मान प्राप्त करने योग्य व्यक्तियों के बीच अपना भी नाम डलवा दिया और जिला कलेक्टर से सम्मान लेते हुए अपना फोटो बाकायदा मीडिया कर्मियों को बांटा और इसे खबर बनाने का निवेदन किया। इस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के द्वारा अन्य विभागों में तो रौब झाड़ा ही जाता था पर यह लगातार जनसंपर्क विभाग को भी दरकिनार कर रहा था। जिस सम्मान समारोह की सूचना मीडिया में देने की जिम्मेदारी जनसंपर्क विभाग की थी पर उसके बारे में जनसंपर्क विभाग को कोई जानकारी ही नहीं थी। वहीं जनसंपर्क विभाग में भी एक अधिकारी की वक्र दृष्टि काफी समय से उमाशंकर अवस्थी पर थी और शायद उसी का असर था की निर्वाचन आयोग की स्वीप टीम को इसकी शिकायत मिली और जब असलियत सामने आई तो पता चला कि उमाशंकर अवस्थी अधारताल के आदिमजाति छात्रावास में वाटरमैन के पद पर पदस्थ चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी है। 

आनन-फानन में बंद किए सारे फर्जी व्हाट्सएप ग्रुप

काम से ज्यादा सोशल मीडिया और सामाजिक संगठनों में एक्टिव रहने वाले इस भृत्य ने कलेक्टर कंट्रोल रूम के नाम से व्हाट्सएप पर 7 से 8 ग्रुप बना रखे थे। मामला कलेक्टर की नजर में आते ही इसने तुरंत सभी ग्रुप के मेंबर्स को रिमूव किया और सारे ग्रुप बंद कर दिए।

जिला कलेक्टर की आंखों में भी झोंक दी धूल

इस कर्मचारियों के कारनामों की शिकायत एक पूर्व कलेक्टर से भी की गई थी पर इसकी किस्मत ही कहें कि जांच के आदेश पर अमल होता है इससे पहले ही उनका ट्रांसफर हो गया और नए कलेक्टर के आते ही यह सम्मान से लेकर आवभगत तक में फिर से जुट गया। अब स्वीप में शिकायत मिलने के बाद जबलपुर जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कलेक्ट्रेट कार्यालय के अंदर स्थित इस कंट्रोल रूम को ही बंद कर दिया है और हैरानी की बात यह है कि जिला कलेक्टर सहित किसी को भी कानों-कान खबर नहीं थी कि यह चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी स्वयंभू कंट्रोल रूम प्रभारी बना हुआ है। अब देखना यह होगा कि इस चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के विभाग अध्यक्ष ने आज तक इसके ड्यूटी पर ना आने की सुध क्यों नहीं ली ? अब इसने अपने विभाग अध्यक्ष पर भी किसी तरह का दबाव बनाया था या किसी आदेश में फर्जीवाड़ा किया गया था। यह तो जांच का विषय है पर कलेक्ट्रेट कार्यालय में चपरासी के कंट्रोल रूम प्रभारी बनने सहित इसके रौब झाड़ने के किस्सों पर जमकर चटकारे लिए जा रहे हैं।

चपरासी कलेक्टर कार्यालय कंट्रोल रूम प्रभारी