तीस साल में बदल गई भारत की तस्वीर, अच्छे भोजन और पोषण से वजन और हाईट में आई तेजी

भारत, अमेरिका और यूरोप के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक शोध किया है। इस अध्ययन में 1992 से 2021 तक 5 लाख 5 हजार 26 शिशुओं के आंकड़े पांच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के माध्यम से जुटाए गए।

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CHAKRESH
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क्या भारतीय बच्चों का विकास पिछले तीन दशकों में बेहतर हुआ है? इस सवाल का जवाब अब हमारे सामने है। सागर से प्रकाशित एक नए अध्ययन ने बच्चों के शारीरिक विकास पर समय के साथ हुए परिवर्तनों का एक विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जो अंतरराष्ट्रीय जनरल में भी प्रकाशित हुआ है।

5 लाख बच्चों की स्टडी की गई

डॉ. राजेश के. गौतम (डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय) और डॉ. प्रेमानंद भारती (भारतीय सांख्यिकी संस्थान) के नेतृत्व में भारत, अमेरिका और यूरोप के शोधकर्ताओं ने मिलकर यह शोध किया। इस अध्ययन में 1992 से 2021 तक 5 लाख 5 हजार 26 शिशुओं के आंकड़े पांच राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों (NFHS) के माध्यम से जुटाए गए। परिणामों में खुलासा हुआ है कि शिशुओं के शरीर भार और लंबाई में लगातार सुधार हुआ है, लेकिन अब भी कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं। यह शोध केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है; यह भारत की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के साथ बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य में हो रहे बदलावों को भी रेखांकित करता है। आइए जानते हैं कि कैसे भारत ने बाल कुपोषण से लड़ने की दिशा में लंबी दूरी तय की है और किन नीतिगत कदमों की अभी भी आवश्यकता है।

भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था की संवृद्धि और पोषण स्थिति पर तीन दशकों के गहन शोध के निष्कर्ष सामने आए हैं। यह अध्ययन प्रतिष्ठित यूरोपियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन का नेतृत्व डॉ. राजेश के. गौतम (डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर) और डॉ. प्रेमानंद भारती (भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता) ने किया। अध्ययन में 1992 से 2021 के बीच  5 लाख 5 हजार 26 बच्चों के शरीर संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।

क्या निकला इस रिपोर्ट में…

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1. शरीर भार (Weight) में सुधार

  • सभी आयु समूहों में औसत शरीर भार में लगातार वृद्धि हुई।
  • 18-23 माह के बच्चों में औसत वजन वृद्धि सबसे अधिक (0.9 किलोग्राम) दर्ज की गई।
  • 0-6 माह के शिशुओं में लड़कों ने 1.9 किलोग्राम और लड़कियों ने 1.7 किलोग्राम वजन बढ़ाया।
  • लड़कों का औसत वजन हर आयु वर्ग में लड़कियों से अधिक पाया गया, जिसमें अधिकतम अंतर 6-8 माह की उम्र में (0.8 किलोग्राम) था।

2. लंबाई (Height) में सुधार

  • सभी आयु समूहों में औसत लंबाई में वृद्धि हुई।
  • 18-23 माह के बच्चों में 3 सेमी की लंबाई वृद्धि दर्ज हुई।
  • 36-47 माह के लड़कों में 5.2 सेमी और लड़कियों में 5.5 सेमी की वृद्धि देखी गई।
  • लंबाई के मामले में भी लड़कों की औसत लंबाई हर आयु वर्ग में लड़कियों से अधिक रही।

अध्ययन में बच्चों के शारीरिक विकास में सुधार और भारत की आर्थिक प्रगति के बीच संबंध स्थापित किया गया। यानि उदारीकरण के कारण देश में पैसे का फ्लो बढ़ा, जिसके कारण कई महत्तवपूर्ण बदलाव हुए, जैसे…

•    1991 में आर्थिक सुधारों के बाद गरीबी दर में कमी आई और जीवन स्तर में सुधार हुआ।
•    भारत की GDP वृद्धि दर 2005 से 2010 के बीच 1.8% से 2.7% हो गई।
•    प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 1990-91 में ₹6,126 थी, जो 2020-21 में बढ़कर ₹1 लाख 26 हजार 855 हो गई।
•    2010-2012 के बीच लगभग 85 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे।
•    2015-16 में 21% आबादी पोषण की दृष्टि से वंचित थी, जो 2019-21 में घटकर 11.8% रह गई।
•    स्वच्छता और आवास सुविधाओं में भी सुधार हुआ, 2015-16 में वंचित आबादी 21.1% और 23.5% थी, जो 2019-21 में घटकर 11.3% और 13.6% रह गई।

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नीतिगत सिफारिशें भी

इस अध्ययन ने बाल पोषण सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तुत की हैं:

  • मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करना।
  • खाद्य सुरक्षा और विविध आहार सुनिश्चित करना।
  • स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना।
  • पर्यावरण-अनुकूल खेती और खाद्य उत्पादन में सुधार।
  • सरकारी योजनाओं के माध्यम से पोषण संबंधी पूरक आहार की उपलब्धता।
  • पोषण जागरूकता अभियान चलाना ताकि समाज में पोषण से जुड़ी समझ विकसित हो सके।

शोध में योगदान देने वाले संस्थान और विशेषज्ञ:

इस अध्ययन में कई प्रमुख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं ने योगदान दिया:

  • डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, भारत
  • भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता, भारत
  • पश्चिम बंगाल स्टेट यूनिवर्सिटी, कोलकाता, भारत
  • एडम मिकिविज़ विश्वविद्यालय, पोलैंड
  • यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, ऑस्टिन, अमेरिका
  • यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविले, अमेरिका

इस अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत ने पिछले तीन दशकों में बच्चों के पोषण और संवृद्धि में महत्वपूर्ण प्रगति की है। हालाँकि सुधार हुआ है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अब भी बरकरार हैं, जिनका समाधान नीतिगत सुधारों और प्रभावी कार्यक्रमों से किया जा सकता है। यह अध्ययन नीतिनिर्माताओं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के लिए एक उपयोगी मार्गदर्शिका के रूप में कार्य कर सकता है।

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