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Photograph: (THESOOTR)
BHOPAL. भारतीय विज्ञापन जगत के जादूगर, पद्मश्री पीयूष पांडे नहीं रहे, लेकिन उनकी क्रिएटिविटी हमेशा जिंदा रहेगी। अगर किसी ने सचमुच मध्यप्रदेश को 'हिंदुस्तान का दिल' बनाकर पूरी दुनिया के सामने पेश किया तो वह पीयूष पांडे ही थे। उन्होंने अपने प्रभावी स्लोगनों से प्रदेश के पर्यटन को ब्रांड बना दिया।
वर्ष 2006 में जब मध्यप्रदेश सरकार ने 'हिन्दुस्तान का दिल देखो' अभियान शुरू किया तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह लाइन आगे चलकर प्रदेश के पर्यटन की पहचान बन जाएगी।
उस वक्त ओगिल्वी एंड मेथर (Ogilvy) के क्रिएटिव हेड रहे पीयूष पांडे ने मध्यप्रदेश की मिट्टी, उसके रंग, उसकी आत्मा को विज्ञापनों में इस तरह उतारा कि देखने और पढ़ने वाला हर व्यक्ति खुद को उस यात्रा का हिस्सा महसूस करने लगा था। उनके बनाए विजुअल्स, बैकग्राउंड म्यूजिक और संवादों ने मध्यप्रदेश को दिल से जुड़ा प्रदेश बना दिया।
दिल से सोचने वाला विज्ञापनकार
एड गुरु पीयूष पांडे वो इंसान थे, जिन्होंने 2006 के 'हिन्दुस्तान का दिल देखो' से लेकर 2023 के 'जो आया सो वापस आया' तक मध्यप्रदेश टूरिज्म (मध्य प्रदेश पर्यटन) के करीब-करीब सभी टीवी विज्ञापनों में जान डाल दी। उन्होंने एमपी टूरिज्म को वैश्विक कैनवास पर उकेर दिया।
पीयूष की सबसे बड़ी खूबी थी कि वे सच्चाई में यकीन रखते थे। उन्होंने कभी मध्यप्रदेश लिए किसी सेलिब्रिटी को नहीं चुना। उन्हें विश्वास था कि प्रदेश की खूबसूरती खुद अपनी सबसे बड़ी ब्रांड एंबेसडर है।
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हर अभियान में एमपी का दिल
पीयूष की हर टैगलाइन, हर कैंपेन मध्यप्रदेश की आत्मा को बयां करता था। उनके शब्दों में रंग थे और दृश्य में मध्यप्रदेश की संस्कृति की खुशबू। उन्होंने मंदिरों की छाया, जंगलों की हरियाली, नर्मदा की लहरों और गांवों की मुस्कानों को अपने विज्ञापनों में इस तरह पिरोया कि वह सिर्फ पर्यटन नहीं, एक भावनात्मक जुड़ाव बन गया।
पीयूष ने डिजाइन किए ये कैंपेन...
👉 2006- हिन्दुस्तान का दिल देखो: इस स्लोगन ने एमपी को पूरे देश में दिल की तरह स्थापित कर दिया। |
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क्रिएटिव गुरु की विरासत
पीयूष पांडे सिर्फ एक विज्ञापनकार नहीं, कला और भावनाओं के शिल्पकार थे। उन्होंने ब्रांड को प्रोडक्ट से नहीं, दिल से जोड़ा। उनका मानना था कि भारत को बेचो नहीं, उसे महसूस कराओ। मध्यप्रदेश उनके लिए एक जीवंत कैनवास था, जहां हर कोना, हर रंग, हर आवाज अपनी कहानी कहती थी।
पीयूष के विज्ञापनों ने सरकारी प्रचार की भाषा को पूरी तरह बदल दिया। सूखे स्लोगनों और डाटा के बजाय उन्होंने उसमें अपनापन, संगीत और मुस्कान घोली। लोगों ने पहली बार किसी प्रदेश को महसूस किया और जिया।
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