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Photograph: (the sootr)
Jaipur. विज्ञापन की दुनिया के दिग्गज और मशहूर स्लोगन अबकी बार मोदी सरकार... बनाने वाले एड गुरु पीयूष पांडे का 70 वर्ष की आयु में गुरुवार को मुंबई में निधन हो गया। वे लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से जूझ रहे थे। उनके निधन के बाद देशभर के विज्ञापन जगत, राजनीतिक संवाद और मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विज्ञापन उद्योग के दिग्गजों तक, सभी ने उन्हें भारतीय विज्ञापन संस्कृति का चेहरा बताया।
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पृष्ठभूमि व शुरुआती जीवन
पीयूष पांडे का जन्म राजस्थान के जयपुर में 1955 में हुआ था। वे सेंट जेवियर स्कूल में पढ़े। दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। राजस्थान से रणजी ट्रॉफी में क्रिकेट भी खेला था। गीतकार प्रसून पांडे उनके भाई हैं। अभिनेत्री और गायिका इला अरुण, फिल्म और थियेटर अभिनेत्री तथा लेखिका रमा पांडे और लेखिका तृप्ति पांडे बहन हैं।
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तीन दशक तक विज्ञापन बनाए
पीयूष पांडे प्रारंभिक शिक्षा के बाद आगे चलकर विज्ञापन उद्योग से जुड़े और अपने अनोखे दृष्टिकोण, देसी संवेदनाओं और लोकभाषा के प्रयोग से विज्ञापन जगत में एक नई क्रांति लेकर आए। वे 27 साल की उम्र में विज्ञापन कंपनी ओगिल्वी (Ogilvy) से जुड़े और अगले तीन दशकों में भारत को ऐसे यादगार विज्ञापन दिए, जो सिर्फ ब्रांडिंग ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान बन गए।
विज्ञापन जगत के लिविंग लीजेंड
पीयूष पांडे के निधन के साथ भारतीय विज्ञापन उद्योग के एक स्वर्णिम युग का समापन हो गया। लोगों के दिल को छू लेने वाले विज्ञापनों के जरिए ब्रांड को भावनाओं से जोड़ने की कला पांडे को लीजेंड बनाती है। उनकी भाषा हमेशा लोगों की संवेदना से जुड़ी रही, जमीन से जुड़ी, आम बोलचाल वाली और भारतीयता से भरपूर रही।
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50 दिनों में बना सबसे सफल राजनीतिक कैंपेन
उन्होंने अबकी बार मोदी सरकार (Abki Baar Modi Sarkar) के स्लोगन को सिर्फ एक राजनीतिक स्लोगन नहीं, बल्कि जनभावना का नारा बना दिया। यह पहली बार था, जब किसी चुनावी कैम्पेन ने विज्ञापन-भाषा में आम लोगों की बोलचाल को केंद्र में रखा। यह स्लोगन साल 2014 में महज 50 दिनों में बनाया गया था।
उनके यादगार विज्ञापन
फेविकोल के ट्रक वाला एड उन्होंने साल 2007 में बनाया, जो देश का मजबूती का प्रतीक बना। वहीं कैडबरी-कुछ खास है जिंदगी में 2007 में आया, जिसने खुशी को इंसानी अहसास दिया। एशियन पेंट्स-हर घर कुछ कहता है में घरों को भावनाओं से जोड़ा। वोडाफोन-पग वाले विज्ञापन में कनेक्टिविटी को विश्वास से जोड़ा। साल 2014 में BJP-अबकी बार मोदी सरकार को चुनावी प्रचार का चेहरा बना दिया।
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पांडे कैसे बने ब्रांड-क्रिएटिविटी के बादशाह?
​पीयूष पांडे ने अपने विज्ञापनों में भारतीयता (Indianness) को ग्लोबल फ्रेम में परोसा। उन्होंने लोकभाषा की ताकत समझी। कहानी को विज्ञापन के ऊपर रखा। दिखावे की बजाय अनुभूति पैदा की। उन्होंने विज्ञापन को संवाद का माध्यम बनाया, सिर्फ संदेश तक सीमित नहीं रहे। इन खूबियों ने उन्हें ब्रांड-क्रिएटिविटी का बादशाह बनाया।
सम्मान और उपलब्धियां
पद्मश्री (2016)
LIA लीजेंड अवॉर्ड (2024)
ओगिल्वी ग्लोबल चेयरमैन का पद
मिले सुर मेरा तुम्हारा... में रचनात्मक योगदान
दो बूंद जिंदगी की... जैसी सार्वजनिक जागरुकता मुहिम
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उद्योग पर असर और विरासत
पीयूष पांडे सिर्फ विज्ञापनकर्ता नहीं थे, वे आभार और अभिव्यक्ति की उस भाषा के निर्माता थे, जिसे आज पूरा देश बोलता है। उनके जाने से इंडस्ट्री में जो खालीपन आया है, उसकी भरपाई लंबे समय तक संभव नहीं होगी। अपने शानदार विज्ञापनों के जरिए पांडे हमेशा याद किए जाते रहेंगे। पीएम मोदी समेत देश और दुनिया भर की शख्सियतों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
160 करोड़ की संपत्ति के मालिक
विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2025 में पीयूष पांडे की अनुमानित संपत्ति लगभग 160 करोड़ रुपए थी। विज्ञापन के अलावा उन्होंने फिल्मों और संगीत में भी योगदान दिया। वर्ष 2013 में उन्होंने जॉन अब्राहम की फिल्म मद्रास कैफे से अभिनय की शुरुआत की। वे आईसीआईसीआई बैंक के मैजिक पेंसिल प्रोजेक्ट वीडियो में भी नजर आए। उन्होंने गीत मिले सुर मेरा तुम्हारा... के बोल लिखे, जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना। फिल्म भोपाल एक्सप्रेस की पटकथा में भी उन्होंने सहयोग दिया।
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