पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में राजस्थान तीसरे नंबर पर, मध्यप्रदेश में 500 तो छत्तीसगढ़ में 350 फीसदी का इजाफा

जीवन के लिए जरुरी होने के बाद भी लोग पर्यावरण का चीरहरण करने में लगे हुए है। हाल ही में आई एनसीआरबी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है पर्यावरण के प्रति अपराध करने में लोग बिल्कुल संजीदा नहीं हैं।

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Arun Tiwari
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Raipur. जीवन के लिए जरुरी होने के बाद भी लोग पर्यावरण का चीरहरण करने में लगे हुए है। हाल ही में आई एनसीआरबी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है पर्यावरण के प्रति अपराध करने में लोग बिल्कुल संजीदा नहीं हैं। Environmental Offenses यानी पर्यावणीय अपराध में राजस्थान पूरे देश की सूची में नंबर तीन पर है। हालांकि तीन साल में उसके ग्राफ में मामूली सी कमी आई है। वहीं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का ग्राफ तेजी से उपर गया है। इन दोनों राज्यों में साढ़े तीन सौ से पांच सौ फीसदी तक का इजाफा हुआ है। लोगों का पर्यावरण के प्रति बर्ताव भले ही अशुद्ध हो लेकिन उनको हवा,पानी तो बिल्कुल शुद्ध चाहिए।   

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पर्यावरण का चीरहरण  :

धरती मां कराह रही है, नदियां सूख रही हैं, जंगल सिसक रहे हैं और हवा का दम घुट रहा है। लेकिन इसका सबसे बड़ा लाभार्थी इंसान ही पर्यावरण का सबसे बड़ा अपराधी भी बन चुका है। ताज़ा एनसीआरबी रिपोर्ट 2023 ने एक बार फिर यह सच्चाई सामने रख दी है कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता सिर्फ भाषणों और फोटो अभियानों तक सीमित रह गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में पर्यावरणीय अपराधों (Environmental Offences) में राजस्थान तीसरे स्थान पर है।

हालांकि बीते तीन वर्षों में वहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के मामलों में करीब 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। मध्यप्रदेश में पिछले तीन वर्षों के भीतर ऐसे मामलों में 500 फीसदी तक का इजाफा दर्ज हुआ है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह बढ़ोतरी 350 फीसदी से अधिक रही है। आंकड़ों के मुताबिक, इन राज्यों में अवैध खनन, जंगलों की कटाई, नदियों में प्रदूषण फैलाने और अपशिष्ट निस्तारण जैसे अपराधों में सबसे अधिक उछाल आया है। यानी विकास की दौड़ में इंसान ने प्रकृति की सांसें ही छीन ली हैं।

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यह है तीनों राज्यों की स्थिति : 

एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह पर्यावरणीय अपराध सिर्फ दर्ज मामलों के आधार पर दिखाए गए हैं। लेकिन जानकार कहते हैं कि पर्यावरण को नुकसान तो इनसे कहीं ज्यादा हैं। विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना भी एक तरह का अपराध है। विकास की कीमत हमारा पर्यावरण ही चुका रहा है। गंगा में पीने लायक पानी नहीं है, धूल,धुआं और शोर ने हवा को विषैला कर दिया है। सड़क बनाने के लिए पेड़ काटे जा रहे है। इस रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में पर्यावरणीय अपराधों का आंकड़ा 7794 है। मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा 358 और छत्तीसगढ़ में 229 है।

तीन साल में इतना इजाफा : 

NCRB report के अनुसार पिछले तीन साल यानी 2021, 2022, 2023 में पर्यावरणीय अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हालांकि राजस्थान में मामूली सी कमी आई है। राजस्थान के लिए यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक इसलिए है क्योंकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो जंगल हैं लेकिन राजस्थान इस तरह के घने जंगलों से महरुम है। आइए आपको बताते हैं तीन सालों में तीनों राज्यों की पर्यावरणीय अपराधों में क्या स्थिति रही।    
राजस्थान : साल 2021 में यहां पर्यावरणीय अपराधों का आंकड़ा 9387 था। साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 9529 हो गया। 2023 में यह नंबर घटकर 7794 हो गए। यानी राजस्थान 16 फीसदी की कमी आ गई। 

मध्यप्रदेश : साल 2021 में यहां पर्यावरणीय अपराधों का आंकड़ा 59 था। साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 79 हो गया। 2023 में यह नंबर बढ़कर 358 हो गए। यानी मध्यप्रदेश में 500 फीसदी का इजाफा हो गया। 

छत्तीसगढ़ :  साल 2021 में यहां पर्यावरणीय अपराधों का आंकड़ा 51 था। साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 87 हो गया। 2023 में यह नंबर बढ़कर 229 हो गए। यानी छत्तीसगढ़ में 349 फीसदी का इजाफा हो गया। 

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पर्यावरणीय अपराधों में इन कानूनों का उल्लंघन : 

अब हम आपको बताते हैं कि पर्यावरणीय अपराधों से क्या ताल्लुक है। वे कानून जिनके उल्लंघन पर मामला दर्ज होता है और यह पर्यावरण अपराधों की श्रेणी में आते हैं। फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट,वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, द इन्वायरमेंटल एक्ट, द एयर एंड द वॉटर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन एक्ट,द सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट एक्ट,नॉइज पॉल्यूशन एक्ट,एनजीटी एक्ट, एनवायरमेंटल संबंधी एक्ट। इन सभी कानूनों के उल्लंघन के आधार पर लोगों पर मामला दर्ज होता है। इन तीनों राज्यों में सबसे ज्यादा नोइज पॉल्यूशन के मामले दर्ज हैं। इन राज्यों में अवैध खनन, जंगलों की कटाई, नदियों में प्रदूषण फैलाने और अपशिष्ट निस्तारण जैसे अपराधों में सबसे अधिक उछाल आया है। यानी विकास की दौड़ में इंसान ने प्रकृति की सांसें ही छीन ली हैं।

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