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कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी) द्वारा रुके हुए पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का रिजल्ट लंबी जद्दोजहद और चर्चा के बाद आखिरकार बुधवार 12 मार्च को जारी कर दिया गया। इसमें 87 फीसदी फॉर्मूले के तहत अभी 6 हजार 446 सिपाही की भर्ती हुई है और बाकी पद होल्ड हो गए हैं। इस तरह पीएससी और ईएसबी की एक और परीक्षा में 13 फीसदी पद होल्ड पर चले गए।
87-13 फीसदी कब और कैसे लागू हुआ
87-13 फीसदी का फॉर्मूला मप्र में जीएडी द्वारा जारी किया था। इसके बाद जनवरी 2023 में इसे ईएसबी पर भी लागू कर दिया गया। यह तब हुआ जब हाईकोर्ट ने कुछ याचिकाओं पर शासन को आदेश दिए कि वह 14 फीसदी से ज्यादा ओबीसी आरक्षण नहीं दें। इसके बाद जीएडी और विधि विभाग में लंबी चर्चा के बाद रुके हुए रिजल्ट (क्योंकि मप्र में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का विधानसभा से एक्ट पास है) को जारी करने के लिए नया तरीका अपनाया और 27 फीसदी ओबीसी पदों में 14 फीसदी को मूल रिजल्ट क्राइटेरिया में रखा और 13 फीसदी को प्रोविजनल में रख दिया। तय हुआ कि यदि ओबीसी के पक्ष में कानूनी फैसला आता है तो यह 13 फीसदी पद उन्हें दे दिए जाएंगे, नहीं तो यह अनारक्षित कैटेगरी में चले जाएंगे। तब तक 13 फीसदी पदों पर ओबीसी और अनारक्षित दोनों को चुनेंगे और यह रिजल्ट बंद लिफाफे में रहेगा।
अब सिपाही रिजल्ट के मायने क्यों खास
28 जनवरी को यूथ फॉर इक्वलिटी की याचिका डिसमिस होने के बाद यह सवाल उठा कि 87-13 फीसदी फॉर्मूले की वैधता खत्म हो गई और अब 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण मिलेगा। हाईकोर्ट में भी मप्र शासन ने कहा कि हम ओबीसी को 27 फीसदी देना चाहते हैं। पूरे फरवरी माह में असमंजस का दौर था, इसी के चलते सिपाही रिजल्ट रोक लिया गया और इसे लेकर सीएम, सीएस, जीएडी, एजी ऑफिस, विधि विभाग और पीएचक्यू, ईएसबी के बीच 40 दिन तक चर्चा चली है। ऐसे में समझा जा सकता है कि सिपाही रिजल्ट क्यों इतना खास था। क्योंकि इसी रिजल्ट से ही 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण की दशा और दिशा तय होना थी, यदि इसके लिए मप्र शासन सहमत हो जाता कि 27 फीसदी ओबीसी के साथ 100 फीसदी रिजल्ट देना है तो फिर बाकी होल्ड 13 फीसदी रिजल्ट की विंडो खुल जाती और साथ ही आगे भी 100 फीसदी रिजल्ट जारी होता वह भी 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ। यह जरूर है कि इसी दौरान पीएससी ने असिस्टेंट प्रोफेसर से लेकर राज्य सेवा परीक्षा 2025 प्री और 2024 मेंस का रिजल्ट 87-13 फीसदी पर ही जारी किया।
क्या रही अड़चन, क्या हुआ बैठकों में
जो 40 दिन तक उच्च स्तर पर चर्चा चली, इसमें सही बात तो यह है कि एजी ऑफिस ने तो कोई विधिक सलाह कागज पर दी ही नहीं, जो भी कहा मौखिक ही ईएसबी और जीएडी को बताया। वहीं ईएसबी ने जरूर अपने अधिवक्ताओं का एक पैनल बनाया और इनसे लिखित में सलाह ली, जो घुमावदार आई लेकिन कुल मिलाकर यही माना कि 27 फीसदी देने में तो इश्यू आते हैं लेकिन यदि 87-13 फीसदी पर चलते रहे तो कोई तकनीकी बाधा इसमें नहीं है। कुल मिलाकर सभी विभागों के बीच यह बात आम राय से आई कि अभी भी 14 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने पर कुछ याचिकाओं के चलते रोक है, वहीं कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी है, जिसमें केस चल रहा है। ऐसे में यदि रिजल्ट 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ 100 फीसदी दिया और भर्ती दे दी, कल को किसी भी कारण से इसमें रोक लग गई तो इसके बाद तो कानूनी केस की बाढ़ आ जाएगी क्योंकि जिन्हें बाहर करेंगें वह सब हाईकोर्ट जाएंगे और स्टे लेंगे, विभाग की पूरी भर्ती ही विवादों में आ जाएगी। साथ ही मप्र शासन की जमकर भद पिटेगी, ऐसे में सुरक्षित चलना ही सबसे बेहतर है। इसके बाद यह रिजल्ट जारी किया गया।
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फिर 87-13 कैसे खत्म होगा, रिजल्ट कब आएगा
जबलपुर हाईकोर्ट में यूथ फार इक्वलिटी की याचिका के बाद मुद्दा उठा था कि 87-13 नासूर खत्म हो जाएगा, लेकिन यह बना हुआ है। अब बात यह है कि यह खत्म कैसे होगा और 13 फीसदी रिजल्ट कैसे जारी होगा। तो इसका सीधा जवाब है कि जब तक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट मप्र सरकार को सीधा आदेश नहीं दें कि 27 फीसदी आरक्षण जिसका विधानसभा में एक्ट पास है उसे लागू किया जाए, तब तक मप्र सरकार यह नहीं देने वाली है। भले ही किसी भी याचिका के खारिज होने से कानूनी जानकार कुछ भी मतलब निकाले उससे फर्क नहीं पड़ने वाला है, मप्र सरकार को सीधा आदेश चाहिए कि 14 फीसदी से ज्यादा ओबीसी आरक्षण देने पर लगी रोक हटाई जाती है, तब सरकार 27 फीसदी देगी और 13 फीसदी पद तभी अनहोल्ड होंगे।
हद तो देखिए 2019 तक के उम्मीदवार अटके हैं
हद तो यह है कि 100 फीसदी रिजल्ट पूर्व के 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने के साथ कोई रोक नहीं है। वहीं मप्र सरकार का एक्ट 27 फीसदी पर पास है, खासकर यूथ फार इक्वलिटी की याचिका खारिज होने के बाद उन्हें और कानूनी मजबूती मिली है। लेकिन वह 14 फीसदी के साथ या फिर 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ दोनों ही तरीके से 100 फीसदी रिजल्ट देने को तैयार नहीं है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार में भी यह इश्यू है लेकिन वह 100 फीसदी के साथ रिजल्ट दे रहा है। इस तरह का अजीबोगरीब फॉर्मूला सीट होल्ड करने का कहीं पर नहीं है। हालत यह है कि राज्य सेवा परीक्षा 2019 से ही यह पद रुके हुए हैं, इसके बाद तो राज्य सेवा परीक्षा 2021, 2022 की भी भर्ती हो गई और अब 2023 व 2024 के इंटरव्यू होने वाले हैं। यानी 2019 के चयनित डिप्टी कलेक्टर तो अब पदोन्नत होकर संयुक्त कलेक्टर बनने वाले हैं और उधर सैंकड़ों उम्मीदवारों को यह पता ही नहीं कि वह चयनित हुए या नहीं, उनका लिफाफा तो बंद पड़ा हुआ ।
इतनी देरी यह तो चयनितों के साथ अन्याय है
सबसे बड़ा सवाल जिनका चयन नहीं होता है वह तो ठीक है, लेकिन जो चयनित होते हैं उनका क्या होगा। क्या उन्हें सीनियरिटी मिलेगी, इतने साल नौकरी, वेतन चयनित होने के बाद भी नहीं। तो जब भी इनका रिजल्ट जारी कर इन्हें चयनित बताया जाएगा क्या उनके सात अन्याय नहीं होगा। वहीं हजारों, लाखों उम्मीदवार जो 13 फीसदी के फेर में ना कापियां देख पा रहे हैं, ना नंबर पता है, उनके साथ यह मानसिक प्रताड़ना नहीं है। कोई भी उम्मीदवार जो बंद लिफाफे में चयनित है वह इन खामियों के लिए जो उसने की ही नहीं, वह क्यों परेशान हो रहा है, उसे तो सरकारी नौकरी करनी थी। यदि कोई कल को कोई गलत कदम उठाता है और बाद में आता है कि वह तो डिप्टी कलेक्टर था तो इसका जवाबदार कौन होगा। सिस्टम लेकिन सिस्टम यानी किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं किसी को कोई सजा नहीं, क्योंकि सिस्टम का कोई चेहरा नहीं होता।
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