मध्य प्रदेश के बजट में विकास के सिर्फ वादे, 500+ प्रोजेक्ट्स, करोड़ों की घोषणाएं, फंड के नाम पर सिर्फ टोकन मनी

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने कई बड़े प्रोजेक्ट्स का ऐलान किया, लेकिन उनके लिए सही फंड की व्यवस्था नहीं की गई है। घोषणाएं तो बहुत हैं, लेकिन जनता को फायदा कब मिलेगा, यह सवाल है।

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Ramanand Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने एक बार फिर विकास को कागजों तक सीमित कर दिया है। विधानसभा से मंजूर दूसरा अनुपूरक बजट में करोड़ों रुपए के सैकड़ों प्रोजेक्ट शामिल किए गए, लेकिन प्रोजेक्टस के लिए वास्तविक फंड की व्यवस्था नहीं की गई। नतीजा घोषणाएं तो खूब हुई, लेकिन काम नदारद है। 

जनता की जरूरतें पीछे, नेताओं की मांगें आगे

सरकार का फोकस साफ दिखता है। आम जनता की जरूरतों से ज्यादा विधायकों, मंत्रियों और भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधियों की सिफारिशों को तरजीह दी गई। पीडब्ल्यूडी से जुड़े 500 से अधिक प्रोजेक्ट इसी राजनीतिक दबाव का नतीजा बताए जा रहे हैं। 13,476 करोड़ का अनुपूरक बजट, लेकिन असली खर्च 25,000 करोड़ से ज्यादा है। 

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घाटे का सच छुपाने की कवायद?

डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा द्वारा पेश 13,476 करोड़ रुपए के द्वितीय अनुपूरक अनुमान में सड़क, पुल, फ्लाईओवर और भवनों की लंबी फेहरिस्त है। अगर इन सभी प्रोजेक्ट्स को पूरा किया जाए, तो सरकार पर 25 हजार करोड़ रुपए से अधिक का बोझ आएगा। फिलहाल सरकार ने सिर्फ नाम जोड़कर जिम्मेदारी आगे खिसका दी है।

करोड़ों के काम, शुरुआत के लिए भी रकम नहीं

भीकनगांव-झिरन्या मार्ग पर 37.50 करोड़ का पुल हो या उमरिया में सोन नदी पर 44.77 करोड़ का निर्माण-हर जगह कहानी एक जैसी है। लागत तय है, मंजूरी है, लेकिन फंड नहीं। उज्जैन, श्योपुर, डबरा, पठारी से लेकर सांची और नीमच तक यही हाल है।

रेस्ट हाउस और विश्राम गृह भी ‘घोषणा मोड’ में

सांची सर्किट हाउस, वीरसिंहपुर विश्राम गृह, रामपुरा रेस्ट हाउस और उन्हेल विश्राम गृह-इन सभी के लिए लागत तय कर दी गई है। लेकिन सवाल वही है-पैसा कब मिलेगा?

छोटे कामों की भी वही दुर्दशा, हर योजना में अधूरापन

स्थानीय पंचायत अनुदान, 15वें वित्त आयोग की राशि, नहर परियोजनाएं और स्मार्ट पीडीएस जैसी योजनाओं के लिए रकम दिखाई जरूर गई है, लेकिन ज़मीनी असर को लेकर संदेह बरकरार है। उपार्जन संस्थाओं के लिए 2 हजार करोड़ की घोषणा भी सवालों के घेरे में है।

100 करोड़ की योजना, बजट में सिर्फ 100 रुपए

अशोकनगर बायपास, तराना टू-लेन, सुरजनपुर कॉलेज रोड, उज्जैन और जबलपुर के फ्लाईओवर-करोड़ों की लागत वाले प्रोजेक्ट्स के सामने बजट कॉलम में महज 100 रुपए दर्ज हैं। इसे विकास नहीं, आंकड़ों की बाजीगरी कहा जा रहा है।

फोरलेन, बायपास और फ्लाईओवर सिर्फ फाइलों में

भोपाल ज्यूडिशियल एकेडमी रोड, मंदसौर पुल-पुलिया, दमोह-पथरिया बायपास, नर्मदा पुल कनेक्टिविटी और ग्वालियर एयरपोर्ट फोरलेन-हर योजना कागजों में दौड़ रही है, ज़मीन पर नहीं।

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निष्कर्ष: बजट मंजूर, भरोसा नामंजूर

द्वितीय अनुपूरक बजट ने सरकार की प्राथमिकताओं को उजागर कर दिया है। प्रोजेक्ट्स की भरमार है, लेकिन फंड का टोटा। सवाल यही है-क्या ये योजनाएं कभी धरातल पर उतरेंगी, या फिर विकास सिर्फ बजट दस्तावेजों तक सीमित रह जाएगा?

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