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प्रशासनिक मशीनरी की सबसे महत्तवपूर्ण कड़ी कोटवारों के हक- अधिकारों के साथ एक बार फिर बड़ा खेला हो गया। बड़ी मुश्किलों के बाद उनके लिए जो वर्दी- भत्ता शुरू हुआ था, उसे नियमों को ताक पर रख दिया गया है। साथ ही आदेश दिया गया है कि आगे से कोटवारों को रेडिमेड वर्दियां ही दी जाएंगी। जाहिर है, यह आदेश किसी खास पर मेहरबानी के लिए जारी किया गया है। चलिए समझते हैं, प्रदेश के करीब 38 हजार गरीब कोटवारों के साथ यह कैसा खेला हुआ है?
कोर्ट ने सहीं माना था वर्दी के लिए नकद भत्ता
कोटवार संघ के प्रदेश अध्यक्ष हरवीर सिंह यादव ने बताया कि 2016 से पहले तक कोटवारों वर्दी और बूट सरकार के राजस्व विभाग की ओर से उपलब्ध करवाए जाते थे। उस दौरान घटिया क्वालिटी और अनियमित रूप से सामान मिलने की शिकायतें आम थीं। कोटवार संघ इसके विरोध में कई बार सरकार को अपनी मांग दे चुका था। आईएएस मनीष रस्तोगी के राजस्व आयुक्त रहते व्यवस्था में बदलाव हुआ और 6500 प्रति वर्ष इन कोटवारों को राशि मिलने लगी। बता दें कि साल 2024 में भी लगभग आधे कोटवारों को नगद पैसा मिल चुका है। कोटवारों को वर्दी के लिए नकद पैसा देने के विरोध में ठेकेदारों ने जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका पेश की थी। जिसे
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अब क्या हुआ
अचानक ही 11 दिसंबर को राजस्व आयुक्त कार्यालय से एक आदेश जारी कर दिया गया। जिसमें कहा गया है कि कोटवारों को वर्दी अब क्रय भंडार अधिनियम 2015 के अनुसार ही उपलब्ध करवाई जाएगी। जाहिर है, इस आदेश से कोटवारों में रोष का माहौल है।
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अब आगे क्या
म.प्र. 'आजाद कोटवार कर्मचारी संघ' के प्रदेश अध्यक्ष हरवीर सिंह यादव ने कहा कि बिना मंत्री परिषद की बैठक में प्रस्ताव लाए और कोटवार संघ की सहमति के बिना यह नया आदेश जारी करना गलत है। संघ ने सरकार से आग्रह किया है कि आदेश को तुरंत प्रभाव से निरस्त किया जाए, अन्यथा कोटवार संघ प्रदेश के सभी 38,000 कोटवारों के साथ मिलकर मुख्यमंत्री के पास इस मामले को उठाने और भोपाल में सामूहिक धरना प्रदर्शन एवं जल सत्याग्रह करने के लिए मजबूर होगा।
क्यों गलत है ये आदेश?
- कोटवार संघ ने लंबे आंदोलन के बाद यह अधिकार पाया था।
- कोर्ट ने कोटवारों को पैसा दिए जाने को सही माना था। यानी यह इक तरफा आदेश कोर्ट की अवमानना है।
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