mining mafia को सत्ता का संरक्षण : एमपी में और कितने अधिकारी-कर्मचारियों की जान लेगा माफिया

मध्यप्रदेश में खनन माफिया के आगे सरकार ने लगता है घुटने टेक दिए हैं। कई अधिकारी-कर्मचारियों पर हमले और हत्या के बाद भी सिस्टम नहीं बदला। क्या इन माफिया को सरकार का ही संरक्षण तो नहीं है। आइए देखते हैं कब-कितने अपराध कर चुका है ये खनन माफिया...

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Jitendra Shrivastava
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संजय शर्मा . BHOPAL. खनन माफिया ( mining mafia ) के आगे प्रदेश की सत्ता घुटनों के बल नजर आ रही है। खनन रोकने के दौरान माफिया पुलिस, माइनिंग, फारेस्ट और रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अधिकारी-कर्मचारियों की हत्या कर चुका है। वहीं कार्रवाई करने गए प्रशासनिक अमले पर हमले की वारदातों की फेहरिस्त भी छोटी नहीं है। इन तमाम वारदातों में फौरी कार्रवाई ने माफिया के हौंसले बढ़ा दिए हैं। हर महीने करोड़ों कमाने के लालच में माफिया अब खून बहाने से भी नहीं चूक रहा। बीते एक दशक में हुई वातदातों में शहीद अधिकारी-कर्मचारियों को भी न्याय नहीं मिला और माफिया छोटी-मोटी सजा या जुर्माने के बाद मौज उड़ा रहा है। सबसे शर्मनाक तो यह है कि हत्या और जानलेवा हमलों की एक भी वारदात में सरकार के हाथ सरगना तक नहीं पहुंच सके हैं। 

खनन माफिया पर नहीं कस पाए नकेल 

प्रदेश के मुखिया सीएम मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) सरकार संभालने के बाद माफिया की नकेल कसने का आदेश दे चुके हैं, लेकिन इस आदेश पर कितना अमल हुआ ये प्रदेश में हो रहे बेजा खनन की स्थिति देखकर समझा जा सकता है। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान भी लंबे समय तक प्रदेश के मुखिया रहे, लेकिन वे भी खनन माफिया पर नकेल नहीं कस पाए। चंबल, नर्मदा, केन, सिंध, पार्वती नदियों से हर दिन हजारों डंपर-ट्रक रेत का बेरोकटोक परिवहन करते सड़कों से गुजरते हैं, लेकिन राजनीतिक दखल के चलते प्रशासन माफिया पर कसावट नहीं कर पा रहा है। 

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अवैध खनन बहा रहा प्रदेश में खून 

प्रदेश में एक दशक में नदियों और पहाड़- पठारों से साथ ही जंगलों से अवैध खनन कई गुना बढ़ गया है। इसके साथ ही माफिया के हौंसले भी इतने बुलंद हो गए हैं की कानून और सरकार की पाबंदियों की ज़रा भी परवाह नहीं रही। कोई भी प्रशासनिक कार्रवाई माफिया की नकेल नहीं कस पा रही है। प्रदेश में अवैध खनन का यह कारोबार कई करोड़ तक पहुंच गया है। माफिया हर महीने चंबल, नर्मदा, केन, बेतवा और पार्वती- सिंध जैसी बड़ी नदियों से ही 400 से 600 करोड़ की रेत खोद रहा है।  वहीं पहाड़ों से पत्थर  और जंगलों से मिट्टी की खुदाई भी 200 से 300 करोड़ या इससे भी ज्यादा की हो रही है। इसी काली कमाई के लालच में डूबा माफिया इंसानी जान तो ठीक सरकारी मुलाजिमों की जान लेने से भी परहेज नहीं कर रहा। एक दशक में माफिया 5 से ज्यादा सरकारी अधिकारी- कर्मचारियों को मौत के घाट उतार चुका है। जबकि कार्रवाई के दौरान सरकारी अमले पर जानलेवा हमले की दर्जन भर वारदातें भी सामने आ चुकी हैं। यानी खनन की काली कमाई ने माफिया के मुंह में खून लगा दिया है। 

शहडोल में 6 माह में हत्या की दूसरी वारदात

खनिज से भरपूर शहडोल पर खनन माफिया की वक्रदृष्टि बनी हुई है। ब्यौहारी थाने में तैनात ASI महेंद्र बागरी की हत्या ने रेत माफिया के खौफ की तस्वीर सामने ला दी है। ASI अवैध खनन पर कार्रवाई करने पहुंचा था लेकिन माफिया के इशारे पर उसे ट्रैक्टर से कुचलकर मार दिया गया। शहडोल में 6 माह पहले नवंबर में ब्यौहारी क्षेत्र में पटवारी प्रसन्न सिंह की इसी तरह हत्या कर दी गई  थी। प्रसन्न सिंह सेना से रिटायरमेंट के बाद पटवारी के रूप में ब्यौहारी तहसील में काम कर रहे थे। नवंबर में पटवारी की हत्या के बाद प्रशासन ने सख्ती दिखाई होती तो माफिया ASI को मौत के घाट नहीं उतार पाता। इन दोनों वारदातों से अपने ही लोगों की हत्या पर प्रशासन के संवेदनाहीन रवैए का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

IPS के परिवार को नहीं मिला पूरा न्याय

साल 2012 में मुरैना के बानमोर में खनन माफिया ने एसडीओपी नरेंद्र कुमार को भी ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला था। आईपीएस नरेंद्र कुमार प्रशिक्षु के रूप में बानमोर एसडीओपी के पद पर तैनात थे। खनन की सूचना पर वे पुलिस टीम लेकर निकले थे। जब उन्होंने ट्रैक्टर रोकने की कोशिश को तो माफिया के ड्राइवर ने उन्हें पहिये के नीचे रौंद दिया था।  आईपीएस नरेंद कुमार की ह्त्या की सीबीआई जांच भी कराई गई लेकिन पुलिस कोर्ट में जांच रिपोर्ट और तथ्यों को मजबूती से पेश नहीं कर पाई। सुनवाई के दौरान पुलिस अपने ही महकमे के अधिकारी की नृशंस ह्त्या को साबित नहीं कर सकी। कोर्ट में इस निर्मम हत्याकांड की सुनवाई एक सामान्य दुर्घटना की तरह हुई। राजनीतिक संरक्षण के चलते पुलिस माफिया को सजा नहीं दिला सकी।  वहीं ड्यूटी पर शहीद हुए आईपीएस नरेंद कुमार का परिवार अब भी पूरा न्याय मिलने का इंतज़ार है। 

सरकार के रुख से शहीदों के परिवार निराश, माफिया का खौफ

एक दशक में सरकारी अमले पर खनन माफिया के हमलों की लम्बी फेहरिस्त है, लेकिन किसी में कड़ी कार्रवाई हुई हो ऐसे एक- दो केस हो होंगे।  खनन माफिया द्वारा शासन के कर्मचारियों की हत्या की वारदातों में प्रदेश डार्क ज़ोन में शामिल है। यानी खनन के लिए खून बहाने की घटनाओं के लिए उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू, बिहार, राजस्थान  के साथ मध्यप्रदेश भी बदनामी झेल रहा है। सरकार वारदात के बाद दिखावे के लिए सख्त आदेश जारी करती है. लेकिन इसकी सख्ती अमल में आने से पहले ही नरम पड़ जाती है। माफिया का खौफ और सरकारी कर्मचारियों पर बढ़ते जोखिम से उनके परिवारों में चिंता बनी रहती है। पुराने मामलों में मामूली कार्रवाई से शहीदों के परिवार निराश हैं। 

बालाघाट जिले में पत्रकार की हत्या

जून 2015 में ही दूसरी घटना बालाघाट जिले में घटी. उस घटना में बौखलाए रेत खनन माफियाओं के गुंडों ने एक पत्रकार का अपहरण करके उसे जिंदा जला दिया था. 40 साल के पत्रकार की लाश महाराष्ट्र के वर्धा इलाके में स्थित एक खेत में जली हुई लावारिस हालत में पुलिस ने बरामद की थी. उस घटना में पुलिस ने कटंगी निवासी राकेश नसवानी, विशाल दांडी, बृजेश डहरवाल को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार तीनों ही मुलजिम अवैध रेत खनन और चिटफंड कारोबार से जुड़े हुए पाए गए. वे सब पत्रकार पर कोर्ट में चल रहे एक मुकदमे को वापिस लेने के लिए दवाब बना रहे थे.

माफिया के खौफ की बानगी हैं ये वारदातें...

1. रेत माफिया का शिकार बने डिप्टी रेंजर

मुरैना जिले में रेत माफिया का खौफ किसी से छिपा नहीं है। सितंबर 2018 में जिले के देवरी में कार्रवाई करने गए वन विभाग के डिप्टी रेंजर सूबेदार सिंह कुशवाहा की हत्या ट्रैक्टर से कुचलकर कर दी गई थी। डिप्टी रेंजर रेत से भरी ट्रॉली को रोकने की कोशिश कर रहे और इस बीच माफिया के लोगों ने घिरौना मंदिर के पास उनकी हत्या कर दी थी। इस मामले में भी पुलिस ने केस दर्ज कर संदेहियों को गिरफ्तार किया, लेकिन पुराने मामलों की तरह इस केस में भी गवाहों के टिक पाने का अंदेशा है।

2. माफिया के इशारे पर फॉरेस्ट गार्ड पर हमला

अशोकनगर में खनन माफिया इतना मजबूत हो चला है की अब सरेराह गुंडागर्दी पर उतारू है। मई 2022 में अवैध खनन रोकने गए वनकर्मियों को माफिया के इशारे पर न केवल घेरकर पीटा गया, बल्कि हाथ-पैर भी तोड़ दिए गए थे। हमलावरों ने वनकर्मियों से बंदूकें छीनकर भी उन्हें पीटा था। माफिया से घिरे इन फारेस्ट गार्ड को पुलिस की मदद के बाद बचाया जा सका था। इस मामले में जिन्हें आरोपी बनाया गया था अब वे फिर बेरोकटोक खनन में जुट गए हैं।  

3. खनन अधिकारी महिला और जवानों पर पथराव

शाजापुर के शुजालपुर में आठ साल पहले 2015 में खनन माफिया ने महिला माइनिंग इंस्पेक्टर रीना पाठक और उनकी टीम पर पथराव कर हमला कर दिया था। पाठक नेवज नदी में हो रहे रेत का अवैध खनन को रोकने पहुंची थीं। पथराव में महिला अधिकारी और उनके साथी जवान घायल हो गए थे। घटना के बाद प्रशासन कुछ समय तक सख्त रहा था और कई वाहन जब्त करते हुए माफिया के 21 गुर्गों पर केस दर्ज किया गया, लेकिन चंद दिन बाद ये सब जमानत लेकर फिर अवैध खनन के कारोबार में जुट गए।  

4. पवित्र क्षिप्रा भी झेल रही अवैध खनन का दंश

रतलाम जिले के आलोट में फरवरी 2020 में पवित्र क्षिप्रा नदी में हो रहे रेत के अवैध खनन पर कार्रवाई के दौरान माफिया के इशारे पर हमले की वारदात को अंजाम दिया गया था। इस हमले में माइनिंग इंस्पेक्टर भावना सेंगर की टीम पर हमला कर दिया गया था। हमले में सेंगर और उनके साथियों को चोट आई थी। हमले के बाद बदमाश माइनिंग अमले को धमकाते हुए भाग गए थे। कार्रवाई के दौरान माइनिंग इंस्पेक्टर पर हमले की वारदात के बाद प्रशासन के रवैये ने माफिया के हौंसले बढ़ा दिए और क्षिप्रा में फिर खनन जारी है।

5. माइनिंग इंस्पेक्टर को घेरकर किया हमला

बुन्देलखंड के छतरपुर के राजनगर एसडीएम सोनिया मीणा को कार्रवाई के दौरान माफिया ने घेर लिया था। प्रशासनिक अधिकारी के सामने से माफिया के लोग रेत से भरा ट्रैक्टर-ट्रॉली छीनकर ले गए थे। साल 2017 में हुई इस घटना के बाद प्रशासन ने कार्रवाई केवल रस्म अदायगी में की थी। यही वजह है कि यहां माफिया अब भी बेलगाम है। 

6.  ग्वालियर-चंबल में दो टीआई पर जानलेवा हमला

खनन माफिया में अब प्रदेश की सरकार और कानून का भी भय नहीं रहा है। प्रदेश के ग्वालियर-चंबल अंचल में साल 2021 में दो पुलिस अधिकारियों पर हमले की दो घटनाएं उसके खौफ को उजागर करती हैं। साल 2021 में ग्वालियर के जलालपुर में चंबल से रेत खोदकर ला रहे माफिया ने पेट्रोलिंग कर रहे टीआई सुधीर सिंह और उनके अमले पर फायरिंग कर दी थी। वहीं मुरैना के सबलगढ़ में माफिया ने थाना प्रभारी नरेंद्र शर्मा माफिया के हमले में जख्मी हो गए थे। पुलिस पर हुए हमले के बावजूद कार्रवाई ठोस नहीं हुई और अब भी पूरे जिले में माफिया का दबदबा है।

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