मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए मोहन यादव सरकार नया कदम उठाने जा रही है। नई योजना के तहत अगर किसी अस्पताल में ऑपरेशन के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी है तो ऐसे डॉक्टर को बाहर से बुलाकर ऑपरेशन करवाया जा सकेगा। सरकार जल्द ही इस संबंध में आदेश जारी करने जा रही है।
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ऐसी होगी नई व्यवस्था
उदाहरण के लिए बैतूल के सरकारी अस्पताल में एनेस्थीसिया के डॉक्टर की कमी है। इस कारण मरीजों के जरूरी ऑपरेशन ही नहीं हो पा रहे हैं तो अस्पताल प्रबंधन शहर के एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉक्टर को बुलाकर ऑपरेशन करवा सकेगा। इस सेवा के लिए डॉक्टर की सेवा और उसकी डिग्री के आधार पर फीस तय होगी। इस फीस का भुगतान सरकार करेगी।
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स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 2000 पद खाली पड़े
इन सबके बीच यदि सूबे के स्वास्थ्यगत ढांचे को देखा जाए तो यह राज्य काफी पिछड़ा हुआ है। केंद्र सरकार ने 2007 में इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड लागू किए थे, इसमें स्टाफ और इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित तमाम पैरामीटर्स थे, लेकिन प्रदेश में इनकी पूर्ति अब तक नहीं हो सकी है। प्रदेश में अभी स्पेशलिस्ट के 2 हजार 374 पद खाली हैं। ऐसे ही चिकित्सा अधिकारियों के 1 हजार 54 और डेंटिस्ट के 314 पद रिक्त हैं। कई सीएचसी और जिला अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ व पैरामेडिकल स्टाफ नहीं है। प्रदेश में अभी सिर्फ 43 विशेषज्ञ, जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर 670, लैब टेक्निशियन 483, 2087 नर्सिंग स्टाफ, रेडियोग्राफर 191 और फार्मासिस्ट 474 काम कर रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी डॉक्टर नहीं
केंद्र सरकार के रूरल हेल्थ स्टेटिक्स रिपोर्ट 2022 के मुताबिक मप्र के ग्रामीण इलाकों में उप स्वास्थ्य केंद्रों में 4134 (29%), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 4045 (45%) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 245 (42%) में डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। यहां स्त्री रोग विशेषज्ञ 332 डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन सिर्फ 39 ही ग्रामीण इलाकों में पदस्थ हैं। पीडियाट्रिक्स की 332 पोस्ट पर सिर्फ 13 ही बाल एवं शिशु रोग पदस्थ हैं। यही कारण हैं कि मप्र में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 43% हैं जो देशभर में सर्वाधिक है। मप्र में ग्रामीण इलाके में आईएमआर 47% तक है, जबकि शहरों में यह 30% हैं।
इधर अस्पताल ही निजी हाथों में देने की तैयारी
प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं सुधारने के लिए प्रदेश के सरकारी अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों को भी कॉर्पोरेट घरानों को सौंपने की कवायद चल रही है। सरकार इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का नाम दे रही है।
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