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BHOPAL. भोपाल में मंत्रियों के दो साल के रिपोर्ट कार्ड जारी करने का सिलसिला शुरू हो गया है। इसी क्रम में पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह ने पत्रकार वार्ता कर अपने विभाग का दो साल का लेखा-जोखा पेश किया है। मंच पर उपलब्धियां गिनाई गईं, लेकिन सड़कों की हालत ने चर्चा की दिशा बदल दी है।
दो साल से सड़कों की बदहाली
प्रदेश में बीते दो सालों से पीडब्ल्यूडी की सड़कों की दुर्दशा लगातार सामने आती रही है। कहीं नई सड़कें बारिश में बह गईं, तो कहीं गड्ढों ने हादसों को न्योता दिया है। निर्माण गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठे, लेकिन ठोस सुधार जमीन पर कम दिखा है।
मंत्री की स्वीकारोक्ति: ट्रेनिंग सेंटर ही नहीं
पत्रकार वार्ता में मंत्री राकेश सिंह ने खुद माना कि मध्यप्रदेश में पीडब्ल्यूडी इंजीनियरों के लिए कोई नियमित ट्रेनिंग सेंटर नहीं है। अब तक इंजीनियरों को प्रशिक्षण के लिए बाहर जाना पड़ता था। मंत्री ने कहा कि अब करीब 300 करोड़ रुपए की लागत से ट्रेनिंग सेंटर बनाया जाएगा।
गुणवत्ता किस पैमाने पर नापी गई?
जब इंजीनियरों की नियमित ट्रेनिंग ही नहीं थी, तो पिछले दो साल में सड़कों और पुलों की गुणवत्ता किस थर्मामीटर से मापी गई? यह सवाल खुद-ब-खुद खड़ा हो गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रशिक्षण के बिना गुणवत्ता नियंत्रण सिर्फ कागजी प्रक्रिया बनकर रह जाता है।
पर्यावरण अनुमति में उलझे प्रोजेक्ट
मंत्री राकेश सिंह यह नहीं बता सके कि पर्यावरण स्वीकृति न मिलने से कितने सड़क प्रोजेक्ट अटके हुए हैं। उन्होंने कहा कि वन क्षेत्रों में सड़क निर्माण पर वन विभाग की आपत्तियां आती हैं। नुकसान कम करने और भरपाई के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन आंकड़े बाद में देने की बात कही।
खराब सड़कों की मरम्मत या तात्कालिक इलाज
मंत्री का दावा है कि खराब सड़कों को सुधारा जा रहा है। भविष्य में ऐसी स्थिति न बने, इसकी तैयारी चल रही है। हालांकि, हकीकत यह है कि मरम्मत के बाद भी कई सड़कें फिर से टूट जाती हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह स्थायी समाधान है या सिर्फ तात्कालिक इलाज।
गुणवत्ता परिषद: नाम है, काम नहीं
निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांच के लिए गठित गुणवत्ता परिषद भी सवालों के घेरे में है। न तो इसमें पर्याप्त अफसर हैं और न ही जमीनी स्तर पर प्रभावी मॉनिटरिंग। हालात ऐसे हैं मानो परिषद वेंटिलेटर पर हो, मौजूद तो है लेकिन सक्रिय नहीं।
नया खाका: सुधार की असली जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ ट्रेनिंग सेंटर बनाना काफी नहीं होगा। ठेकेदारों की जवाबदेही तय करना, थर्ड पार्टी ऑडिट, रियल-टाइम मॉनिटरिंग और पारदर्शी रिपोर्टिंग सिस्टम जरूरी है। जब तक ये कदम नहीं उठते, तब तक सड़कें सवाल पूछती रहेंगी।
दावों से आगे जमीनी बदलाव
दो साल के रिपोर्ट कार्ड में योजनाएं और वादे जरूर हैं, लेकिन पीडब्ल्यूडी की असली परीक्षा सड़कों पर होगी। जनता को अब घोषणाएं नहीं, टिकाऊ सड़कें चाहिए। जब तक गुणवत्ता और जवाबदेही जमीन पर नहीं उतरती, तब तक भरोसा बहाल होना मुश्किल है।
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