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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, जबलपुर ने 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के 7 माह से अधिक गर्भवती होने के मामले में राज्य सरकार को कड़ा नोटिस भेजा है। यह मामला बालाघाट जिले से संबंधित है, जहां जिला अदालत ने इस मुद्दे को लेकर हाई कोर्ट से मार्गदर्शन मांगा था।
कोर्ट के पुराने निर्देश की अवहेलना
हाई कोर्ट ने 20 फरवरी 2025 को एक स्पष्ट आदेश जारी किया था कि यदि कोई नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता 6 माह (24 सप्ताह) से अधिक गर्भवती हो, तो उसकी जानकारी अनिवार्य रूप से उच्च न्यायालय को दी जाए। इस आदेश का उद्देश्य यह था कि गर्भपात जैसे संवेदनशील मामलों में समय रहते कानूनी प्रक्रिया शुरू हो सके।
लेकिन बालाघाट की इस पीड़िता के मामले में यह दिशा-निर्देश पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। न तो जिला प्रशासन ने समय पर जानकारी दी और न ही मेडिकल रिपोर्ट या केस रजिस्ट्रेशन की तारीख स्पष्ट की।
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सरकारी वकील का जवाब और कोर्ट की नाराजगी
सरकारी अधिवक्ता ने बताया कि जिला कोर्ट का पत्र 26 मई को हाई कोर्ट पहुंचा, लेकिन उसमें केस दर्ज होने की तिथि और सिविल सर्जन की रिपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज शामिल नहीं थे। इससे स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक स्तर पर भारी चूक हुई है।
जस्टिस दीपक खोत की वेकेशन बेंच ने इस लापरवाही को गंभीर मानते हुए पूछा है कि जब स्पष्ट दिशा-निर्देश थे, तो इनका पालन क्यों नहीं हुआ?
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अगली सुनवाई की तारीख
हाई कोर्ट ने इस मामले में विस्तृत जवाब तलब करते हुए अगली सुनवाई 9 जून 2025 को तय की है। तब तक राज्य सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि आदेशों की अवहेलना क्यों की गई।
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हाई कोर्ट के निर्देशों का सारांश
- यदि कोई नाबालिग पीड़िता 24 सप्ताह से अधिक गर्भवती हो तो तुरंत उच्च न्यायालय को सूचना देना अनिवार्य
- सिविल सर्जन की रिपोर्ट संलग्न की जानी चाहिए
- गर्भपात की प्रक्रिया के लिए कोर्ट से अनुमति आवश्यक
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