रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलगुरु प्रो राजेश वर्मा पर एक महिला प्रोफेसर द्वारा लगाए गए छेड़छाड़ के आरोपों ने शिक्षा जगत के साथ-साथ न्याय व्यवस्था को भी झकझोर दिया था। अब इस मामले में हाईकोर्ट को भी साजिश नजर आ रही है क्योंकि पहले इस घटना के जो सीसीटीवी विश्वविद्यालय के द्वारा संरक्षित रखने की जानकारी दी गई थी अब वह गायब हो चुके हैं।
यूनिवर्सिटी की ओर से बताया गया कि रिकार्डिंग बंद थी
RDVV की महिला प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय के कुलगुरु पर गंभीर आरोप लगाते हुए बताया था कि 21 नवम्बर 2024 को कुलगुरु कक्ष में ही राजेश वर्मा ने उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया। यह घटना विश्वविद्यालय के प्रशासनिक क्षेत्र में हुई और महिला की शिकायत के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को उचित जांच करनी थी। लेकिन जब इस मामले की गहनता से जांच के लिए सीसीटीवी फुटेज की मांग की गई, तो यूनिवर्सिटी हाईकोर्ट में दिए गए अपने ही जवाब से पलट गई है और इसे यह कहकर टाल दिया गया कि जिस कैमरे में घटना की रिकॉर्डिंग हो सकती थी, वह 'तकनीकी कारणों' से बंद था। यह उत्तर न केवल पीड़िता की पीड़ा को बढ़ाने वाला है, बल्कि यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं साक्ष्य को जानबूझकर नष्ट या छिपाया गया हो सकता है। इस स्थिति ने हाइकोर्ट को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और कोर्ट ने पूरे घटनाक्रम को लेकर न्यायालय को गुमराह करने की साजिश की आशंका जताई है।
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पहले बताया था सीसीटीवी फुटेज है संरक्षित अब हुए गायब
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आलोक बागरेचा और दीपक तिवारी ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जो तथ्य प्रस्तुत किए, वे इस मामले को और भी जटिल और गंभीर बना देते हैं। अधिवक्ताओं ने बताया कि 07 फरवरी 2025 को विश्वविद्यालय की ओर से यह स्पष्ट कहा गया था कि सभी सीसीटीवी कैमरे ठीक हैं और फुटेज जांच में सहयोग हेतु उपलब्ध कराए जाएंगे। लेकिन जब वास्तव में जांच समिति ने फुटेज मांगा, तो यह कहकर इनकार कर दिया गया कि कैमरा उस दिन बंद था। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि सिर्फ वही कैमरा बंद बताया गया जिसमें संपूर्ण घटना कैद हो सकती थी, जबकि बाकी कैमरे चालू थे। इस विरोधाभास से अदालत को यह भी संदेह हुआ कि संभवतः जानबूझकर साक्ष्य छिपाए जा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं का यह भी आरोप है कि आरोपी को बचाने के लिए झूठे गवाह भी तैयार किए जा रहे हैं। कोर्ट ने यह माना कि यदि ऐसा कोई प्रयास हुआ है तो यह न्याय की प्रक्रिया के साथ गंभीर छेड़छाड़ है और इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए।
डिलीट हुए फुटेज की टेक्निकल टीम करेगी जांच
मामले की गंभीरता को देखते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञ की मदद से कुलगुरु कक्ष में लगे सीसीटीवी कैमरे की स्थिति की फोरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने जिला कार्यक्रम अधिकारी (महिला एवं बाल विकास) कलेक्टर जबलपुर को निर्देशित किया है कि यह जांच कराई जाए कि उक्त कैमरा कब लगाया गया, वह कितने समय तक कार्यरत रहा और 21 नवम्बर 2024 को उसकी स्थिति क्या थी। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया जाए कि क्या कैमरे की रिकॉर्डिंग में किसी प्रकार की छेड़छाड़ की गई है। कोर्ट ने कुलगुरु राजेश वर्मा को भी निर्देशित किया है कि वे इस मामले में अब तक की गई कार्यवाही का पूरा विवरण शपथ-पत्र के रूप में 15 मई 2025 तक अदालत में प्रस्तुत करें। अदालत ने यह प्रश्न भी उठाया कि यदि जांच समिति को कैमरे के बंद होने की जानकारी थी तो यह सूचना राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय जांच समिति को क्यों नहीं दी गई? क्या यह जानबूझकर दबाया गया तथ्य है?
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राज्य सरकार ने भी जांच के लिए भरी हामी
राज्य सरकार की ओर से अदालत में उपस्थित अधिवक्ता ने बताया कि सरकार को निष्पक्ष जांच से कोई आपत्ति नहीं है और वह न्यायालय के हर निर्देश का पालन करने को तैयार है। इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार भी इस मामले की गंभीरता को समझ रही है और विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से किसी प्रकार की चूक की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि अब तक प्राप्त रिपोर्टों को सीलबंद लिफाफे में सुरक्षित रखा जाए और अगली सुनवाई के दौरान ही खोला जाए। अगली सुनवाई 15 मई 2025 को नियत की गई है, जहां तकनीकी रिपोर्ट, हलफनामा और अन्य तथ्यों के आधार पर कोर्ट आगामी निर्णय लेगा। यह सुनवाई न केवल इस मामले की दिशा तय करेगी, बल्कि यह भी स्पष्ट करेगी कि विश्वविद्यालय जैसे शैक्षणिक संस्थानों में अधिकारों की आड़ में यदि कोई अनैतिक गतिविधि होती है, तो उसके खिलाफ न्याय किस रूप में खड़ा हो सकता है।