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ITI Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. औद्योगिक संस्थाओं को हुनरमंद युवा उपलब्ध कराने के दावों को तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास विभाग ही बट्टा लगा रहा है। प्रदेश की औद्योगिक प्रशिक्षण इकाइयों (आईटीआई) में उच्च गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण अनुदेशकों की भर्ती में विभाग ही रोड़े अटका रहा है। यही नहीं केंद्र के प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) की गाइडलाइन की भी अनदेखी की जा रही है।
डीजीटी के निर्देश के बावजूद मध्यप्रदेश में प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती में क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर ट्रेनिंग स्कीम यानी सीआईटीएस के तहत डिप्लोमाधारियों को प्राथमिकता से दूर रखा गया है। जबकि देश के दूसरे राज्यों में इस संबंध में गजट नोटिफिकेशन तक जारी किए जा चुके हैं। केंद्रीय एजेंसी के आदेश की इस तरह अनदेखी किए जाने से प्रदेश में हजारों डिप्लोमाधारी अपने हक की लड़ाई के लिए हाईकोर्ट पहुंच गए हैं।
कौशल विकास में अफसरों का रोड़ा
सरकार मध्यप्रदेश में निवेश के माध्यम से औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। सीएम डॉ.मोहन यादव भी इसके लिए प्रदेश में कई इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव के जरिए निवेशकों को आमंत्रित कर चुके हैं। वहीं विदेशों में भी उद्योगपतियों से प्रदेश में उनकी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के संबंध में करार किए जा रहे हैं।
सरकार प्रदेश में उद्योगों को विस्तार देने के प्रयास में जुटी है लेकिन उद्योगों के संचालन के लिए जरूरी कुशल श्रम की उपलब्धता के काम की अनदेखी जारी है। तकनीकी एवं औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाएं यानी आईटीआई युवाओं को उद्योगों में काम करने के लिए जरूरी प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। मध्यप्रदेश में ऐसी 280 सरकारी संस्थाएं हैं जबकि निजी क्षेत्र को मिलाएं तो यह संख्या 1200 से पार पहुंच जाती है।
यूपी-सीजी ने माना, एमपी को परहेज
केंद्रीय प्रशिक्षण महानिदेशालय यानी डीजीटी द्वारा आईटीआई ट्रेनिंग ऑफिसर भर्ती के लिए सीआईटीएस निर्धारित योग्यता है। इसके लिए डीजीटी देश के सभी राज्यों में इस अनिवार्य योग्यता के संबंध में जरूरी संशोधन करने के निर्देश भी कई बार जारी कर चुका है। जिसका पालन राजस्थान, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हो चुका है इसके गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिए गए हैं। वहीं मध्यप्रदेश में अब भी सीधी भर्ती में डीजीटी के निर्देशों की अनदेखी कर सीआईटीएस को प्राथमिकता देने से परहेज जारी है।
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नियमों पर भरी अफसरों की मनमानी
डीजीटी द्वारा तय मानदंडों की अनदेखी को लेकर सीआईटीएस संघ ने भी तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास संचालक को पत्र लिखा है। इस पत्र से साफ हो जाता है कि प्रदेश में अधिकारी किस तरह अपने ही नियमों पर अड़े हुए हैं। उन्हें न तो केंद्रीय गाइडलाइन के उल्लंघन की परवाह है न ही आईटीआई जैसी संस्थाओं में उच्च गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण को आगे बढ़ाने की चिंता।
प्रदेश में सीआईटीएस योग्यता के बिना ही प्रशिक्षण अधिकारी भर्ती किए जा रहे हैं। ऐसे प्रशिक्षण अधिकारियों के सीआईटीएस के एक वर्षीय प्रशिक्षण पर सरकार को पांच साल रुपए खर्च करना पड़ता है। वहीं एक साल का वेतन भी देना होता है। जबकि सीआईटीएस या सीटीआई की सीधी भर्ती करने या उन्हें प्राथमिकता देने पर यह अतिरिक्त खर्च बच जाता है।
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गैस्ट फैकल्टी से CITS से ज्यादा अंक
प्रशिक्षण अधिकारियों की भर्ती में भारी विसंगतियां हैं। कौशल विकास एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा के अधिकारी इसके बाद भी डीजीटी की गाइडलाइन का पालन नहीं कर रहे हैं। प्रदेश में प्रशिक्षण अधिकारियों की कमी को पूरा करने के लिए आईटीआई में गैस्ट फैकल्टी का सहारा लिया जा रहा है।
गेस्ट फैकल्टी को भर्तियों में चार अंक प्रति वर्ष के हिसाब से अधिकतम 20 अंक प्रदान किए जाते हैं। जबकि सीआईटीएस अभ्यर्थियों को केवल 3 अंक देने का प्रावधान है। इस नियम से केंद्रीय संस्थान के डिप्लोमाधारी पीछे रह जाते हैं। जबकि डीजीटी की साफ गाइडलाइन कहती है कि सीआईटीएस को भर्तियों में 30 प्रतिशत वेटेज दिया जाना चाहिए। इसे निर्धारित करने मध्यप्रदेश में औद्योगिक प्रशिक्षण तृतीय श्रेणी सेवा भर्ती नियम 2009 में संशोधन ही नहीं किया गया है।
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