बिना प्रॉफिट के काम से कटा सहकारिता,राजस्व पर अटका रहवासियों का भविष्य

मध्य प्रदेश में चार माह पहले तक रेसीडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन गठित करने का काम सहकारिता विभाग ही करता रहा है,लेकिन एक्ट में संशोधन के बाद अब उसने इससे पल्ला झाड़ लिया है।

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Ravi Awasthi
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भोपाल।
मध्य प्रदेश सहकारिता विभाग ने बिना प्रॉफिट वाले रेसीडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन के पंजीयन से हाथ खींच लिया है। इसकी जवाबदेही विभाग अब राजस्व को सौंपने की तैयारी में है। इसके लिए संबंधित ​अधिनियम में संशोधन भी हुआ,लेकिन 4 माह से अधिक वक्त बीतने के बाद भी जवाबदेही तय नहीं होने से पंजीयन का काम ठप्प है। 

नई सोसायटी बनाने दर-दर भटक रहे कॉलोनी रहवासी

राजधानी भोपाल के कटारा हिल्स स्थित स्वामी विवेकानंद कॉलोनी के रहवासी एक पंजीकृत वेलफेयर सोसायटी बनाना चाहते हैं। इसके लिए कॉलोनी के रहवासियों ने एक समूह गठित कर सहकारिता विभाग में मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम 2000 के तहत आवेदन भी किया,लेकिन विभाग ने पंजीयन करने से इंकार कर दिया। 

गैस कंपनी ने बिना अनुमति कर डाली खुदाई

राजधानी भोपाल के कटारा हिल्स स्थित स्वामी विवेकानंद कॉलोनी के रहवासी एक पंजीकृत रेसीडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन बनाना चाहते हैं। इसके लिए कॉलोनी के रहवासियों ने एक समूह गठित कर सहकारिता विभाग में मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम 2000 के तहत आवेदन भी किया,लेकिन विभाग ने पंजीयन करने से इंकार कर दिया। 

कॉलोनी के रहवासियों को कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं मिल रहा है कि यह पंजीयन कौन करेगा ? इसी बीच कॉलोनी के एक स्व-घोषित अध्यक्ष से एनओसी लेकर थिंक गैस कंपनी ने नेचुरल गैस कनेक्शन के लिए पाइप लाइन बिछाने जगह-जगह खुदाई कर काम अधूरा छोड़ दिया। 

कॉलोनी का स्वामित्व भोपाल विकास प्राधिकरण के पास है। गैस कंपनी को नियमानुसार प्राधिकरण से अनुमति लेनी चाहिए थी,लेकिन कॉलोनी के रहवासियों की सुनवाई न तो बीडीए में हो रही, न गैस कंपनी में और न सहकारिता विभाग ही पंजीयन कर नई सोसायटी तैयार करने में सहयोग कर रहा है। रहवासी दुविधा में हैं और जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। 

4 माह से ठप्प है ​रजिस्ट्रेशन का काम

स्वामी विवेकानंद कॉलोनी का यह उदाहरण  कॉलोनियों में निवासरत रहवासियों की समस्या की महज एक बानगी है। प्रदेशभर में ऐसे कई रहवासी संगठनों के आवेदन सहकारिता विभाग में लंबित हैं,जो  एसोसिएशन बनाकर अपनी कालोनियों का विकास,रोजमर्रा के काम रहवासियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए करना चाहते हैं,लेकिन मजबूर हैं।

दरअसल,चार माह पहले तक पंजीकृत रेसीडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन गठित करने का काम सहकारिता विभाग ही करता रहा है,लेकिन संबंधित अधिनियम में संशोधन के बाद उसने इससे पल्ला झाड़ लिया है। यह काम अब राजस्व विभाग को सौंपा गया है । 

हैरत की बात यह कि करीब चार माह गुजरने के बाद सहकारिता विभाग की ओर से राजस्व को न तो इसकी सूचना दी गई, न ही उसे मिले आवेदन ट्रांसफर किए गए। इस लेतलाली का खामियाजा अपनी सोसायटी के पंजीयन का इंतजार कर रहे रहवासियों को भुगतना पड़ रहा है। 

बिना प्रॉफिट वाले काम में विभाग की रुचि नहीं

रेसीडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन के पंजीयन से पल्ला झाड़ने की एक बड़ी वजह,इस काम का अलाभकारी होना बताया जाता है। वहीं दूसरी ओर रहवासियों की रोजमर्रा की समस्या व इससे जुड़ी शिकायतों से पीछा छुड़ाना रहा। पंजीकृत सोसायटीज के सदस्य कई बार ​नगरीय निकायों से जुड़ी समस्याओं की शिकायत भी पंजीयनकर्ता सहकारिता विभाग के अधिकारियों से करते रहे हैं। 

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रजिस्ट्रार शब्द से सहकारिता के जिम्मे आया काम

सहकारिता विभाग मप्र को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 के तहत काम करता है। साल 2000 में रहवासी कालोनियों से जुड़े मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम में इन कालोनियों की वेलफेयर सोसायटीज के पंजीयन का काम रजिस्ट्रार द्वारा किए जाने का तो उल्लेख किया गया,लेकिन रजिस्ट्रार किस विभाग का होगा,इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया। इससे असमंजस की स्थिति बनी। 

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एक अफसर ने दिलाई जिम्मेदारी,दूसरे ने वापस कराई

सूत्रों के मुताबिक,मामला गृह निर्माण सोसायटीज के रहवासियों से जुड़ा था,लिहाजा विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव अजीत केसरी ने इसे सहकारिता विभाग में लागू कराया। केसरी लंबे समय तक इस विभाग में रहे। बाद में जब एक अन्य अधिकारी दीपाली रस्तोगी विभाग की प्रमुख सचिव बनी तब उन्होंने सहकारिता से जुड़े सभी नियम,कानूनों का रिव्यू कराया और विभाग के लिए गैरजरूरी कामों का बोझ कम करने की सिफारिश की।

इसी आधार पर राज्य विधानसभा के पिछले बजट सत्र में सहकारिता अधिनियम में संशोधन कर वेलफेयर सोसायटीज के पंजीयन कार्य से सहकारिता विभाग को मुक्त किया गया।  

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कौन करेगा पंजीयन,यह अभी तय नहीं

सहकारिता विभाग राजस्व को यह काम सौंपने की तैयारी में है,हां​लाकि चार माह गुजरने पर भी वह अपने अधिकार ट्रांसफर नहीं कर सका। दूसरी ओर नगरीय प्रशासन विभाग  भी दो साल पहले रेसीडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन यानि आरडब्ल्यूए एक्ट का मसौदा तैयार कर चुका है,हालांकि यह अस्तित्व में नहीं आ सका। इसमें कहा गया कि एसडीएम कार्यालय में ऐसी सोसायटीज का पंजीयन होगा और संबंधित नगरीय निकाय इनके काम में सहयोग करेंगे।

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आधा दर्जन से अधिक नियमों से उलझन

सूत्रों के मुताबिक,प्रदेश में अभी पांच से छह नियमों के तहत रहवासी समितियां पंजीबद्ध हैं। मप्र को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960,मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम 2000,मप्र म्यूनिसिपल कारपोरेशन एक्ट 1956,मप्र म्यूनिसिपलीटीज एक्ट 1961 एवं मप्र रेरा एक्ट 2017 शामिल हैं। सहकारिता विभाग से जुड़े अधिकारी,कर्मचारियों की कालोनी स्वयं मप्र रजिस्ट्रार फर्म्स एवं सोसायटीज के अधीन पंजीकृत हैं।  

सहकारिता भोपाल विकास प्राधिकरण