इंदौर। सांसद प्रतिनिधि कपिल जैन के पिताजी, वरिष्ठ समाजसेवी उत्तमचंद बड़ड़िया ने संथारा के माध्यम से अपने देह को छोड़ा। उनके निधन से जैन समाज समेत कई अन्य समाजों में शोक की लहर दौड़ गई। दिवंगत उत्तमचंद बड़ड़िया ने अपने संपूर्ण जीवन में समाज सेवा और धार्मिक मूल्यों को प्राथमिकता दी। उनका जीवन प्रेरणादायी रहा और उन्होंने संथारा के माध्यम से आत्मा की मुक्ति प्राप्त की।
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लाखों में एक को नसीब होता है ऐसा पुण्य
कपिल जैन ने बताया कि आम जनमानस में 1 लाख लोगों में से किसी एक को यह सौभाग्य प्राप्त होता है। जैन संस्कृति में इसे संथारा कहा जाता है और हिंदू संस्कृति में इसे समाधि कहा जाता है। पिताजी के पुण्य के कारण उन्हें समाधि मिली। पिताजी ने चार दिन तक अन्न-जल त्याग दिया था। कुछ दिन पहले उन्हें किडनी में थोड़ा संक्रमण हुआ था, जिसके चलते मैं उन्हें अस्पताल ले गया, लेकिन उन्होंने वहां जाकर एक भी सुई लगवाने से मना कर दिया। उन्हें पूर्वानुभव हो गया था कि उनका अंतिम समय आ गया है, इसलिए मैं उन्हें घर ले आया। हमसे जुड़े तपस्वी संत का आगमन हुआ और उन्होंने पिताजी को संथारा दिया।
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जीवनभर किए समाजसेवा के कार्य
श्रद्धांजलि सभा में जैन संत राजेश मुनिजी महाराज साहेब ने दिवंगत उत्तमचंद के जीवन की सराहना करते हुए कहा कि संथारा से आत्मा को मुक्त करना एक पुण्य कार्य है। उन्होंने कहा कि हर किसी को ऐसा जीवन नहीं मिलता और उत्तमचंदजी ने अपने जीवन को मानव सेवा और समाज कल्याण को समर्पित किया।
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सांसद और मंत्री भी पहुंचे मौके पर
श्रद्धांजलि सभा में सैकड़ों समाजजन, राजनेता और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। सांसद शंकर लालवानी के प्रतिनिधि कपिल जैन ने सभी समाजजनों का आभार व्यक्त किया और कहा कि दुख की इस घड़ी में उनके परिवार को समाज का जो साथ मिला है, वह अति मूल्यवान है। इस मौके पर शहर के सांसद शंकर लालवानी सहित कई मंत्री शामिल हुए।
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क्या है संथारा?
संथारा जैन धर्म की एक अत्यंत पवित्र और धार्मिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति पूर्ण जागरूकता और स्वेच्छा से भोजन और जल का त्याग कर समाधि अवस्था में चले जाता है। यह आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का एक मार्ग माना जाता है, जिसमें व्यक्ति शांतिपूर्वक संसार का त्याग करता है। जैन धर्म में इसे उच्च आध्यात्मिक साधना का रूप माना गया है, जो आत्मा की शुद्धि और परलोक गमन की तैयारी के लिए की जाती है।
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