इंदौर फैमिली कोर्ट का आदेश, जैन समाज को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक का हक नहीं

जैन समाज को लेकर इंदौर फैमिली कोर्ट का एक ताजातरीन फैसला विवाद का कारण बना है। कोर्ट ने जैन समाज को अल्पसंख्यक बताते हुए तलाक की याचिकाएं खारिज कीं। इस पर जैन समाज ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जहां पर सुनवाई 18 मार्च को होगी।

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Sandeep Kumar
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इंदौर फैमिली कोर्ट का फैसला जैन समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है। कोर्ट ने जैन समाज के दंपती के तलाक की याचिका खारिज कर दी, इस आधार पर कि जैन समाज हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक नहीं ले सकता क्योंकि इसे अल्पसंख्यक वर्ग में माना गया है। इसके खिलाफ जैन समाज ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

कोर्ट का निर्णय और जैन समाज की आपत्ति

इंदौर फैमिली कोर्ट के इस फैसले पर जैन समाज के विभिन्न संगठनों ने आपत्ति जताई है। विश्व जैन संगठन और दिगंबर जैन सोशल ग्रुप फेडरेशन के मीडिया प्रभारी राजेश जैन ने इस फैसले को गलत ठहराया। उनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से जैन समाज के वैवाहिक मामलों का निपटारा हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही हो रहा था, फिर अचानक इस फैसले ने जैन समाज को अल्पसंख्यक क्यों घोषित किया।

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'जैन धर्म काफी पुराना'

राजेश जैन ने जैन धर्म को लेकर कहा कि जैन धर्म का इतिहास रामधारी सिंह दिनकर की पुस्तक "संस्कृति" में भी उल्लेखित है और इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया में भी यह लिखा गया है कि जैन धर्म के 23 तीर्थंकर पहले से थे। उन्होंने यह भी कहा कि रामधारी सिंह दिनकर की किताब में मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले सबूत जैन धर्म से जुड़े हैं, जो इसके प्राचीन अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं।

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फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में दलील

इस फैसले के खिलाफ जैन समाज ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एडवोकेट दिलीप सिसोदिया ने दलील दी कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2B के तहत जैन, बौद्ध और सिख समुदायों पर भी यह लागू होता है। इसके बाद हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी और इस मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को तय की।

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क्या है जैन समाज का मानना?

राजेश जैन ने कहा कि जैन धर्म का अस्तित्व हजारों साल पुराना है और इसे सनातन धर्म का हिस्सा माना जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि वोट मांगते समय नेता जैन समाज को सनातनी कहते हैं, लेकिन कोर्ट इस बात को नहीं मान रहा। यह जैन समाज के साथ अत्याचार है।

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