मध्यप्रदेश में माध्यमिक शिक्षक भर्ती 2025 को लेकर विवाद गहरा गया है। सरकारी कर्मचारियों (प्राथमिक शिक्षक) और अतिथि शिक्षकों के लिए आवेदन प्रक्रिया में विसंगतियों के चलते कई उम्मीदवार असमंजस में हैं। इस मुद्दे को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें तत्काल सुनवाई की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस से विशेष अनुमति लेकर यह मामला दोपहर 2:30 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया। जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने इस मामले को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार को दो दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
सरकारी कर्मचारी नहीं भर पा रहे हैं फॉर्म
मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में शिक्षक भर्ती के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शुरू की गई। आवेदन पोर्टल पर केवल दो विकल्प दिए गए हैं पहला विकल्प "सरकारी कर्मचारी" और दूसरा "अतिथि शिक्षक" का है। यहां समस्या यह है कि दोनों विकल्पों को एक साथ नहीं चुना जा सकता, जिससे वे उम्मीदवार जो सरकारी कर्मचारी भी हैं और अतिथि शिक्षक का अनुभव भी रखते हैं, अपने वास्तविक विवरण दर्ज नहीं कर पा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि इस विसंगति के चलते वे भर्ती प्रक्रिया में मिलने वाली आयु सीमा में छूट और अतिथि शिक्षक श्रेणी के लाभ से वंचित हो रहे हैं। यह मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा सेवा (शिक्षकीय संवर्ग) सेवा शर्तें एवं भर्ती नियम, 2018 के खिलाफ है।
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सरकारी कर्मचारियों को नहीं मिली पात्रता
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता धीरज तिवारी ने तर्क दिया कि "प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को भर्ती प्रक्रिया में अपने रोजगार की जानकारी देना अनिवार्य होता है। लेकिन इस बार आवेदन पोर्टल पर ऐसा करने की अनुमति नहीं दी गई है। यह शर्त पूरी तरह असंवैधानिक और नियमों के विरुद्ध है। इससे हजारों उम्मीदवार प्रभावित हो रहे हैं। याचिकाकर्ता के अनुसा मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा सेवा भर्ती नियम, 2018 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो सरकारी कर्मचारियों को अतिथि शिक्षक श्रेणी से बाहर करता हो। भर्ती में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उम्मीदवारों को सही जानकारी दर्ज करने की अनुमति मिलनी चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने उदाहरण देते हुए बताया कि 2023 में आयोजित उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती में कई प्राथमिक शिक्षक, जो पहले से सरकारी सेवा में थे, उन्होंने गेस्ट फैकल्टी का चयन किया और उच्च माध्यमिक शिक्षक पद पर नियुक्त हुए। ऐसे में यह साफ है कि वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में लगाया गया प्रतिबंध पूरी तरह से मनमाना और अवैध है।
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तत्काल सुनवाई की मांग हुई पूरी
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं की मांग को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई के लिए तत्काल अनुमति दी और दोपहर 2:30 बजे जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने इस पर सुनवाई हुई।
न्यायालय ने सरकार को दो दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि "शिक्षक भर्ती प्रक्रिया लाखों उम्मीदवारों के भविष्य से जुड़ी हुई है। ऐसे में भर्ती नियमों में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता या मनमानी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।"
कोर्ट ने सरकार से तीन प्रश्नों में स्थित साफ करने को कहा...
- आवेदन प्रक्रिया में इस तरह की शर्त क्यों रखी गई?
- सरकारी कर्मचारी होते हुए भी अतिथि शिक्षक का लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा?
- क्या यह भर्ती नियमों और समान अवसर के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है?
सरकार ने यह रखा पक्ष
सरकार की ओर से 11 फरवरी 2025 को जारी आदेश में कहा गया कि "जो उम्मीदवार सरकारी कर्मचारी हैं और अतिथि शिक्षक के रूप में अनुभव रखते हैं, वे अतिथि शिक्षक श्रेणी के लाभ के पात्र नहीं होंगे।" सरकार का तर्क है कि यह नियम संभावित दोहरे लाभ (Double Benefits) को रोकने के लिए लागू किया गया है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह पूरी तरह अवैध और अनुचित है, क्योंकि दोनों श्रेणियों के लाभ अलग-अलग प्रकृति के हैं।
अब 22 फरवरी को होगी सुनवाई
इस मामले की अगली सुनवाई दो दिन बाद होगी, जिसमें सरकार को अपना जवाब दाखिल करना होगा। यदि सरकार अपना पक्ष स्पष्ट नहीं कर पाती है, तो हाईकोर्ट इस मामले में कड़े निर्देश जारी कर सकता है।याचिकाकर्ताओं को उम्मीद है कि अदालत इस नियम को असंवैधानिक घोषित कर भर्ती प्रक्रिया में संशोधन का आदेश देगी। इस मामले पर अब पूरे प्रदेश के शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों की नजरें टिकी हुई हैं।