शिवपुरी के रहने वाले सुरेंद्र कुमार झा ( Surendra Kumar Jha ) पिछले चार साल से बेरोजगार और मानसिक रूप से बीमार हैं। वे हाल ही में एक गंभीर धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं। 23 अगस्त को जीएसटी (GST) के दो अधिकारी उनके घर पहुंचे और उन्हें सूचित किया कि उनके नाम पर एक फर्म मेसर्स एस के इंटरप्राइजेज (M/s S K Enterprises) रजिस्टर्ड है, जिसने 54 करोड़ रुपए का लेन-देन किया है। इस खबर ने सुरेंद्र और उनके परिवार को हक्का-बक्का कर दिया, क्योंकि उन्होंने कभी भी ऐसी कोई फर्म नहीं चलाई थी और 54 करोड़ रुपए जैसी बड़ी रकम का उन्होंने कभी सपना भी नहीं देखा था।
फर्जी फर्म बनाकर करोड़ों का खेल
जीएसटी विभाग की जांच में पता चला कि सुरेंद्र कुमार झा के नाम पर फर्जी फर्म बनाई गई थी। इसका इस्तेमाल कर फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit) का दावा किया गया था। यह जीएसटी चोरी का एक सामान्य तरीका है, जिसमें टैक्स क्रेडिट का दुरुपयोग कर सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया जाता है। हर साल जीएसटी विभाग ऐसे सैकड़ों मामलों की जांच करता है। इस वर्ष भी 15 अगस्त से अब तक करीब 100 बोगस फर्म्स का खुलासा हुआ है, जिन्होंने करीब 101 करोड़ रुपए की टैक्स चोरी की है।
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पैन कार्ड का दुरुपयोग कर बनाई गई फर्जी फर्म
इसी तरह का एक और मामला ग्वालियर के प्रमोद दंडोतिया के साथ भी हुआ, जो जीवाजी विश्वविद्यालय से एमए अंग्रेजी की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें भी आयकर विभाग से 46 करोड़ रुपए के लेन-देन का नोटिस मिला। प्रमोद ने बताया कि उन्होंने कभी भी इस तरह का कोई कारोबार नहीं किया और उन्हें शक है कि उनके पैन कार्ड का दुरुपयोग कर किसी ने उनके नाम पर फर्जी फर्म बनाई है। प्रमोद ने इस मामले की शिकायत ग्वालियर एसपी से की है।
आधार वेरिफिकेशन के बिना कैसे मिलते हैं जीएसटी नंबर?
जीएसटी विभाग के अधिकारी ने बताया कि हर महीने करीब 100 फर्म्स की जांच की जाती है, जिनमें से कई फर्जी पाई जाती हैं। बोगस फर्म्स का मुख्य उद्देश्य इनपुट टैक्स क्रेडिट का दुरुपयोग कर सरकार से पैसे वसूलना होता है। इस तरह की धोखाधड़ी में आम लोग फंस जाते हैं, जिनके नाम का इस्तेमाल कर फर्जी फर्म बनाई जाती है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी नंबर हासिल करने के लिए आधार वेरिफिकेशन अनिवार्य होता है, लेकिन कई बार सेटिंग के जरिए बिना उचित वेरिफिकेशन के भी जीएसटी नंबर मिल जाता है। ऐसे मामलों में इंस्पेक्टर की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया जाता है और फर्जी फर्म्स गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के नाम पर बनाई जाती हैं।
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