किसानों के विरोध के बीच सिंहस्थ लैंड पूलिंग निरस्त, सीएम मोहन यादव बोले- सिंहस्थ का वैभव देखेगा विश्व

मध्य प्रदेश सरकार ने सिंहस्थ लैंड पूलिंग वापस ले लिया है। यह फैसला किसानों की आपत्ति के बाद लिया गया। भूमि अधिग्रहण अब अस्थायी मॉडल पर होगा। किसान स्थायी निर्माण को लेकर असहमत थे।

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Sandeep Kumar
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BHOPAL. किसानों के विरोध के बीच एमपी सरकार ने सिंहस्थ लैंड पूलिंग निरस्त कर दिया है। भोपाल में सीएम डॉ.मोहन यादव ने किसानों संग बैठक में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि किसानों की भावना का सम्मान किया गया है। विश्व सिंहस्थ का वैभव देखेगा।

अब भूमि अधिग्रहण पहले की तरह अस्थायी व्यवस्था से होगा। किसान अपनी भूमि पर स्थायी निर्माण का विरोध कर रहे थे। सरकार ने पहले सहमति से लैंड पूलिंग का प्रयास किया था। भारतीय किसान संघ भी इस व्यवस्था से असहमत था।

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सीएम मोहन यादव की बैठक

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने दिल्ली से लौटकर सोमवार को किसान प्रतिनिधियों संग बैठक की। इस बैठक में किसान संघ और पार्टी पदाधिकारी शामिल हुए। बैठक में उज्जैन के जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद थे। इस दौरान सिंहस्थ आयोजन पर विस्तृत चर्चा हुई।

सभी पक्षों ने भव्य आयोजन पर सहमति दी। साधु-संतों और किसानों के हितों का ध्यान रखने की बात हुई। चर्चा के बाद सिंहस्थ लैंड पूलिंग वापस लेने का फैसला हुआ। मुख्यमंत्री ने विभागों को आदेश जारी करने के निर्देश दिए ताकि किसी तरह का भ्रम न रहे। किसान संघ ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया।

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डेरा डालो आंदोलन का किया था ऐलान 

किसान संघ का कहना था कि स्थायी निर्माण से उनकी आजीविका खत्म होगी। सिंहस्थ 2028 में श्रद्धालुओं की संख्या अधिक रहेगी। अब भूमि पहले की तरह अस्थायी रूप से ली जाएगी। किसानों को नियमानुसार भुगतान किया जाएगा।

किसान संघ और स्थानीय संगठन सिंहस्थ के लिए लैंड पूलिंग का विरोध कर रहे थे। मंगलवार से डेरा डालो आंदोलन का ऐलान किया गया था। मामला पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा और कई बैठकें हुईं। सरकार ने लैंड पूलिंग की आवश्यकता बताई। विरोधियों ने अन्य कुंभ में बिना लैंड पूलिंग व्यवस्था का उदाहरण दिया। भूमि अधिग्रहण पर फैसला नहीं होने से सिंहस्थ के काम प्रभावित हो रहे थे।

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2800 हेक्टेयर जमीन है उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र में

उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र में करीब 2800 हेक्टेयर भूमि है। इसमें 850 हेक्टेयर शासकीय भूमि है। बाकी भूमि निजी स्वामित्व में है। सरकार यहां स्थायी सुविधाएं विकसित करना चाहती थी। इसके लिए किसानों की भूमि लैंड पूलिंग से ली जानी थी। बदले में उन्हें निश्चित क्षेत्र और भुगतान दिया जाता।

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