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मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन का कण-कण पावन है। यहां स्वयं राजाधिराज महाकाल विराजमान हैं। इस नगरी को और भी खास बनाती है मोक्षदायिनी शिप्रा नदी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, समुद्र मंथन के समय अमृत निकला था। उस अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों में छीना-झपटी हुई। उस अमृत की कुछ दिव्य बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरीं थीं।
इनमें एक शिप्रा नदी का तट भी शामिल है। इसी कारण, यहां हर 12 साल में सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होता है। इस दौरान 9 ग्रहों का महासंयोग बनता है।
यह सिर्फ एक पर्व नहीं बल्कि मोक्ष और सनातन संस्कृति का दिव्य समागम है। यहां एक डुबकी जीवन के सारे पाप धो देती है। इस बार 2028 में सिंहस्थ महाकुंभ का आयोजन होने वाला है। आज हम सिंहस्थ की कुछ रोचक बातों को जानेंगे।
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अमृत कलश की कहानी
हिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों में समुद्र मंथन की एक बहुत बड़ी कहानी है। जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र को मथा, तो उसमें से चौदह अनमोल रत्न निकले। सबसे आखिर में निकले थे, देवों के वैद्य भगवान धन्वंतरि जो अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।
असुरों से अमृत को बचाने के लिए देवताओं में छीना-झपटी शुरू हो गई। इसी खींचतान के दौरान, अमृत से भरा कलश छलक गया और उसकी कुछ दिव्य बूंदें धरती पर चार जगहों पर गिरीं:
हरिद्वार (गंगा नदी पर)
प्रयागराज (गंगा, यमुना, सरस्वती संगम पर)
नासिक (गोदावरी नदी पर)
उज्जैन (शिप्रा नदी पर)
मान्यता है कि अमृत की बूंदें गिरने के कारण ही शिप्रा नदी का जल हमेशा के लिए पवित्र और मोक्षदायनी बन गया। इसीलिए, उज्जैन में शिप्रा (उज्जैन सिंहस्थ 2028) के तट पर एक डुबकी लगाने मात्र से, भक्तों के सारे पाप धुल जाते हैं और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
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क्यों होता है सिंहस्थ का आयोजन
उज्जैन में जो महाकुंभ का महापर्व लगता है, उसे सिंहस्थ (Simhastha) कहा जाता है। यह कोई साधारण मेला नहीं है, बल्कि ठीक 12 वर्ष के अंतराल पर आयोजित होने वाला एक विशाल धार्मिक उत्सव है।
ग्रहों का महायोग
इस 12 साल के इंतजार के पीछे कोई कैलेंडर नहीं, बल्कि ग्रहों का गणित है।
पौराणिक कथा के मुताबिक, अमृत कलश को असुरों से बचाते हुए देवताओं को लगभग 12 दिन (जो मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर होते हैं) लगे थे।
ज्योतिष के मुताबिक, उज्जैन में सिंहस्थ तभी लगता है जब देव गुरु बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मेष राशि में होते हैं।
यह खास और दुर्लभ महायोग लगभग 12 साल बाद ही बनता है और जब यह योग बनता है। तो माना जाता है कि उस समय शिप्रा नदी का जल अमृत के गुणों से भर जाता है।
इसी खगोलीय और आध्यात्मिक संयोग के कारण, करोड़ों श्रद्धालु, साधु-संत और अखाड़ों के लोग इस महापर्व में शामिल होने के लिए उज्जैन आते हैं और शाही स्नान करते हैं।
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सिंहस्थ महाकुंभ: एक दिव्य समागम
सिंहस्थ महाकुंभ सिर्फ स्नान का पर्व नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म की एकजुटता और संस्कृति का सबसे बड़ा प्रदर्शन है।
साधु-संतों का जमावड़ा:
इस दौरान देश-विदेश से लाखों नागा साधु, महामंडलेश्वर और अखाड़ों के संत-महात्मा उज्जैन में डेरा डालते हैं। वे यहीं से धर्म और आध्यात्म का संदेश पूरी दुनिया को देते हैं।
शाही स्नान:
इस पर्व का सबसे खास और दिव्य पल होता है शाही स्नान। शुभ मुहूर्त में, अखाड़ों के साधु-संत सबसे पहले हाथी, घोड़े और बैंड-बाजों के साथ भव्य शोभायात्रा निकालते हुए शिप्रा के तट पर पहुंचते हैं और पवित्र डुबकी लगाते हैं। इसके बाद आम श्रद्धालु स्नान शुरू करते हैं।
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तो उज्जैन (Ujjain Simhastha 2028) की मोक्षदायिनी शिप्रा नदी महज एक नदी नहीं, बल्कि पौराणिक आस्था और खगोलीय गणना का संगम है। यह पर्व सिर्फ शाही स्नान का मौका नहीं देता। बल्कि यह याद दिलाता है कि सनातन धर्म की जड़ें कितनी गहरी हैं और कैसे ग्रहों का गणित भी मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जाता है।
आने वाला सिंहस्थ 2028 उज्जैन के लिए प्रशासन 18 हजार करोड़ से ज्यादा का बजट आवंटित कर चुका है। जिसमें करीब 14 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है। यह आंकड़ा इस महापर्व की विशालता को दर्शाता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। Latest Religious News
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