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Latest Religious News:दिवाली और छठ पूजा जैसे बड़े त्योहारों के बाद, हिंदू धर्म में एक और बहुत ही पवित्र और खास पर्व आता है। इसे अक्षय नवमी कहते हैं। अक्षय का सीधा मतलब होता है जिसका कभी क्षय न हो, यानी जो हमेशा बना रहे।
शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन हम जो भी शुभ कार्य या दान करते हैं, उसका फल हमें अक्षय मिलता है। इसीलिए इस नवमी को इच्छा नवमी, कूष्मांड नवमी, आरोग्य नवमी और सबसे प्रचलित नाम आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है।
यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है। इस दिन मुख्य रूप से आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। ऐसे में उज्जैन के आचार्य आनंद भारद्वाज जी ने इस पावन पर्व से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई हैं, आइए जानें।
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अक्षय नवमी 2025 की सही तारीख
पंचांग के नियमों के मुताबिक, कोई भी त्योहार उदयातिथि पर ही मनाया जाता है। इसलिए, Akshay Navami 2025 (अक्षय नवमी मुहूर्त) का यह खास पर्व 31 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। ज्योतिषों के मुताबिक, इस साल कार्तिक शुक्ल नवमी पर कई मंगलकारी और दुर्लभ संयोग बन रहे हैं, जो इस दिन को और भी शुभ बना रहे हैं:
तिथि की शुरुआत: 30 अक्टूबर 2025, सुबह 10:06 बजे
तिथि का अंत: 31 अक्टूबर 2025, सुबह 10:03 बजे
वृद्धि योग: इस बार वृद्धि योग का संयोग सुबह से लेकर पूरी रात तक रहेगा।
रवि योग: इसके साथ ही, रवि योग भी पूरे दिन रहेगा।
शिववास योग: अक्षय नवमी पर शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है, जिसका अर्थ है कि भगवान शिव का वास रहेगा।
इन शुभ संयोगों में की गई Akshay Navami 2025 पूजा और दान-पुण्य का फल कई गुना ज्यादा मिलता है, और यह अक्षय फल की प्राप्ति कराता है।
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आंवले के पेड़ की पूजा क्यों
अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा का एक खास धार्मिक महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने और दान देने से अक्षय पुण्य मिलता है।
भक्तजन इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं और इसे भगवान विष्णु और भोलेनाथ शिव का आशीर्वाद पाने का सबसे आसान तरीका मानते हैं।
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माता लक्ष्मी ने शुरू की थी यह परंपरा
आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है, जिसे स्वयं माता लक्ष्मी ने शुरू किया था। कथा के मुताबिक, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में उनके मन में एक साथ भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने की इच्छा हुई।
माता लक्ष्मी विचार करने लगीं कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है? तभी उन्हें याद आया कि जिस तरह तुलसी में भगवान विष्णु के और बेलपत्र में महादेव के गुण पाए जाते हैं, उसी तरह आंवले के पेड़ में इन दोनों का गुण एक साथ मौजूद है।
इसलिए, माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और शिव का संयुक्त प्रतीक मानकर उसकी पूरे मन से पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर दोनों देव भगवान विष्णु और भगवान शिव उसी समय प्रकट हुए।
मां लक्ष्मी ने उस आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर पहले दोनों देवताओं को भोग लगाया और फिर स्वयं भोजन ग्रहण किया। तभी से यह पवित्र परंपरा चली आ रही है।
अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने और उसके नीचे भोजन करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव का आशीर्वाद एक साथ मिलता है। इससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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अक्षय नवमी पूजन विधि
व्रत और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
आंवले के पेड़ की पहचान: पूजा के लिए आंवले के पेड़ के पास जाएं (यदि संभव हो तो)।
सफाई और तैयारी: पेड़ के तने के आस-पास सफाई करें और पूजा की सामग्री (जल, रोली, अक्षत, फूल, धूप-दीप) तैयार रखें।
पेड़ को जल अर्पित करें: पेड़ की जड़ में दूध और शुद्ध जल अर्पित करें।
टीका और सूत्र बांधें: आंवले के पेड़ को रोली-अक्षत का टीका लगाएं और तने पर कच्चा सूत (कलावा) या मौली बांधकर परिक्रमा करें।
धूप-दीप और भोग: धूप, दीप जलाएं और फल, मिठाई या विशेष रूप से आंवले का भोग लगाएँ।
कथा और प्रार्थना:मां लक्ष्मी की कृपा के लिए आंवला नवमी की कथा पढ़ें/सुनें और भगवान विष्णु व शिव से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
वृक्ष के नीचे भोजन: पूजा के बाद आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें (भोजन में आंवले का प्रयोग शुभ माना जाता है)।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News | dharm news today
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