छठ पूजा का तीसरा दिन कल, क्या सिखाता है डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान ?

छठ महापर्व का तीसरा दिन 'संध्या अर्घ्य' के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत के साथ डूबते हुए सूर्य देव और छठी मैया को पहला अर्घ्य देती हैं। यह अर्घ्य संतान के सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए दिया जाता है...

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Kaushiki
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Latest Religious News:छठ महापर्व की आस्था और पवित्रता से भरी इस चार दिवसीय यात्रा में इसके सबसे अहम पड़ाव यानी तीसरे दिन पर आ पहुंचे हैं।

इस विशेष दिन को संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह दिन छठी मैया और सूर्य देव की उपासना का सबसे कठिन और खास दिन माना जाता है। 

खरना के बाद शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत आज अपनी चरम सीमा पर होता है। कल 27 अक्टूबर 2025 को श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट करेंगे।

आइए जानें इस दिन पूजा का सही तरीका और जरूरी सामग्री...

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संध्या अर्घ्य के लिए जरूरी सामग्री

  • बांस का सूप और दौरा (टोकरी): यह प्रसाद रखने और सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए सबसे जरूरी पवित्र पात्र हैं।

  • ठेकुआ और खस्ता: ये गुड़ और आटे से बने छठ पूजा के सबसे मुख्य और पारंपरिक प्रसाद होते हैं।

  • गन्ना (ईख): इसे पूरे डंठल सहित सूर्य देव को प्रिय मानकर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

  • मौसमी फल: केला, सेब, नारंगी आदि विभिन्न प्रकार के फल, जिनके बिना अर्घ्य अधूरा माना जाता है।

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  • मिट्टी के दीये और तेल/घी: घाट पर प्रकाश करने के लिए इनका उपयोग होता है (कम से कम 5 दीये)।

  • कच्चा दूध और जल: ये तांबे या पीतल के लोटे में भरकर डूबते सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

  • हल्दी, अदरक का पौधा: पवित्रता और शुभता के प्रतीक के रूप में पूजा में शामिल किए जाते हैं।

  • चावल के लड्डू (कसार): गुड़ और चावल से बना एक पारंपरिक और शुद्ध प्रसाद।

  • नया वस्त्र: व्रती और परिवार के सदस्यों के लिए पीले, हरे या लाल रंग के शुद्ध वस्त्र पहनना आवश्यक है।

  • सिंदूर, रोली, चावल: ये टीका लगाने और पारंपरिक पूजा-पाठ के लिए इस्तेमाल होते हैं।

  • तांबे या पीतल का लोटा/कलश: सूर्य को अर्घ्य देने के लिए विशेष रूप से पवित्र पात्र।

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संध्या अर्घ्य की पूजा विधि

छठ का तीसरा दिन पूरी तरह से सूर्य देव की शक्ति प्रत्यूषा को समर्पित है। शाम के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है, जो हमें यह सिखाता है कि जीवन में हर शुरुआत का अंत निश्चित है। हमें डूबते हुए का भी सम्मान करना चाहिए।

  • सूप और दउरा की तैयारी

    व्रती महिलाएं सुबह से ही प्रसाद बनाने और पूजा की सामग्री सजाने में लग जाती हैं। बांस के बने सूप और टोकरी में सभी प्रसाद और फल को बड़े ही सलीके से सजाया जाता है। इस कार्य में घर के सभी सदस्य सहयोग करते हैं।

  • घाट पर जाना

    शाम होते ही, व्रती महिलाएं अपने पूरे परिवार और रिश्तेदारों के साथ, सिर पर टोकरी लेकर गाजे-बाजे और छठ गीतों के साथ नदी, तालाब या घर पर बनाए गए घाट की ओर निकलती हैं। इस समय पूरा माहौल भक्ति और उत्साह से भरा होता है।

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    • कोसी भरना

      अर्घ्य देने के बाद कई जगहों पर कोसी भरने की रस्म निभाई जाती है। इसमें बांस की टोकरी के नीचे गन्ने का एक छोटा मंडप बनाकर, उसके अंदर मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं। प्रसाद (छठ पूजा की विधि, छठ पूजा का महत्व) को रखकर रात भर रखा जाता है। यह पूरी रात छठी मैया के व्रत कथा और लोक गीतों को गाने में बितती है।

    डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News 

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