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Latest Religious News: दिवाली के ठीक बाद शुरू होने वाला छठ पूजा का त्योहार सिर्फ एक पर्व नहीं है। ये प्रकृति और भगवान सूर्य के लिए गहरी आस्था और कृतज्ञता व्यक्त करने का महापर्व है। यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
चार दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान में व्रती महिलाएं और पुरुष 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इसमें अस्त होते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
इस साल, छठ पूजा 2025 की शुरुआत 25 अक्टूबर से हो रही है। यह 28 अक्टूबर को संपन्न होगा। कल 25 अक्टूबर 2025 नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत होगी। ऐसे में आइए जानें छठ पूजा की विधि...
पहला दिन: नहाय-खाय (25 अक्टूबर 2025)
सूर्य उपासना (छठ पूजा का महत्व) के इस महान पर्व की शुरुआत 'नहाय-खाय' से होती है। यह शब्द दो क्रियाओं से मिलकर बना है: 'नहाय' यानी स्नान करना और 'खाय' यानी खाना।
पूजा विधि और महत्व:
पवित्र स्नान:
इस दिन व्रती किसी पवित्र नदी, तालाब या गंगाजल से स्नान करते हैं। मान्यता है कि यह स्नान केवल शरीर की नहीं, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धता के लिए किया जाता है।
घर की शुद्धता:
स्नान के बाद पूरे घर की साफ-सफाई की जाती है और रसोई को शुद्ध किया जाता है। इस दिन से घर में सात्त्विक वातावरण बन जाता है।
सात्त्विक भोजन:
व्रती सिर्फ एक बार भोजन ग्रहण करते हैं। यह भोजन बेहद शुद्ध और सात्त्विक होता है, जिसमें लहसुन, प्याज या किसी भी तामसिक वस्तु का इस्तेमाल नहीं होता।
प्रसाद:
नहाय-खाय के दिन मुख्य रूप से कद्दू की सब्जी, चना दाल और बिना पॉलिश वाला चावल बनाया जाता है। इसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पण किया जाता है। उसके बाद ही व्रती इस भोजन को ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। यह दिन शरीर, मन और आत्मा को आने वाले कठोर उपवास के लिए तैयार करने का प्रतीक है।
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दूसरा दिन: खरना या लोहंडा (26 अक्टूबर 2025)
नहाय-खाय के अगले दिन 'खरना' होता है, जिसे 'लोहंडा' भी कहा जाता है। यह दिन शुद्धिकरण का सबसे महत्वपूर्ण चरण माना जाता है।
पूजा विधि और महत्व:
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं।
खीर और रोटी का प्रसाद:
शाम को, सूर्य देव की पूजा करने के बाद, छठी मैया के लिए विशेष प्रसाद बनाया जाता है। इसमें गुड़ और चावल की खीर और गेहूं के आटे की पूड़ियां या रोटी बनाई जाती है।
पहला भोजन:
व्रती इसी प्रसाद को ग्रहण करके अपना 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करते हैं। इस प्रसाद को 'खरना का प्रसाद' कहते हैं। इसे ग्रहण करने के बाद व्रती जल भी नहीं पीते। इस दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही व्रती का कठोर छठ पूजा व्रत विधिवत शुरू हो जाता है।
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तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025)
यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, जब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
शुभ समय (द्रिक पंचांग के मुताबिक):
शष्ठी तिथि प्रारंभ: 27 अक्टूबर सुबह 6:04 बजे
सूर्यास्त (संध्या अर्घ्य): शाम 6:08 बजे
पूजा विधि और महत्व
बांस की टोकरी (सूप) की तैयारी:
व्रती और उनके परिजन फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, और अन्य पारंपरिक प्रसाद को बांस के बने सूप या दउरा में सजाते हैं।
घाट पर जाना:
पूरे परिवार के साथ गाजे-बाजे के साथ छठ घाट (नदी, तालाब या कृत्रिम घाट) पर जाते हैं।
संध्या अर्घ्य:
सूर्यास्त के समय, व्रती घुटनों तक पानी में खड़े होकर, सूर्य देव के डूबते रूप को दूध और गंगाजल से अर्घ्य देते हैं। सभी भक्त सूर्य देव से आरोग्य, सुख-समृद्धि और संतान की कामना करते हैं।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर 2025)
यह पर्व का अंतिम दिन होता है, जब उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।
शुभ समय (द्रिक पंचांग के मुताबिक):
शष्ठी तिथि समाप्त: 28 अक्टूबर सुबह 7:59 बजे
सूर्योदय (उषा अर्घ्य): सुबह 6:36 बजे
पूजा विधि और महत्व:
व्रती घाट पर सूर्योदय से पहले पहुंचते हैं। सूर्य की पहली किरण दिखते ही उसी तरह दूध और जल से सूर्य देव को अंतिम अर्घ्य देते हैं।
छठी मैया की पूजा:
अर्घ्य के बाद छठी मैया से सुख-शांति की प्रार्थना की जाती है।
पारण (व्रत तोड़ना):
इसके बाद व्रती घाट पर ही अदरक और गुड़ या फिर छठी मैया के प्रसाद को खाकर अपना 36 घंटे का कठोर निर्जला व्रत तोड़ते हैं। यह प्रसाद सबसे पहले परिवार और दोस्तों में बांटा जाता है। इस तरह यह महान छठ पूजा व्रत संपन्न होता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News
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