बैकुंठ चतुर्दशी की रात उज्जैन-वाराणसी में होती है खास पूजा, जानें हरिहर मिलन के इस अद्भुत पर्व के बारे में

बैकुंठ चतुर्दशी की रात काशी और उज्जैन के मंदिरों में शिव और विष्णु के मिलन की अलौकिक आरती होती है। इस पवित्र रात को बैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं, जब भगवान शिव श्री हरि विष्णु को सृष्टि का कार्यभार सौंपते हैं।

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Kaushiki
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Latest Religious News:बैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म के सबसे खास और गोपनीय त्योहारों में से एक है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है, जो इस साल 4 नवंबर को है। इस रात को सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि दो परम शक्तियों महादेव शिव और श्री हरि विष्णु का मिलन पर्व माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, चातुर्मास में भगवान विष्णु जब सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंपते हैं, तो चार महीने बाद यानी बैकुंठ चतुर्दशी की रात को शिवजी वापस श्री हरि को यह जिम्मेदारी सौंपते हैं।

इस पवित्र आदान-प्रदान के साक्षी बनने के लिए काशी और उज्जैन के मंदिरों में विशेष आरती और पूजा का आयोजन होता है। इसे ही कुछ स्थानों पर देव-दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है।

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उज्जैन: महाकाल और गोपाल मंदिर में हरिहर मिलन

धर्म नगरी उज्जैन, जहां काल के स्वामी बाबा महाकाल विराजते हैं वहां बैकुंठ चतुर्दशी का दृश्य हृदय को छू लेने वाला होता है।

महाकाल मंदिर की परंपरा

महाकाल मंदिर में सदियों पुरानी हरिहर मिलन की परंपरा निभाई जाती है। इस विशेष रात में, भगवान महाकाल की ओर से उनके प्रतिनिधि सिर पर चांदी के थाल में पुष्पमालाएं और भोग लेकर निकलते हैं।

यह शोभायात्रा महाकाल मंदिर से शुरू होकर नगर के मुख्य गोपाल मंदिर तक जाती है, जहां भगवान विष्णु का वास है। गोपाल मंदिर में ये वस्तुएं भगवान विष्णु को अर्पित की जाती हैं।

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अलौकिक आरती का वर्णन

गोपाल मंदिर में, बैकुंठ चतुर्दशी की मध्यरात्रि को भगवान विष्णु की विशेष आरती होती है। इस समय मंदिर का वातावरण दिव्य होता है। भक्तगण 'जय श्री हरि' और 'जय महाकाल' के जयकारों के साथ इस मिलन का उत्साह मनाते हैं।

इस दिन श्री हरि विष्णु को विशेष रूप से तुलसीदल और पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। जबकि भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का विशेष महत्व होता है। यह आरती दोनों देवों के एक होने का प्रतीक है, जो सृष्टि के संतुलन को दर्शाती है।

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वाराणसी: काशी विश्वनाथ और बिन्दु माधव का उत्सव

पुराणों में काशी को भगवान शिव की नगरी कहा गया है। यहां के काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) में बैकुंठ चतुर्दशी की रात अद्भुत श्रद्धा का सागर उमड़ता है।

विश्वनाथ धाम की विशेष साज-सज्जा

काशी विश्वनाथ धाम में इस रात को भव्य रूप से सजाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से यह माना जाता है कि भगवान शिव अपनी नगरी के स्वामी होते हुए भी, अपने प्रिय मित्र भगवान विष्णु के स्वागत के लिए तैयार होते हैं।

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विष्णु को मिलता है बेलपत्र

काशी की एक अनूठी परंपरा है जो कहीं और देखने को नहीं मिलती। बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) के दिन भगवान विश्वनाथ की ओर से भगवान विष्णु को उनकी पूजा में उपयोग होने वाला बेलपत्र समर्पित किया जाता है। बदले में भगवान विष्णु उन्हें तुलसीदल भेंट करते हैं।

यह आदान-प्रदान स्पष्ट रूप से शिव और विष्णु के एकाकार होने की भावना को मजबूत करता है। इस दिन काशी के बिन्दु माधव मंदिर में भी विशेष आरती और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।

यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पुण्य लाभ लेने के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि इस रात को व्रत रखने और दोनों देवों की उपासना करने से व्यक्ति को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, जो मोक्ष का द्वार है।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News

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