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Latest Religious News: धर्म और आस्था की नगरी उज्जैन में दिवाली का उत्सव किसी भी और जगह से बिल्कुल अलग होता है। यहां के कण-कण में बसने वाले राजा बाबा महाकाल को साक्षात नगर का अधिपति माना जाता है। इसलिए यहां कोई भी बड़ा पर्व तब तक शुरू नहीं होता, जब तक महाकाल मंदिर के आंगन में उसका शुभारंभ न हो जाए।
यह एक अनूठी और सदियों पुरानी परंपरा है। ऐसे में देश में सबसे पहले दिवाली का पर्व बाबा महाकाल के दरबार में मनाया जाता है। जिस दिन पूरे देश में छोटी दिवाली यानी रूप चतुर्दशी होती है, उसी दिन तड़के सुबह बाबा महाकाल के आंगन में दिवाली मनाई जाती है। साल 2025 में दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर को है। ऐसे में आइए जानें महाकाल नगरी की दिवाली कैसी होती है।
रूप चतुर्दशी पर बाबा को लगता है उबटन
परंपरा के मुताबिक रूप चतुर्दशी के दिन तड़के सुबह होने वाली भस्म आरती से पहले, बाबा महाकाल को सुगंधित उबटन लगाया जाता है। यह उबटन कोई साधारण नहीं होता, इसे पुजारी परिवार की महिलाएं मिलकर विशेष रूप से तैयार करती हैं।
शीतकाल का संकेत
उबटन लगाने की यह परंपरा एक और महत्वपूर्ण संकेत देती है। इसी दिन से शीत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। उबटन के बाद, बाबा महाकाल को गर्म जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद से, फाल्गुन पूर्णिमा तक बाबा को सिर्फ गर्म जल से ही स्नान कराने की परंपरा है।
अन्नकूट का महाभोग और फुलझड़ी आरती
उबटन और स्नान के बाद, बाबा महाकाल का अद्भुत श्रृंगार किया जाता है। उन्हें नए वस्त्र, आभूषण और फूलों की मालाएं पहनाई जाती हैं। इस दिन अन्नकूट का महाभोग लगाया जाता है। यह भोग कई तरह के व्यंजनों से तैयार होता है। ये किसानों द्वारा दिए गए नए अन्न का प्रतीक होता है।
फुलझड़ी जलाकर दिवाली
भोग लगाने के बाद मंदिर के पुजारी और पुरोहितों द्वारा भगवान महाकाल के सामने प्रतीक स्वरूप फुलझड़ी जलाई जाती है। यह फुलझड़ी जलाना ही महाकाल के दरबार में दीपोत्सव की आधिकारिक शुरुआत मानी जाती है। देश में कहीं भी दिवाली की आतिशबाजी शुरू होने से पहले काल के काल महाकाल के आंगन में दीप जल जाता है।
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परंपरा का गहरा धार्मिक महत्व
उज्जैन के महाकाल मंदिर में दिवाली की यह अनोखी शुरुआत इस बात का प्रतीक है कि उज्जैन के लोग अपने आराध्य महाकाल को साक्षात राजा मानते हैं। हर त्योहार उन्हीं के साथ मनाते हैं। यह परंपरा दिखाती है कि बाबा महाकाल केवल देवता नहीं, बल्कि एक जागृत शासक हैं।
हर उत्सव की शुरुआत उन्हीं के आशीर्वाद से होनी चाहिए। मान्यता है कि जब राजा महाकाल के दरबार में दिवाली शुरू होती है तो पूरे देश में सुख, शांति और समृद्धि फैलती है। यह सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति और अटूट धार्मिक श्रद्धा का अद्भुत संगम है।
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दिवाली पर महाकाल दर्शन के लिए खास इंतजाम
भस्म आरती:
दिवाली के टाइम बहुत भीड़ होती है इसलिए भस्म आरती की ऑनलाइन बुकिंग पहले ही फुल हो जाती है। अगर जाना है तो 10-15 दिन पहले ही ऑफिशियल वेबसाइट से अपनी आईडी प्रूफ देकर बुकिंग करा लें।
सामान्य दर्शन का समय:
मंदिर के गेट सुबह से देर रात तक खुले तो रहते हैं पर भीड़ बहुत-बहुत ज्यादा होती है, इसलिए तैयारी करके जाएं।
लाइन (कतार) व्यवस्था:
दर्शन के लिए आपको महाकाल लोक से लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ सकता है। भीड़ को कंट्रोल करने के लिए पूरी बैरिकेडिंग लगी रहती है।
शीघ्र दर्शन:
अगर जल्दी दर्शन करने हैं तो मंदिर में 250 रुपए की रसीद कटवाकर आप शीघ्र दर्शन कर सकते हैं। पर दिवाली के दिन यह लाइन भी बहुत व्यस्त रहती है।
तैयारियां और भीड़ से निपटने के इंतजाम
उज्जैन महाकाल दर्शन सुरक्षा:
दिवाली (दिवाली 2025) पर सुरक्षा बहुत सख्त रहती है। पुलिस के साथ-साथ महाकाल सेना के लोग भी भीड़ को संभालने में मदद करते हैं।
मंदिर की सजावट:
पूरे मंदिर परिसर को रंग-बिरंगी लाइटों, दीयों और सुंदर फूलों से सजाया जाता है। यह दीपोत्सव का नज़ारा वाकई में देखने लायक होता है।
रहने और आने-जाने का इंतजाम:
दिवाली के समय उज्जैन के होटल और धर्मशालाएं पूरी तरह से भर जाते हैं। इसलिए रहने की बुकिंग बहुत पहले करा लें। शहर में ट्रैफिक भी बहुत बढ़ जाता है, इसलिए मंदिर तक जाने के लिए ई-रिक्शा या पैदल चलना सबसे अच्छा रहेगा।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News
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