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Latest Religious News: दिवाली की रौनक खत्म होने और देव दिवाली से ठीक पहले आने वाला यह दिन अपने आप में बहुत चमत्कारी माना जाता है। इस दिन देवों के देव महादेव और सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का मिलन होता है, जिसे 'हरिहर मिलन' भी कहते हैं।
साल 2025 में बैकुंठ चतुर्दशी 4 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह पावन पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आता है। पुराणों में बताया गया है कि, इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से विष्णु जी और शिव जी दोनों की पूजा करते हैं, उनके लिए स्वर्ग यानी बैकुंठ धाम के द्वार खुल जाते हैं।
शिवजी ने की थी विष्णु जी की पूजा
बैकुंठ चतुर्दशी के महत्व के पीछे एक बहुत ही प्यारी और सच्ची कहानी छिपी है, जो शिव और विष्णु जी की अद्भुत भक्ति को दर्शाती है।
पौराणिक कथा का सार
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार भगवान विष्णु ने चार महीने की योग निद्रा पूरी करने के बाद, सृष्टि का कार्यभार फिर से संभालने से पहले, देवाधिदेव महादेव की पूजा करने का संकल्प लिया। वे काशी गए और वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के बाद, उन्होंने भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्पों से पूजने का व्रत लिया।
जब भगवान विष्णु पूजा कर रहे थे, तब उनकी भक्ति को परखने के लिए महादेव ने एक कमल पुष्प को गायब कर दिया। पूजा पूरी करने के लिए जब श्रीहरि को एक पुष्प कम मिला, तो उन्होंने एक पल सोचा कि लोग तो मुझे 'कमल नयन' या 'पुंडरीकाक्ष' (कमल के समान आंख वाले) कहते हैं।
यह विचार आते ही उन्होंने बिना किसी संकोच के, पूजा को पूरा करने के लिए अपनी एक कमल-समान आंख शिवलिंग पर चढ़ाने की तैयारी कर ली। विष्णु जी की इस अगाध भक्ति और प्रेम को देखकर, भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। वे तुरंत प्रकट हुए और विष्णु जी को रोककर कहा कि, "हे विष्णु! तुम्हारे जैसा मेरा भक्त इस पूरे ब्रह्मांड में नहीं है!"
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महादेव का वरदान
प्रसन्न होकर महादेव ने विष्णु जी को यह वरदान दिया कि कार्तिक मास की यह चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। उन्होंने यह भी वरदान दिया कि जो भी मनुष्य इस दिन पहले आपकी (विष्णु जी की) पूजा करेगा, उसे जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति मिलेगी और उसे सीधे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
साथ ही, इसी दिन भगवान शिव ने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया था। इसलिए, इस दिन भक्त पहले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और मध्यरात्रि में उन्हें कमल पुष्प अर्पित करते हैं।
फिर अगले दिन सूर्योदय के समय भगवान शिव की आराधना करते हैं। इस दिन हरिहर मिलन के दर्शन से भक्तों के सारे पाप मिट जाते हैं और मोक्ष का रास्ता खुल जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु का निवास स्थान, बैकुंठ धाम का द्वार आम भक्तों के लिए खुल जाता है।
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बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि
यह पूजा विशेष (भगवान शिव का पूजन) रूप से रात के समय की जाती है, जिसे निशीथ व्यापिनी पूजा कहते हैं, क्योंकि इस दिन हरि और हर की पूजा एक साथ की जाती है।
स्नान और संकल्प: बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों या घर पर ही गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें और हाथ में जल लेकर व्रत तथा पूजा का संकल्प लें।
चौकी और स्थापना: घर के पूजा स्थल या आंगन में एक चौकी स्थापित करें। इस पर भगवान शिव (लिंग या तस्वीर) और भगवान विष्णु (शालिग्राम या तस्वीर) की प्रतिमा को एक साथ स्थापित करें। यह हरि-हर मिलन का प्रतीक है।
दीपक प्रज्वलित करें: देसी घी का एक बड़ा दीपक या कई छोटे दीपक प्रज्वलित करें। इस दिन दीपदान का विशेष महत्व है।
सहस्र कमल (प्रतीकात्मक) की पूजा: भगवान विष्णु की पूजा शुरू करें। उन्हें पीले वस्त्र, चंदन, तुलसीदल और फलों का भोग लगाएं। फिर कमल के फूल चढ़ाएं।
शिव जी की पूजा: इसके बाद भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें बिल्व पत्र, भस्म, श्वेत वस्त्र, दूध और शहद अर्पित करें। शिव जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग न करें।
मुख्य मंत्र जाप: दोनों देवताओं के मंत्रों का जाप करें। विष्णु जी के लिए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' और शिव जी के लिए 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करें।
कथा श्रवण: बैकुंठ चतुर्दशी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें। अंत में कपूर या घी के दीपक से दोनों देवताओं की आरती करें।
दीपदान और पारण: यह पूजा रात में (निशीथ काल) में समाप्त होती है। अगले दिन चतुर्दशी तिथि समाप्त होने पर, यानी पूर्णिमा के दिन, शुभ मुहूर्त में (जिसे पारण का समय कहते हैं) भोजन ग्रहण करके व्रत खोलें। संभव हो तो किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर दान दें।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News
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