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उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में दिवाली का त्योहार इस बार बेहद खास रहा। सिर्फ बेसन के पारंपरिक लड्डू ही नहीं, बल्कि अब बाबा महाकाल को पोषण से भरपूर रागी के लड्डू का भी भोग लगाया गया।
मंदिर समिति ने भक्तों की सेहत का ख्याल रखते हुए महाप्रसाद की यह नई और अनोखी व्यवस्था शुरू की है। इसी पहल के साथ, महाकालेश्वर मंदिर देश का पहला ऐसा मंदिर बन गया है जहां भगवान को भोग लगाने के बाद 'श्रीअन्न' यानी मिलेट्स से बना प्रसाद भक्तों को मिल सकेगा।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस नई और सात्विक प्रसाद परंपरा की शुरुआत की है। मंदिर प्रशासन का मानना है कि महाकाल का प्रसाद केवल आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि भक्तों को जीवनशक्ति देने वाला भी होना चाहिए।
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सेहत का खजाना है रागी लड्डू
रागी जिसे मध्य भारत में मंडुआ भी कहा जाता है, भारतीय पारंपरिक अनाजों में सबसे ज्यादा पौष्टिक माना जाता है। इसे आयुर्वेद में शक्ति और शुद्धता का प्रतीक भी कहा गया है।
रागी के फायदे:
रागी में कैल्शियम, फाइबर और आयरन की मात्रा गेहूं से कहीं ज्यादा होती है।
यह कैल्शियम रिच फूड है, जो हड्डियों को मजबूती देता है।
यह बीपी, ब्लड शुगर लेवल और वजन को कंट्रोल करने में भी मदद करता है।
उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर समिति की इस पहल के पीछे मंशा साफ है कि, भक्तों को आस्था के साथ-साथ सेहत का संदेश भी मिले। आने वाले समय में ऐसे ही दूसरे पारंपरिक प्रसाद, जैसे गेहूं, जौ, मक्का और बाजरा से बने व्यंजन भी महाकाल के भोग में शामिल हो सकते हैं।
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भक्तों के लिए प्रसाद की नई व्यवस्था
बता दें कि महाकाल को भोग लगाने के बाद, दीपावली से ही मंदिर परिसर में लाखों भक्तों के लिए महाप्रसादी काउंटर शुरू कर दिया गया है। यह काउंटर पूरी तरह से देसी और शुद्ध तरीके से तैयार किए गए रागी के लड्डू का प्रसाद बेच रहा है।
शुद्ध सामग्री:
इस लड्डू को बनाने में मुख्य रूप से गुड़, देसी घी और रागी का आटा इस्तेमाल किया गया है। इसमें किसी भी तरह के कृत्रिम रंग या एसेंस का उपयोग नहीं किया गया है।
पैकिंग और कीमत:
प्रसाद की पैकिंग पर 'महाकाल प्रसाद - रागी लड्डू' की मुहर लगाई गई है। इस प्रसाद को 'नो प्रॉफिट नो लॉस' के सिद्धांत पर बेचा जाएगा और यह बेसन के लड्डू प्रसाद के बराबर ही लगभग 400 रुपए प्रति किलो की दर पर 50, 100, 200 और 400 रुपए के पैकेट में उपलब्ध होगा।
स्थानीय किसानों को सपोर्ट:
मंदिर समिति (Mahakaal Darshan) का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य स्थानीय किसानों को बढ़ावा देना है। मंदिर आसपास के उन गांवों से रागी खरीदेगा, जहां इसकी खेती की जाती है। यह कदम न केवल सात्विक प्रसाद सुनिश्चित करेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सहारा देगा। यह नई व्यवस्था महाकाल की नगरी में आस्था और आरोग्यता के संगम की एक नई मिसाल है।
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