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BHOPAL. मध्यप्रदेश को अजब-गजब यूं ही नहीं कहा जाता। यहां शिक्षा के नाम पर जो खेल चल रहा है, वह गजब ही है। पांच-पांच तरह के सरकारी स्कूल... मॉडल स्कूल, एक्सीलेंस स्कूल, सांदीपनी स्कूल, पीएमश्री स्कूल और संस्कृत आवासीय स्कूल चलाने के बावजूद बच्चों की पढ़ाई की हालत बदतर है। ऊपर से वनवासी अंचल में जनजातीय कार्य विभाग के स्कूल अलग, लेकिन नतीजा...बच्चों का भविष्य खंडहर में बैठकर बर्बाद हो रहा है।
नेताओं के भाषण और अफसरों के प्रेजेंटेशन में सुनहरे सपनों का महल सजाया जाता है। दावे किए जाते हैं कि शिक्षा की बुनियाद मजबूत है, प्रदेश में इनोवेशन हो रहा है, लेकिन हकीकत कड़वी है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि असली तस्वीर इतनी डरावनी है कि जिसे देख कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजने से पहले सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
आंकड़े, जो बताते हैं सच्चाई
मध्यप्रदेश में कुल 92 हजार 439 सरकारी स्कूल हैं। इनमें से 5 हजार 600 स्कूलों की इमारतें जर्जर हो चुकी हैं। इनमें से 221 स्कूल अति-जर्जर श्रेणी में हैं, यानी अभी गिरे कि तभी गिरे। बच्चों की पढ़ाई यहां मौत के साए में हो रही है।
इतना ही नहीं, 81 हजार 568 क्लासरूम दुर्दशा की आखिरी हद पर हैं। दीवारें टूटी हैं। छतें टपक रही हैं। खिड़कियों का तो पता ही नहीं है। 67 हजार 34 स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चों के बैठने के लिए अदद कुर्सी-बेंच तक नहीं हैं। बच्चे या तो फर्श पर बैठते हैं या जमीन पर। और 15 हजार 651 स्कूलों में बिजली तक नहीं है। गर्मी में पसीने से तरबतर बच्चे अंधेरे में पढ़ने को मजबूर हैं।
बजट का पहाड़, नतीजा शून्य
सूबे में 2015-16 से लेकर 2025-26 तक दस बरसों में शिक्षा विभाग पर 2 लाख 70 हजार 246 करोड़ रुपए फूंक दिए गए हैं। इस पर जनजातीय कार्य विभाग के स्कूलों का 10 साल का बजट अलग है। इस विभाग की रकम 2 लाख 69 हजार 466 रुपए अलग है। कुल मिलाकर पांच लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का पहाड़ खड़ा कर दिया गया, लेकिन जमीन पर नतीजा, खंडहर, जर्जर, बिना बिजली, बिना फर्नीचर के स्कूल।
2021-22 से 2025-26 के बीच शिक्षा विभाग सिर्फ स्कूलों के निर्माण के नाम पर 1 हजार 714 करोड़ रुपए बहा चुका है, लेकिन बच्चे अब भी ऐसे कमरों में पढ़ रहे हैं, जिनमें दरारें चौड़ी हो चुकी हैं, छत गिरने को तैयार है और बरसात में क्लासरूम तालाब बन जाते हैं।
पढ़ाई या खंडहर दर्शन?
प्रदेश के कई गांवों में स्कूल का नाम है, लेकिन क्लास झोपड़ी में लगती है। कहीं पंचायत भवन में बच्चों को ठूंस दिया जाता है, तो कहीं खुले आसमान के नीचे ब्लैकबोर्ड टांगकर मास्टर जी पढ़ाई कराने की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। अफसर फाइलों में साक्षरता की रिपोर्ट भेजने में व्यस्त हैं।
शिवराज के राज में जर्जर भवन, छत से रिसते पानी के बीच पढ़ाई
सरकार का पूरा ध्यान सीएम राइज यानी सांदीपनी स्कूलों पर है, लेकिन अंचल के ज्यादातर स्कूल जर्जर और बर्बाद हो रहे हैं। स्कूल भवनों की जमीन धंस रही है, दीवारें दरारों से पटी पड़ी हैं और छत से पानी रिस रहा है। प्लास्टर गिर रहा है।
आजादी की वर्षगांठ के मौके पर 'द सूत्र' ने प्रदेश के स्कूलों की बदहाली की स्थिति को मौके पर पहुंचकर जाना है। बच्चों और लोगों से बात की है। यह बातचीत और तस्वीरें दावों की सच्चाई उजागर करने वाली हैं और सरकार को आइना भी दिखाती हैं।
द सूत्र की पड़ताल...
नेगमा पिपरिया का सरकारी स्कूल
सबसे पहले हम आपको ले चलते हैं विदिशा जिले के गांव नेगमा पिपरिया। ये गांव विदिशा संसदीय क्षेत्र का छोटा सा गांव है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
चौहान 18 साल तक प्रदेश में मुख्यमंत्री और इस क्षेत्र से पांच बार सांसद रह चुके हैं। इसके बावजूद इस अंचल के गांव नेगमा पिपरिया के स्कूल की हालत खस्ता है। गांव की माध्यमिक शाला पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। फर्श धंसने से दीवारों में दरार आ गई हैं, छत से पानी रिस रहा है। पूरे भवन के कक्षों के बीम जर्जर हो चुके हैं। उनसे प्लास्टर टूटकर गिर रहा है।
इस स्कूल की दुर्दशा को देखकर सरकार की बेरुखी को आसानी से समझा जा सकता है। स्कूल भवन के धराशायी होने की आशंका को देखते हुए सरपंच ने पंचायत भवन में क्लास लगाने की व्यवस्था कराई है।
बांगची गांव का सरकारी स्कूल
विदिशा संसदीय क्षेत्र के बांगची गांव के स्कूल में सरकार की व्यवस्था का दूसरा नमूना देखने को मिलेगा। गांव के एक छोर पर कीचड़ और गंदगी के बीच स्थित बांगची में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल है। एक दशक पहले शाला का जर्जर भवन ध्वस्त होने के बाद सरकार नया भवन नहीं बनवा सकी है।
अब स्थिति ये है कि गांव की प्राथमिक शाला के दो अतिरिक्त कमरों में कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जा रहा है। इन दो कमरों में से एक की छत से प्लास्टर उखड़ रहा है और बारिश में पानी रिसता है। इस वजह से एक से आठवीं तक की कक्षा एक ही कमरे में लग रही है। गांव के लोग भी नहीं जानते आखिर सरकार को उनके गांव से क्या बुराई है। उनके गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल क्यों नहीं बनवाया जा रहा।
शिक्षा मंत्री जी, देख लो अपने क्षेत्र के स्कूल
गाडरवारा का स्टेशन गंज स्कूल
अब हम आपको दिखाते हैं नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा अंचल के स्कूलों की हकीकत। गाडरवारा के स्कूलों की जमीनी स्थिति दिखाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व राव उदयप्रताप कर रहे हैं। राव इस अंचल से विधायक और प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री हैं। उनके पास पूरे प्रदेश की स्कूल शिक्षा की जिम्मेदारी है।
'द सूत्र' की टीम जब गाडरवारा पहुंची तो शहर के स्टेशन गंज स्कूल की हालत ही खस्ता नजर आई। स्टेशन से चंद मीटर दूर इस एकीकृत परिसर में माध्यमिक और प्राथमिक शालाएं संचालित हैं। माध्यमिक शाला को नया भवन मिल गया है, लेकिन प्राथमिक शाला सौ साल से पुराने अंग्रेजों के जमाने के स्कूल में संचालित है। इस स्कूल के भवन पर बीईओ ऑफिस का कब्जा है और बच्चे खपरैल छत के नीचे पढ़ रहे हैं।
ये है पिठहरा प्राथमिक शाला
गाडरवारा से केवल पांच किलोमीटर दूर यह स्कूल एक महीने पहले यानी 7 जुलाई से पहले तक 1972 में बने भवन में चल रहा था। भवन का छत खपरैल है और दीवारों की दरारों से पानी बैठने से वे कमजोर हो चुकी हैं। अतिरिक्त कक्ष की छत जर्जर होने की वजह से उसका उपयोग कुछ समय पहले ही बंद कर दिया गया था। एक पेड़ की शाखा गिरने के बाद अब स्कूल को नजदीक स्थिति आंगनबाड़ी केंद्र में लगाना पड़ रहा है।
नांदनेर हायर सेकंडरी स्कूल
गाडरवारा विधानसभा के नांदनेर हायर सेकंडरी स्कूल की दूरी शहर से 9 किलोमीटर है। यहां एक ही परिसर में कक्षा 1 से 12वीं तक की कक्षाएं लगती हैं। इस स्कूल के एक हिस्से में ज्यादातर कमरे दो दशक से भी पुराने हैं और उनकी छत से कांक्रीट उखड़ चुका है। बीम के सरिए बाहर आ चुके हैं। छत से पानी रिस रहा है और दीवारें सीलन से पटी हुई हैं। कैंपस देखने के लिए अच्छा है लेकिन सीलन की दुर्गंध के बीच यहां बच्चे पढ़ाई करते मजबूर हैं।
मध्य प्रदेश का बजट एक नजर में...
(राशि करोड़ रुपए में) |
ये स्कूल खराब क्यों होते हैं? क्योंकि नेता-अफसरों के बच्चे तो विदेश में पढ़ते हैं...
हुक्मरान इन स्कूलों की सुध लेने की जरूरत ही महसूस नहीं करते, क्योंकि उनके अपने बच्चे तो इन टूटी दीवारों और टपकती छतों वाले कमरों में पढ़ते ही नहीं। उनके वारिस या तो बड़े शहरों के महंगे निजी स्कूलों में हैं या फिर विदेशों की चमचमाती यूनिवर्सिटियों में पढ़ाई कर रहे हैं।
जरा याद कीजिए, जब आपके इलाके में कोई नेताजी या बड़ा अफसर आने वाला होता है, तो जिस जगह उनका कार्यक्रम होता है, वहां का स्कूल या भवन पल भर में नया नवेला बनकर चमक उठता है। दीवारों पर ताजा पेंट, टूटे फर्नीचर की मरम्मत, बाग-बगीचों में फूल-सबकुछ मानो जादू सा बदल जाता है, लेकिन जैसे ही काफिला लौटता है, बाकी के स्कूल उसी जर्जर हालत में सड़ते रहते हैं।
असल वजह साफ है, इन नेताओं और अफसरों के लिए आम बच्चों के सरकारी स्कूलों की हालत कोई मायने नहीं रखती। उनके अपने बच्चे शहरों के एयर-कंडीशंड क्लासरूम में पढ़ाई कर रहे होते हैं और डिग्री लेने के बाद विदेश चले जाते हैं। नतीजा यह कि यहां के सरकारी स्कूल उनके लिए बस बजट और कागज़ी योजनाओं का एक “फाइल नंबर” बनकर रह जाते हैं।
इनके बच्चे पढ़े विदेश में...
मध्यप्रदेश में ऐसे नेताओं की लंबी लिस्ट है, जिनके बच्चे विदेश में पढ़ें हैं। इनमें दो तो सूबे के मुख्यमंत्री रहे हैं। जी हां, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह विदेश में पढ़े हैं। ऐसे ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय ने भी विदेश से पढ़ाई पूरी की है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महानआर्यमन ने भी विदेशी यूनिवर्सिटी से डिग्री ली है। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की बेटी, कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल भैया, मंत्री विजय शाह, विधायक संजय पाठक की बेटी ने भी विदेश से पढ़ाई की है।
अफसरों की बात करें तो आईएएस नीरज मंडलोई, पूर्व आईएएस योगेंद्र शर्मा, मोहम्मद सुलेमान, पूर्व मुख्य सचिव एसआर मोहंती, आईएएस संजय शुक्ला, संजय दुबे की संतानें भी विदेश में पढ़ीं हैं।
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