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anticipatory-bail-plea-rejected Photograph: (thesootr)
BHOPAL. लोकायुक्त कार्रवाई की जद में आए आरटीओ के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई है। सौरभ के वकील ने भोपाल के विशेष न्यायालय में याचिका लगाई थी, जिसे विशेष न्यायाधीश राम प्रसाद मिश्र की अदालत ने खारिज कर दिया।
सौरव के वकील ने अदालत में दलील दी कि आरोपी लोक सेवक नहीं है, उसे अग्रिम जमानत का लाभ दिया जाए। इस पर न्यायाधीश ने अपने आदेश में उसे लोक सेवक मानने के साथ अपराध की गंभीरता को देखते हुए अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। दरअसल, सौरभ ने वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम के तहत रिटायरमेंट लिया था। इसके बाद वह भोपाल के नामी बिल्डरों के साथ मिलकर प्रॉपर्टी में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा था। कहा जा रहा है कि सौरभ दुबई में है। उसके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया गया है।
सौरभ के वकील ने कार्रवाई को बताया गलत
सौरभ शर्मा के वकील राकेश पाराशर ने लोकायुक्त की कार्रवाई को गलत बताया और इस पर सवाल खड़े किए हैं। एडवोकेट पाराशर के अनुसार सौरभ लोकसेवक नहीं है। इसके बाद भी लोकायुक्त ने उसके घर छापामार कार्रवाई की है, यह पूरी तरह से गलत है। जिस कार में सोना मिला वह भी उसके नाम नहीं है और इस सोने से भी उसका कोई लेना-देना नहीं है। पाराशर का कहना है कि हम चाहते हैं कि हमें अग्रिम जमानत का फायदा मिले। हम जांच में पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार हैं। इससे साफ हो जाएगा कि सौरभ शर्मा के पास बरामद माल कहां से और कैसे आया है।
सौरभ शर्मा ने खरीदा था सवा दो करोड़ का बंगला
सौरभ शर्मा भोपाल के अरेरा कॉलोनी में बंगला नंबर E-7/78 में रहता है। 2015 में उसने इस बंगले को सवा दो करोड़ रुपए में खरीदा था। हालांकि, सौरभ इसे अपना न बताते हुए बहनोई का बंगला बताता है। बंगले की मौजूदा कीमत 7 करोड़ रुपए है। सूत्र बताते हैं कि सौरभ ने नौकरी करते समय यह बंगला किसी और के नाम से खरीदा था। परिवहन विभाग के एक सीनियर अफसर ने बताया कि सौरभ के पिता स्वास्थ्य विभाग में थे और 2016 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए सौरभ ने आवेदन किया था। इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग ने स्पेशल नोटशीट लिखी थी कि उनके यहां कोई पद खाली नहीं है।
सौरभ की पहली पोस्टिंग ग्वालियर परिवहन विभाग में
सौरभ की पहली पोस्टिंग ग्वालियर परिवहन विभाग में अक्टूबर 2016 में कॉन्स्टेबल के पद पर भर्ती हुई थी। मूल रूप से ग्वालियर के साधारण परिवार के सौरभ का जीवन कुछ साल बाद ही बदल गया। कॉन्स्टेबल की नौकरी के दौरान उसका रहन-सहन काफी ऐशो आराम का हो गया था। इसकी शिकायतें विभाग और अन्य जगहों पर की जाने लगी थी। कार्रवाई से बचने के लिए सौरभ ने वॉलंटरी रिटायरमेंट स्कीम ( वीआरएस ) के तहत रिटायरमेंट ले लिया। इसके बाद भोपाल के नामी बिल्डरों के साथ मिलकर प्रॉपर्टी में निवेश करना शुरू कर दिया।
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