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देश में अब नेत्रहीन (Blind) लोग भी जज बन सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मध्य प्रदेश के उस नियम को भी रद्द कर दिया है जो इसमें बाधा बन रहा था। एमपी का यह नियम दृष्टिहीन लोगों को न्यायिक सेवाओं (Judicial Services) में शामिल होने से रोकता था।
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा का नियम रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने एमपी के न्यायिक सेवा परीक्षा नियम, 1994 के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक मानते हुए ने रद्द कर दिया। इन प्रावधानों के तहत नेत्रहीन और कमजोर दृष्टि (Low Vision) वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में शामिल होने से रोका गया था। SC की बेंच में जस्टिस जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) और जस्टिस आर महादेवन (Justice R Mahadevan) शामिल थे। उन्होंने इस नियम को भेदभावपूर्ण करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दृष्टिहीनों को भी समान अधिकार
अदालत ने कहा कि भारत में सभी नागरिकों को समान अवसर मिलना चाहिए। दृष्टिहीन भी न्यायिक सेवाओं में अपना योगदान दे सकते हैं। संविधान (Constitution) समानता और न्याय का अधिकार देता है। यह फैसला दृष्टिहीन युवाओं के लिए उम्मीद की किरण है। अब वे न्यायपालिका में अपना भविष्य बना सकते हैं। कई देशों में पहले ही दृष्टिहीन जज काम कर रहे हैं। भारत भी इस दिशा में आगे बढ़ा है।
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कैसे शुरू हुआ यह मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला तब सामने आया जब एक नेत्रहीन उम्मीदवार की मां ने पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा। इस पत्र को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका के रूप में स्वीकार किया गया। इसके बाद, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया गया।
कोर्ट ने जांच में पाया कि परीक्षा में नेत्रहीन उम्मीदवारों को आरक्षण नहीं दिया गया था, जो विकलांगता अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी कर न्यूनतम अंकों वाले उम्मीदवारों को इंटरव्यू में शामिल होने की अनुमति दी।
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