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MP News : नौकरशाहों के बीच कामकाज के मूल्यांकन को लेकर जारी विवाद का सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निर्णायक अंत कर दिया। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2024 में जारी आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भारतीय वन सेवा (आइएफएस) अफसरों की वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट (एसीआर) भरने का अधिकार भारतीय प्रशासनिक सेवा अफसरों को दिया गया था। अब से वन अधिकारियों की वार्षिक कार्य निष्पादन रिपोर्ट उनकी सेवा में वरिष्ठ आईएफएस अफसर ही भरेंगे।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया आदेश रद्द...?
मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2024 में एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत आईएफएस अधिकारियों की वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट भरने का अधिकार आईएएस अधिकारियों को दिया गया था। इस निर्णय का उद्देश्य वन विभाग के अधिकारियों के कार्य प्रदर्शन का मूल्यांकन बेहतर बनाना बताया गया था। लेकिन इस आदेश पर वन अधिकारियों और आईएफएस एसोसिएशन ने आपत्ति जताई और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि वन सेवा के अधिकारियों का मूल्यांकन उनके वरिष्ठ वन सेवा अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह अधिकार अन्य सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों को दिया जा सकता है। इससे पहले भी कोर्ट ने सुनवाई में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को वन सेवा के अफसरों की कार्यकुशलता में श्रेष्ठता दिखाने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
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निष्पक्ष और न्यायसंगत मूल्यांकन हो
वन विभाग में आईएफएस अधिकारियों की एसीआर के विवाद को प्रमुखता से उठाया था, जिसके कारण मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। वन अधिकारियों की कार्यक्षमता को सही तरीके से आंकने के लिए उनकी एसीआर उसी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भरी जानी चाहिए, ताकि निष्पक्ष और न्यायसंगत मूल्यांकन हो सके।
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आदेश का प्रभाव और आगे का रास्ता
अब वन विभाग के सभी आईएफएस अधिकारियों की वार्षिक कार्य निष्पादन रिपोर्ट उनके वरिष्ठ आईएफएस अफसर ही भरेंगे। जिला प्रशासन द्वारा वित्तपोषित वन विभाग के कार्यों के संबंध में अपने निष्पादन का स्वतंत्र मूल्यांकन अलग शीट पर कर सकेंगे, जिसका भी निर्णय वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी करेंगे। इस फैसले से वन विभाग में सेवा की श्रेष्ठता और अनुशासन सुनिश्चित होगा।
सुप्रीम कोर्ट निर्णय
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