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मप्र में भर्तियों में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण केस को लेकर 12 अगस्त मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें दो अहम बातें हुईं। पहला तो सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फिलहाल ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी देने पर लगे स्टे हटाकर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मार्च 2019 से यह केस रुका है और हाईकोर्ट से ट्रांसफर याचिकाएं आ चुकी हैं। ऐसे में अंतरिम आदेश की जगह इसमें अंतिम सुनवाई कर आदेश करना उचित होगा। इसलिए इसमें अब अंतिम सुनवाई कर फैसला लिया जाएगा।
साथ ही इसमें फाइनल सुनवाई 24 सितंबर को पहले नंबर पर रखी है। इस मुद्दे को लेकर जितनी भी ट्रांसफर याचिकाएं, एसएलपी लगी हैं सभी पर एक साथ सुनवाई होगी। इसे 24 सितंबर को पहले स्थान पर रखा गया है।
उधर, पहली बार कांग्रेस ने ओबीसी के हित में खुद को दिखाने के लिए अपने अधिवक्ता को मैदान में उतारा है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सुप्रीम कोर्ट में उपस्थिति दिखाई। सुनवाई करीब 25 मिनट तक चली।
अंतरिम राहत नहीं, पूरा फैसला ही संभव
जानकारी के अनुसार, इस केस में सुनवाई हुई तो फिर से छत्तीसगढ़ की तरह ही अंतरिम राहत देने की बात उठी कि उन्हें भी भर्तियां 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ करने दी जाए और 13 फीसदी होल्ड पदों को ओबीसी को देने दिया जाए।
इस पर सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि दोनों ही वर्ग के उम्मीदवार हैं। इस मामले में 24 सितंबर को फाइनल सुनवाई करेंगे। यानी अब मामला अंतरिम राहत का नहीं है। इसमें यह तय होगा कि 27 फीसदी आरक्षण मप्र में लागू होगा या नहीं। यह बात भी उठी कि मप्र में 6 साल से, यानी 2019 से, यह केस चल रहा है।
क्या सरकार सो रही है- सुप्रीम कोर्ट
ओबीसी महासभा के वकील, वरुण ठाकुर ने आज की सुनवाई को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी साझा की। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से सवाल किया है, क्या सरकार सो रही है? कोर्ट ने यह सवाल विशेष रूप से उन 13% ओबीसी आरक्षित पदों के बारे में उठाया है, जो पिछले 6 सालों से खाली पड़े हुए हैं। क्या इस दौरान राज्य सरकार ने इन पदों को भरने के लिए कोई कदम उठाया? यह सवाल एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है, जो ओबीसी समुदाय के लिए बराबरी की बात करता है।
कांग्रेस ने सिंघवी को उतारा, श्रेय की लड़ाई तेज
उधर, अभी तक जुबानी जमा खर्च कर रही कांग्रेस ने आखिरकार अपने अधिवक्ता को मैदान में उतारा। अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। माना जा रहा है कि अब ओबीसी केस अंतिम दौर में हैं, ऐसे में ओबीसी की लड़ाई के हक में अपने आप को आगे दिखाने के लिए कांग्रेस ने ऐसा किया है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने छत्तीसगढ़ केस का हवाला दिया और कहा कि अंतरिम ऑर्डर जारी कर स्टे हटाया जाए। उन्होंने कहा कि मैं ओबीसी वेलफेयर कमेटी की ओर से हूं जो 27 फीसदी आरक्षण लागू करने की अपील कर रहे हैं। रिजल्ट जारी नहीं हो रहा है, क्योंकि 27 फीसदी आरक्षण लागू नहीं किया जा रहा है। अंतरिम ऑर्डर जारी कर स्टे हटाया जाए।
मप्र सरकार की ओर से कहा गया कि 63 अंतरिम ऑर्डर अभी तक एक ही हटा है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या छत्तीसगढ़ मामले में सुनवाई हुई और राहत मिली, इस पर मप्र शासन के अधिवक्ता और सिंघवी ने कहा हां, 6 साल हो चुके हैं और चयनित उम्मीदवारों की भर्ती, रिजल्ट रुके हुए हैं। मप्र के लिए भी यह अंतरिम राहत दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि छत्तीसगढ़ में यदि अंतिम आदेश अलग हुआ तो अभी तो अंतरिम है। इस पर सिंघवी ने कहा कि हम इस पर रिस्क ले रहे हैं। अंतरिम राहत तो मिले।
बता दें कि हाल ही में सीएम डॉ. मोहन यादव ने भी दो बयान दिए थे- पहला कि डंके की चोट पर 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देंगे और दूसरा पार्टी नेताओं का कहना था कि देखना कांग्रेस कहीं ओबीसी का श्रेय नहीं ले। उल्लेखनीय है कि ओबीसी आरक्षण को कमलनाथ की कांग्रेस सरकार के समय ही 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का एक्ट पास हुआ था। कांग्रेस लगातार कह रही है कि यह आरक्षण हमारी सरकार ने दिया था। बीजेपी ने इसमें कुछ नहीं किया, वहीं बीजेपी कहती है कि कांग्रेस के गलत तरीके से प्रस्ताव, एक्ट लाने से यह नहीं हो सका, हम मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देंगे।
इंद्रा साहनी केस पर यह बोले संघवी
संघवी ने इंद्रा साहनी केस पर कहा कि स्पेशल केस में कोई आरक्षण सीमा नहीं है। सुनवाई के दौरान एक अधिवक्ता ने कहा कि मप्र में पहले ही कई परीक्षाओं में पटवारी भर्ती, जेल प्रहरी में पहले ही यह 27 फीसदी आरक्षण दे चुके है।
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अनारक्षित वर्ग द्वारा यह रखे गए तर्क
अनारक्षित की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि राजस्थान, महाराष्ट्र अन्य जगह पर यह केस लंबित है। यहां पर यह केस आना ही नहीं चाहिए। वापस मप्र में आना चाहिए। पूरी तरह से यह राजनीतिक मामला बन गया है। 50 फीसदी आरक्षण से अधिक नहीं किया जा सकता है। 6 साल हो चुके हैं।
अब नजरें रहेंगी इंदिरा साहनी केस पर
अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फाइनल सुनवाई कर अंतिम फैसला देगा। ऐसे में अनारक्षित वर्ग का जोर फिर से इंदिरा साहनी केस पर होगा, जैसा कि एक सुनवाई में खुद सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही थी। इसके तहत आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय है और इसी आधार पर कई राज्यों में अधिक आरक्षण सीमा को रद्द किया गया है। हालांकि ओबीसी वर्ग यह भी बात उठाता है कि यह सीमा तो 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण देकर पहले ही टूट चुकी है, उधर छत्तीसगढ़ में भी 58 फीसदी आरक्षण पर अंतरिम राहत देकर भर्ती की जा रही है, फिर मप्र में आरक्षण अधिक क्यों नहीं हो सकता है। खासकर जब विधानसभा से एक्ट पास हुआ है, तो एक्ट को कैसे रोका जा सकता है और कैसे स्टे हो सकता है। कुल मिलाकर इस मामले में अब अनारक्षित वर्ग ने भी अधिवक्ता को उतार दिया है। अब यह लड़ाई सीधे तौर पर अनारक्षित Vs ओबीसी वर्ग में बदल चुकी है। कोई भी इस होल्ड 13 फीसदी पदों को नहीं छोड़ना नहीं चाहता है। इन पदों पर साल 2019 से ही पीएससी और ईएसबी के पद होल्ड हैं। यह केस निराकरण होने पर करीब 90 हजार होल्ड पद और दो लाख उम्मीदवारों के भाग्य का भी फैसला होगा।
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