सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में 2023 में बर्खास्त की गई दो महिला न्यायिक अफसरों के मामले में फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह (Justice N Kotiswar Singh) की बेंच ने शुक्रवार ( 28 फरवरी ) को इन अधिकारियों की बर्खास्तगी को अवैध और मनमाना करार दिया। अदालत ने आदेश दिया कि दोनों अफसरों को 15 दिनों के भीतर बहाल किया जाए।
कोर्ट ने बर्खास्तगी को बताया दंडात्मक और अवैध
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला पूरी तरह से दंडात्मक, मनमानी और अवैध था। न्यायालय ने यह भी कहा कि महिला अफसरों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करते समय उनके सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को समझने की जरूरत है।
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'जेनडर के आधार पर समझने की जरूरत'
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाओं के कार्यस्थल पर प्रदर्शन का आकलन करते समय संवेदनशीलता बेहद जरूरी है। इसमें एक अधिकारी की स्थिति का विशेष उल्लेख किया गया, जिन्होंने अपनी प्रोबेशन अवधि के दौरान गर्भपात (Miscarriage) का सामना किया और गंभीर मानसिक-शारीरिक तनाव में रही। इस महिला अधिकारी के भाई को ब्लड कैंसर (Blood Cancer) हो गया था और वह खुद भी कोविड-19 (COVID-19) से संक्रमित हो गई थीं। इन गंभीर परिस्थितियों के बावजूद उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) को डाउनग्रेड कर दिया गया। कोर्ट ने इसे नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा।
कार्यस्थल पर संवेदनशीलता का महत्व
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि महिलाओं की शारीरिक स्थिति को समझना और सम्मान देना आवश्यक है। उन्होंने उदाहरण दिया कि महिलाएं मासिक धर्म (Menstrual Cycle) के दौरान भी दर्द निवारक दवाइयों का सेवन करके कार्य करती हैं। इसे कार्यस्थल पर समझने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश मध्य प्रदेश में महिला अधिकारियों के अधिकारों की रक्षा करने वाला है। यह आदेश कार्यस्थल पर महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देता है और दर्शाता है कि महिलाओं के सामने आने वाली शारीरिक और मानसिक चुनौतियों को समझने की जरूरत है।