दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कही ये बात...

केंद्र सरकार ने कहा कि यह मुद्दा संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र से संबंधित है और न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया से बाहर है। केंद्र ने यह भी कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों के व्यापक प्रभाव हैं, जो संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं...

author-image
Sandeep Kumar
एडिट
New Update
government-opposes-life-ban
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका का विरोध किया, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। सरकार का कहना था कि इस प्रकार की अयोग्यता लागू करना पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और न्यायिक समीक्षा की शक्तियों के दायरे से बाहर है। केंद्र ने अदालत में दायर हलफनामे में कहा कि याचिका में यह मांग की जा रही है कि संसद को एक विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश दिया जाए, जो संविधान के अनुसार उचित नहीं है।

ये खबर भी पढ़िए...यूका कचरा पर सुप्रीम कोर्ट आदेश- सभी विशेषज्ञों की रिपोर्ट से बताइए, सावधानी के सबूत दीजिए

संसद के अधिकार क्षेत्र में है यह मामला

केंद्र सरकार ने कहा कि यह मुद्दा संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र से संबंधित है और न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया से बाहर है। केंद्र ने यह भी कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों के व्यापक प्रभाव हैं, जो संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और इसलिए इसे न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर रखा गया है। केंद्र ने इस मामले में याचिकाकर्ता की मांग को अनुचित बताया और कहा कि यह संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।

ये खबर भी पढ़िए...यूका कचरा 27 फरवरी से जलना लगभग तय, सुप्रीम कोर्ट में टल गई सुनवाई

दंड को समय सीमा के तहत रखना उचित है

केंद्र ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि दंड को समय सीमा के आधार पर सीमित करना संविधान के अनुरूप है और यह स्थापित कानून का हिस्सा है। इसका तात्पर्य यह है कि जुर्माना या दंड की अवधि को उचित समय तक सीमित किया जा सकता है, ताकि किसी को बिना कारण सख्त दंड का सामना न करना पड़े। केंद्र ने यह स्पष्ट किया कि समय सीमा के आधार पर दंड की प्रक्रिया कोई असंवैधानिक कदम नहीं है।

ये खबर भी पढ़िए...यूका कचरे का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका, नोटिस जारी

धारा 8, 9 में क्या है नियम

केंद्र सरकार ने बताया कि संविधान की धारा 8 के तहत किसी अपराध के दोषी ठहराए गए व्यक्ति को छह साल तक अयोग्य घोषित किया जाता है। जबकि धारा 9 के तहत भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता के आरोप में बर्खास्त किए गए लोक सेवकों को पांच साल तक अयोग्य ठहराया जाता है। हालांकि, याचिकाकर्ता ने इस अवधि को आजीवन बढ़ाने की मांग की है। केंद्र ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अयोग्यता की अवधि संसद के प्रोपोर्शनल और रीजनेबलनेस के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है और इसे अनावश्यक रूप से बढ़ाना उचित नहीं होगा।

ये खबर भी पढ़िए...यूका कचरे का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका, नोटिस जारी

केंद्र सरकार का विरोध

केंद्र ने यह तर्क भी दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई मांग कानून को फिर से लिखने के बराबर है। केंद्र ने कहा कि यह किसी विशेष विधायी प्रक्रिया को लागू करने के लिए संसद को निर्देश देने जैसा है, जो संविधान के तहत न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है। याचिकाकर्ता का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 के तहत दिए गए प्रावधानों के खिलाफ है, जो संसद और विधानसभाओं के सदस्यत्व की अयोग्यता से संबंधित हैं।

केंद्र का दावा

केंद्र ने यह स्पष्ट किया कि कई दंडात्मक कानूनों में अयोग्यता की समय-सीमा होती है। सरकार ने इसे संवैधानिक रूप से उचित बताया और कहा कि दंड की प्रभाव अवधि को सीमित करना संविधान के तहत पूरी तरह से स्वीकार्य है। केंद्र का कहना था कि याचिकाकर्ता की प्रार्थना को लागू करना संविधान और न्यायिक समीक्षा के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि क्या राजनेताओं पर दोषी ठहराए जाने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना संविधान के अनुरूप है या नहीं। सरकार के हलफनामे और याचिकाकर्ता की दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत को इस मामले में अंतिम निर्णय लेना होगा। यह मामला केवल राजनेताओं की अयोग्यता से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह संविधान और संसद के अधिकार क्षेत्र के संबंध में भी महत्वपूर्ण है।

 

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट दागी नेता Supreme Court हिंदी न्यूज नेशनल हिंदी न्यूज केंद्र सरकार