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Photograph: (thesootr)
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के खिलाफ दर्ज एफआईआर को लेकर मध्य प्रदेश पुलिस की अपील खारिज कर दी है। यह मामला वैवाहिक उत्पीड़न और अन्य गंभीर धाराओं में दर्ज हुआ था, लेकिन हाईकोर्ट ने पहले ही इस एफआईआर को रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए राज्य की अपील को ठुकरा दिया है।
अधूरी जानकारी के चलते हाईकोर्ट ने रद्द की थी FIR
यह मामला धार जिले के नौगांव थाने का है, जहां 2022 में उमंग सिंघार की पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में आईपीसी की धाराएँ 294, 323, 376(2)(n), 377, 498-A और 506 लगाई गई थीं। आरोपों में मारपीट, यौन शोषण और मानसिक प्रताड़ना तक का जिक्र था।
हालांकि, हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान सामने आया कि शिकायत में समय, तारीख और जगह जैसी अहम जानकारियों का कोई साफ उल्लेख नहीं था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 498-A (पत्नी को प्रताड़ित करने और दहेज मांगने का मामला) लगाने के लिए दहेज मांगने का कोई स्पष्ट आरोप ही मौजूद नहीं था। इसके अलावा, पति-पत्नी दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किए थे, जिससे मामला व्यक्तिगत और राजनीतिक विवाद ज्यादा नजर आया।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपील की खारिज
सुप्रीम कोर्ट में CJI बीआर गवई ,जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एएस चंदूरकर की बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को सही माना। राज्य सरकार ने अपील करते हुए कहा था कि FIR को रद्द करना गलत है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दलीलों से सहमति नहीं जताई और साफ कहा कि इस मामले में दखल की जरूरत नहीं है। इसके बाद हाई कोर्ट का फैसला यथावत है और अब उमंग सिंघार के खिलाफ दर्ज की गई FIR रद्द ही रहेगी।
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साल 2022 में पत्नी ने दर्ज कराई थी FIR
कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ( Umang Singhar ) के खिलाफ उनकी पत्नी ने साल 2022 में धार के नौगांव थाने में दहेज प्रताड़ना समेत दुष्कर्म, मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। पत्नी प्रतिमा ने आरोप लगाया कि शादी के बाद सिंघार ने उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, कई बार जान से मारने की धमकी दी और दहेज संबंधी दबाव डाला।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जबलपुर हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सिंघार को क्लीन चिट दी गई थी। प्रतिमा का कहना है कि उनके साथ मारपीट, बालकनी से लटकाने जैसा खौफनाक व्यवहार भी हुआ, जिसकी शिकायत मध्यप्रदेश पुलिस को की गई थी। इस FIR को हाई कोर्ट के आदेश के बाद रद्द कर दिया गया था जिस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी यथावत रखा है।