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Photograph: (The Sootr)
JABALPUR. जबलपुर जिले की आधारताल तहसील अंतर्गत ग्राम रेगवां में सरकारी ज़मीन के हेरफेर का सनसनीखेज मामला सामने आया है। यह ज़मीन सरकार ने गांव के कोटवार को आवंटित की थी। लेकिन, सरकारी रिकॉर्ड में फेरबदल कर उसे एक निजी व्यक्ति के नाम दर्ज कर दिया गया।
मामले की जांच में खुलासा हुआ कि इस पूरी कार्रवाई में तहसीलदार के डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग हुआ है, और आदेशों को फर्जी तरीके से आरसीएमएस पोर्टल पर अपलोड किया गया।
इस गंभीर फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद जबलपुर कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना ने दो सहायक ग्रेड-3 कर्मचारियों रमाशंकर मिश्रा और मिलन वरकडे को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। वहीं इस पूरे मामले में तत्कालीन तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं, जिनका नाम पहले भी कई विवादों में आ चुका है।
सरकारी की भूमि को प्राइवेट बनाने का खेल
ग्राम रेगवां की खसरा नंबर 69, रकबा 1.90 हेक्टेयर भूमि राज्य शासन के नाम पर दर्ज थी, जिसे गांव के कोटवार को सेवा भूमि के रूप में आबंटित किया गया था। लेकिन प्रकरण क्रमांक 400/बी-121/2023-24 में इस भूमि को एक निजी व्यक्ति के नाम स्थानांतरित कर दिया गया। इस आदेश का पंजीयन 25 जनवरी 2024 को हुआ था और इसका निराकरण 19 फरवरी 2024 को आरसीएमएस पोर्टल पर किया गया।
शिकायत तब दर्ज हुई जब वर्तमान तहसीलदार दीपक पटेल (जो उस समय कार्यभार ग्रहण कर चुके थे) ने पाया कि उनके डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग कर 25 जनवरी 2024 की एक पुरानी आदेश पत्र को 1 मई 2024 को दोबारा पोर्टल पर अपलोड किया गया है। जांच में सामने आया कि उनके डिजिटल सिग्नेचर की जिम्मेदारी जिन कर्मचारियों के पास थी, उन्हीं ने इसका गैरकानूनी उपयोग किया।
दोनों कर्मचारी निलंबित, जमीन बिक भी चुकी
कलेक्टर कार्यालय द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि सहायक ग्रेड-3 कर्मचारी रमाशंकर मिश्रा और मिलन वरकडे ने अपने पद के कर्तव्यों का उल्लंघन किया, और शासन के हितों के विपरीत कार्य किया। इन कर्मचारियों की अभिरक्षा में रखे गए डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग कर शासन की ज़मीन को निजी व्यक्ति के नाम दर्ज कर, फिर आगे बेच भी दिया गया।
शासन को इस जमीन की प्रत्यक्ष हानि हुई है, जिसे अब पुनः अधिग्रहित कर पाना मुश्किल होगा। दोनों कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। रमाशंकर मिश्रा का मुख्यालय सिहोरा और मिलन वरकडे का मुख्यालय कुण्डम तहसील में निर्धारित किया गया है।
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पूर्व तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल
इस पूरे प्रकरण में तत्कालीन तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे की भूमिका सबसे अधिक संदेह के घेरे में है। उन्होंने 19 फरवरी 2024 को महज़ एक पंक्ति का आदेश पारित कर आरसीएमएस पर अपलोड कर दिया। इस आदेश में सिर्फ एक लाइन लिखी थी कि “आवेदक सूचित हो”।
इस आदेश में सरकार की भूमि को निजी स्वामित्व में हस्तांतरित करने का कोई साफ निर्देश या कारण नहीं था, और न ही उससे संबंधित ऑर्डर शीट संलग्न की गई थी। बाद में यही आदेश पत्र फर्जी तरीके से पोर्टल पर अपलोड किया गया, जिससे निजी व्यक्ति को कानूनी लाभ मिला।
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि श्री धुर्वे ने जानबूझकर आदेशों को अधूरा छोड़ा और तथ्यों को छिपाया, जिससे सरकारी ज़मीन को निजी लोगों को बेचना आसान हो गया।
विवादों में घिरे रहे हैं तहसीलदार धुर्वे
यह पहली बार नहीं है जब हरि सिंह धुर्वे की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हों। नामांतरण से लेकर सीमांकन तक कई मामलों में इस तहसीलदार के ऊपर आरोप लगा चुके हैं। इसके पहले भी एक जमीन फर्जीवाड़ा के मामले में तहसीलदार हरि सिंह धुर्वे , पटवारी जगेंद्र पिपरे सहित जेल यात्रा कर चुके हैं और अभी जमानत पर रिहा है।
अब जब रेगवां भूमि प्रकरण में भी उनका नाम उभर रहा है, प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि उन्हें अब तक क्यों संरक्षण मिलता रहा, क्या यह मामला केवल दो बाबुओं तक सीमित है, या और भी बड़े मगरमच्छ और जमीन के दलाल इस साजिश में शामिल है।
बाबुओं के हाथ में अधिकारी के डिजिटल सिग्नेचर जैसे चोर के हाथ में चाबी
यह मामला बताता है कि डिजिटल प्रशासन प्रणाली तभी प्रभावी हो सकती है जब वह ईमानदार और उत्तरदायी हाथों में हो। यदि किसी तहसीलदार का डिजिटल सिग्नेचर बाबुओं के हाथों में हो और उसका गलत उपयोग बिना रोक-टोक हो सके, तो ऐसी तकनीक का दुरुपयोग स्वाभाविक है। इस मामले में भी पिछले तहसीलदार का डिजिटल सिग्नेचर इस्तेमाल कर पूरा षड्यंत्र रचा गया था।
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