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promotion Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. मध्यप्रदेश में नौ साल बाद सरकारी नौकरियों में पदोन्नति का सीजन शुरू हो गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने इस मामले में बाजी मार ली है और अब दूसरे विभागों ने भी तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन इस मामले में एक बार फिर रोड़ा अटक सकता है।
प्रमोशन में आरक्षण का विरोध कर रहे कर्मचारी संगठन सपाक्स हाईकोर्ट पहुंच गया है जहां उसकी याचिका को स्वीकार कर लिया गया है। हाईकोर्ट में 7 जुलाई को सुनवाई होने वाली है।
यदि हाईकोर्ट सुनवाई के दौरान सपाक्स के तथ्यों से सहमत होता है तो सरकार की पदोन्नति नीति खटाई में पड़ सकती है। हांलाकि सरकार ने पहले ही इसकी भी तैयारी कर रखी है।
सरकारी अधिकारी और कर्मचारी बीते 9 साल से पदोन्नति की राह देख रहे हैं। प्रदेश में पदोन्नति पर अघोषित रोक की वजह से इन वर्षों में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी एक ही पद पर काम करते-करते सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
हाल ही में केबिनेट से पदोन्नति के ड्राफ्ट को स्वीकृति मिलने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने दो कर्मचारियों को पदोन्नति दे दी है। वहीं पदोन्नति में आरक्षण का विरोध कर रहे सपाक्स कर्मचारी संगठन ने हाईकोर्ट की शरण ली है।
सपाक्स ने याचिका में आरक्षण के आधार पर पदोन्नति देने से अनारक्षित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों के हित प्रभावित होना आधार बनाया है।
विभागों की तैयारी देख सक्रिय
सरकार से हरी झंडी मिलते राज्य निर्वाचन आयोग में मध्यप्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025 के तहत स्टेनाग्राफर विकास राठौर को निज सहायक और स्टेनो टाइपिस्ट सुनीता पाण्डेय को स्टेनाग्राफर के पद पर पदोन्नत किया है।
अब स्कूल शिक्षा विभाग, नगरीय प्रशासन विभाग, जल संसाधन विभाग ने कर्मचारियों की सूची तैयार करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। वहीं जनजातीय कार्य विभाग इनसे आगे निकल गया है।
विभाग ने प्राचार्यों, क्षेत्रीय संयोजकों व अन्य अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है क्योंकि कई लोगों की सीआर उपलब्ध नहीं है। वहीं जीएडी के निर्देश पर सीआर के सेल्फ असेसमेंट के बाद अभिमत लिखने भी कहा गया है।
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सपाक्स को हाईकोर्ट से आस
पदोन्नति के लिए विभागों की तैयारी में सपाक्स की याचिका पर 7 जुलाई को जबलपुर हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई रोड़ा अटका सकती है। सपाक्स ने सीनियर एडवोकेट सुयश मोहन गुरु के जरिए याचिका पेश की है जिस सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है।
याचिका में सपाक्स ने सरकार की पदोन्नति नीति को चैलेंज किया है। वहीं कर्मचारी संगठनों की आपसी तकरार और पदोन्नति की नई नीति पर सपाक्स के विरोध को देखते हुए सरकार ने भी तैयारी कर ली है।
यदि सपाक्स पदोन्नति के नए ड्राफ्ट के विरोध में हाईकोर्ट जाती है तो सरकार कोर्ट से ही पदोन्नति का फार्मूला मांग सकती है। यानी सरकार किसी भी स्थिति में कर्मचारी संगठनों के आरोपों से बचना चाहती है।
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ये है सपाक्स का पक्ष
प्रदेश अध्यक्ष डॉ.केएस तोमर के अनुसार पहले ही आरक्षित वर्गों को सरकारी नौकरियों में नियुक्ति में आरक्षण का लाभ मिल रहा है। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति को 20%, अनुसूचित जाति को 16%, पिछड़ा वर्ग को 27% और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। यानी विभागों में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व है।
एम.नागराज और जनरनैल सिंह प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट भी पदोन्नति में आरक्षण को गैरजरूरी बता चुका है। उत्तरप्रदेश सरकार प्रमोशन में आरक्षण को पूरी तरह बंद कर चुकी है। मप्र में पदोन्नति के लिए जो नीति बनी है उसमें क्रीमीलेयर और अल्पसंख्यक वर्ग के संबंध में स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इस पदोन्नति से अनारक्षित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के करीब दो लाख कर्मचारी है।
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अफसरों की कोशिश नाकाफी
डॉ.मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही सरकार कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता खोलने की कोशिश कर रही है। इसके लिए अजाक्स और सपाक्स कर्मचारी संगठनों के साथ बैठकें भी रखी गईं। हालांकि सरकार ने जिन अधिकारियों को दोनों संगठनों के समन्वय से पदोन्नति नीति तैयार करने का जिम्मा सौंपा उनके प्रयास रंग नहीं लाए।
अधिकारियों ने नए सिरे से न तो अध्ययन किया न ही कर्मचारी संगठनों की राय को ड्राफ्ट में जगह दी गई। उनमें समन्वय बनाने पर भी ध्यान नहीं दिया और नीति लाने में जल्दबाजी कर दी।
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को- स्टेट्स का उल्लंघन
एडवोकेट सुयश मोहन गुरु का कहना है पदोन्नति नीति का ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2016 में दिए गए को-स्टेट्स के आदेश का उल्लंघन करता है। हाईकोर्ट में साल 2011 में आरबी राय की याचिका पर 2016 में आए फैसले में मध्यप्रदेश के पदोन्नति नियमों को खारिज कर दिया गया।
तब पदोन्नति नियमों में बैकलॉक और एससी-एसटी वर्ग को आर्बिटरी प्रमोशन की व्यवस्था थी। इस जजमेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने को-स्टेट्स दिया गया था। जो आज तक चल रहा है। सरकार ने भाषा बदलकर पुराने नियमों को नया दिखाया है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। नए नियम सुप्रीम कोर्ट के को-स्टेट्स को बिगाड़ने वाले हैं। MP News
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