स्वास्थ्य बीमा कंपनियां अक्सर दावा करती हैं कि मुश्किल घड़ी में वह ग्राहकों की मदद करेंगी। अस्पताल में भर्ती होने पर या गंभीर बीमारी के इलाज के दौरान बीमा क्लेम उनका सहारा बनेगा। लेकिन कई बार बीमा कंपनियां बिना किसी ठोस कारण के क्लेम देने से मना कर देती हैं।
एक सामान्य बहाना जो बीमा कंपनियां इस्तेमाल करती हैं, वह है नशे की आदत का होना और इसके बारे में जानकारी न देना। हाल ही में, भोपाल में एक उपभोक्ता ने बीमा कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। बीमा कंपनी ने क्लेम इस आधार पर निरस्त कर दिया कि उपभोक्ता ने शराब और सिगरेट का सेवन किया था।
यह है पूरा मामला
भोपाल के नरेला संकरी निवासी जन्मेश चतुर्वेदी ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से स्वास्थ्य बीमा कराया था। इसके लिए उन्होंने 38,191 रुपये का प्रीमियम भी भुगतान किया था। 19 जून 2023 को जन्मेश को छाती में दर्द और सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई। उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। वहां उनका कोरोनरी आर्टरी एंजियोग्राफी किया गया। इलाज में 2,41,805 रुपये खर्च हुए। बीमा कंपनी ने शराब, सिगरेट और गुटखा का सेवन की बात कह भुगतान करने से इनकार कर दिया।
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बीमा कंपनी का दावा
बीमा कंपनी का यह दावा था कि जन्मेश के इलाज के पर्चे में "सिगरेट और शराब सेवन" का उल्लेख था, जो कि बीमा पॉलिसी में सही जानकारी देने का उल्लंघन था। हालांकि, जन्मेश ने डॉक्टर से यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया कि उन्होंने कभी भी शराब और सिगरेट का सेवन नहीं किया था। इसके बावजूद कंपनी ने उपभोक्ता की बातें खारिज कर क्लेम का भुगतान करने से इंकार कर दिया।
उपभोक्ता आयोग का फैसला देना होगा पूरा क्लेम
मामले में आयोग ने दोनों पक्षों को सुना और मामले की विस्तार से जांच की। आयोग ने पाया कि बीमा कंपनी ने बिना जांच किए क्लेम खारिज किया। आयोग के अध्यक्ष योगेश दत्त शुक्ल और सदस्य डॉ. प्रतिभा पांडेय ने इस मामले को गंभीरता से लिया। बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह उपभोक्ता को दो माह के भीतर 2,41,805 रुपये ब्याज सहित अदा करें। बीमा कंपनी को मानसिक क्षतिपूर्ति के तौर पर 5,000 रुपये और वाद व्यय के लिए 3,000 रुपये देने का आदेश भी दिया गया।
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बीमा पॉलिसी में नशे की जानकारी देना आवश्यक
बीमा पॉलिसी में शराब, सिगरेट या किसी अन्य नशे के बारे में जानकारी देना आवश्यक होता है। यदि कोई व्यक्ति नशे का सेवन करता है, तो बीमा कंपनी को इसके बारे में सूचित करना जरूरी होता है। ऐसा नहीं करने पर, भविष्य में जब कोई दावा किया जाएगा तो बीमा कंपनी इसका फायदा उठा सकती है।
इसके अलावा, बीमा कंपनियां इस जानकारी को आधार बनाकर प्रीमियम दर में बदलाव कर सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति नशे का सेवन करता है, तो बीमा प्रीमियम अधिक हो सकता है। हालांकि, बीमा पॉलिसी में दी गई जानकारी को गलत तरीके से प्रस्तुत करने से बचना चाहिए।
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