हरीश दिवेकर @ Bhopal
मन डोले, मेरा तन डोले
मेरे दिल का गया करार रे
ये कौन बजाए बांसुरिया?
हां बॉस! अब डॉक्टर साहब पूरी तरह चैन की बंसी बजाएंगे। मामा ( Shivraj Singh Chauhan ) का 'करार' दिल्ली से हो गया है। वे लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Elections 2024 ) में 20 साल बाद फिर विदिशा संसदीय सीट से मैदान में हैं। वैसे, आपको बता दें कि मामा को यह पहले ही लगने लगा था कि अब उन्हें दिल्ली दरबार में हाजिरी लगानी होगी।
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण- प्रतिष्ठा से ठीक एक दिन पहले 21 जनवरी को जब मामा शताब्दी एक्सप्रेस से ओरछा जा रहे थे, तब ट्रेन में मीडिया ने उनसे पूछा कि 'ये ट्रेन भी दिल्ली जा रही है। कभी दिल्ली का टिकट बनवाएंगे?' इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि 'जब जरूरत पड़ेगी तो दिल्ली जाएंगे (Bol Hari Bol ) ।'
लो साब 41 दिन बाद ही उनका दिल्ली का टिकट कट गया है। वैसे भी लगता है कि उनके यहां रहते डॉक्टर साहब कई मौकों पर थोड़े असहज हो जाते थे। अब सबसे बड़ा सवाल पांच सीटों को लेकर है। इंदौर, उज्जैन, धार, छिंदवाड़ा और बालाघाट में बीजेपी ने अभी नामों का ऐलान नहीं किया है। दरअसल, यहां गेंद फंसी है। मौजूदा माननीयों का टिकट संकट में है। उधर, सियासी गलियारों में दूसरी बड़ी चर्चा गुरु- चेले को लेकर है। हफ्ते भर पहले फीता काटने में भले चेले ने बाजी मार ली थी, पर अब राजनीति के मैदान में गुरु ही शक्कर निकले। आप समझ तो गए ही होंगे। नहीं समझे तो बता भी देते हैं कि गुरु अपनी पुरानी बिसात गुना में ही गोटियां चलेंगे। एक सीट पर परिवारवाद को लेकर भी बीजेपी घिर गई है। अब क्या ही कहें। 'उन्हें' जो ठीक लगता है, वे वही करते हैं। दुनिया जो चाहे कहे।
खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
मामा- दादा का जलवा है क्या?
MP में घोषित लोकसभा सीटों ( Lok Sabha Elections ) के उम्मीदवारों में मामा और दादा का दबदबा नजर आया है। मामा शिवराज अपने साथ, अपने ही समाज के दो नेताओं राजगढ़ से रोडमल नागर और नर्मदापुरम से दर्शन सिंह चौधरी को भी टिकट दिला लाए। वहीं दादा नरेन्द्र सिंह तोमर का भी जलवा दिखा है। वे अपने समर्थक शिवमंगल सिंह को टिकट दिलाने के साथ ही ग्वालियर से भारत सिंह कुशवाह को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया टिकट मांग रहे थे। तोमर के वीटो के चलते उनकी मंशा पूरी नहीं हो पाई। अब मंशा पूरी हो भी तो कैसे? दादा बीजेपी की राजनीति में पुराने चावल हैं और महाराज नए- नए भाईसाहब बने हैं।
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ये कर्म है या कांड!
बीजेपी ने टिकटों में कुछ सीटों पर चौंकाया है। पंत प्रधान और मोटाभाई ने 'बड़े भाईसाहब' के साथ उन चेहरों पर भी भरोसा जताया है, जो ढाई माह पहले विधानसभा चुनाव की रेस में पिछड़ गए थे। दरअसल, मंडला की निवास सीट पर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और सतना में सांसद गणेश सिंह विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत पाए थे। यही स्थिति भोपाल के आलोक शर्मा की है। हालांकि अब हार के बावजूद संगठन में उनकी सक्रियता का ध्यान रखा गया है। सबसे चौंकाने वाला नाम प्रदेश सरकार में मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता सिंह का है। आदिवासी बहुल रतलाम सीट से कई नेता दावेदारी कर रहे थे, लेकिन बीजेपी ने मौजूदा सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट काटकर अनीता को उतारा है, यह जानते हुए भी कि परिवारवाद की बात उठेगी। अब बीजेपी के अंदर खाने में ही कहा जा रहा है कि ऊपर से हो तो कर्म और यही परिवाद निचले स्तर पर किया जाए तो कांड।
हॉट सीट का 'इकबाल' कम हुआ
जबसे मैडम हॉट सीट पर बैठी हैं, तब से इसका 'इकबाल' कम हो गया है। हालात ये है कि मंत्रालय के अफसर उन्हें मुखिया मानने को तैयार ही नहीं हैं। अब अफसरों पर अपना रुआब जमाने के लिए मैडम पॉवर दिखाने की कोशिश कर रही हैं। इसीलिए मैडम ने सभी अफसरान को संदेश भेजा है कि उन्हें विभागों में चल रही गतिविधियों की पूरी जानकारी दी जाए। इन सबके बीच मैडम के इस फरमान को अफसरों ने देखा- अनदेखा सा कर दिया। मैडम मार्च में रिटायर हो रही हैं। उनके एक्सटेंशन की चर्चा जोरों पर है, हालांकि अभी डॉक्टर साहब ने दिल्ली वालों को प्रस्ताव नहीं भेजा है। ऐसे में मंत्रालय के साहब लोगों का मानना है कि आचार संहिता लगने से पहले दिल्ली से हरी झंडी आ गई तो ठीक है, नहीं तो मामला खटाई में जा सकता है।
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खाकी वाले मुखिया का मौन
मुखिया का मौन अब खाकी वाले साहब लोगों को बेचैन करने लगा है। अब जूनियर अफसरों के सोशल मीडिया ग्रुप में इस पर चर्चा होने लगी है कि मुखिया तो दमदार होना चाहिए, कम से कम हमारे कॉडर की बात तो सूबे के मुखिया के सामने दम से रखे। खाकी वाले मुखिया पर ये भी आरोप लगने लगे हैं कि साहब तो अपनी कुर्सी बचाने में लगे हुए हैं, उन्हें न तो महकमे की चिंता है और न खाकी वाले अफसरों की। दरअसल, प्रमोशन के बाद भी जूनियर पद पर सीनियर अफसरों के पदस्थ रहने के बाद जूनियरों में अंसतोष उभर रहा है। मुुखिया सब जानकर भी मौन बैठे हुए हैं। वे तो डॉक्टर साहब की 'गुड लिस्ट' में ही बने रहना चाहते हैं।
हाइपरटेंशन से परेशान साहब
मंत्रालय में पदस्थ एक प्रमुख सचिव हाइपरटेंशन से परेशान हैं। साहब का ब्लड प्रेशर है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। मित्र की सलाह पर साहब अब प्राकृतिक चिकित्सा आजमा रहे हैं। इसके चलते साहब अपने चैंबर में डिम लाइट रखने लगे, इतना ही नहीं ऑइल डिफ्यूजर में लैवेंडर ऑइल डालकर अपना हाइपरटेंशन कम करने का प्रयास कर रहे हैं। अभी तक तो साहब पर इसका असर दिख नहींं रहा, हम उम्मीद करते हैं कि जल्द इन्हें आराम मिल जाए। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब साहब पांचवीं मंजिल पर बैठा करते थे, तब भी इन्होंने तनाव और अवसाद से निपटने के लिए दो- तीन बार विपश्यना ध्यान का कोर्स किया था, लेकिन मर्ज इतना बढ़ा है कि विपश्यना योग भी काम न आया। अब आप समझ रहे होंगे कि साहब का हाइपरटेंशन अधीनस्थ अधिकारी- कर्मचारी के क्या हाल कर रहा होगा।
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जीजा- साली पर मेहरबान साहब
एक प्रमुख सचिव को लेकर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में भारी आक्रोश है। मामला आईएएस अवॉर्ड का है। राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का आरोप है कि साहब अपने पुराने संबंधों को निभाने के लिए उनके कॉडर के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। गैर राप्रसे से जीजा और साली को आईएएस बनाने के लिए पूरा जोर लगाया जा रहा है। ये साहब इस समय पॉवरफुल पोस्ट पर हैं तो साहब जो बोलते हैं, सिस्टम तत्काल उसके पालन में लग जाता है। वैसे साहब अब तक कभी विवादों में नहीं आए। स्वभाव भी सरल- सहज है। अब उनका यही स्वभाव उनके लिए परेशानी का सबब बन रहा है। साहब जीजा और साली को आईएएस बनाने का वचन दे चुके हैं। बहरहाल, देखना होगा कि साहब वचन का पालन कर पाते हैं या नहीं। हमने तो अपना काम कर दिया है।
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फाइलों से बाहर आ रहे जिन्न
ट्रेनिंग देने वाली संस्था में जाते ही अपर मुख्य सचिव साहब ने पुराने प्रमुख सचिव के फैसलों की फाइलें खोलना शुरू कर दिया है। दरअसल, दोनों के बीच पहले से अनबन थी। अंदरखाने से आ रही खबरें बता रही हैं कि अपर मुख्य सचिव के हाथ प्रमुख सचिव की वो फाइलें लग गई हैं, जिनमें उन्होंने मनमाने तरीक से फैसले लिए, सरकार से पूछा तक नहीं। इनमें एक मामला निजी कंपनी के कर्मचारियों को सरकारी आवास आवंटित करने का है। पुराने वाले साहब ने खुद प्रस्ताव बनाकर खुद आदेश कर दिए थे। कल तक साहब के डर से मुंह न खोलने वाले अधीनस्थ अफसरों ने नए साहब के आते ही पूरी कहानी बयां कर दी है। क्या करें, निजाम बदलते ही सब बदल जाते हैं। ये तो छोटी मछलियां हैं, उन्हें तो नए साहब को खुश करना ही है।