इंदौर नगर निगम की बिल्डिंग मंजूरी शाखा के कारण खराब है ट्रैफिक, HC नाराज, दो साल से निगम से जवाब नहीं

इंदौर नगर निगम द्वारा बिना कार्यपूर्णता सर्टिफिकेट जारी किए बिना ही 90 फीसदी भवन संचालित हो रहे हैं। खुद हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान गहरी नाराजगी जाहिर की।

Advertisment
author-image
Sanjay gupta
एडिट
New Update
Sourabh - 2024-10-05T160009.328
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

इंदौर नगर निगम बेसमेंट सील कर ट्रैफिक को व्यवस्थित करने के लिए भले ही अभी कार्रवाई कर रहा है, लेकिन इस हालत का जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि खुद नगर निगम की बिल्डिंग परमिशन शाखा ही है। नगर निगम द्वारा कार्य पूर्णता सर्टिफिकेट जारी किए बिना ही 90 फीसदी भवन संचालित हो रहे हैं। खुद हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान गहरी नाराजगी जाहिर की। 

वहीं मजे की बात यह है कि दो साल से निगम के बिल्डिंग ऑफिसर की ओर से अधिवक्ता जवाब भी नहीं दे पाए। तत्कालीन निगमायुक्त प्रतिभा पाल और अपर आयुक्त संदीप सोनी के समय एक हजार से ज्यादा भवन स्वामियों को नक्शे के विपरीत निर्माण पर नोटिस जारी हुए, लेकिन एक-एक कर दोनों के जाने के बाद भ्रष्ट बिल्डिंग अधिकारियों ने इनमें सांठगांठ कर कमाई कर ली। महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त शिवम वर्मा एक बार इन पुराने नोटिस को ही झांक ले तो कई समस्याएं दूर हो जाएंगी।

यह है मामला

पूर्व पार्षद महेश गर्ग ने अधिवक्ता मनीष यादव ने हाईकोर्ट में दो साल से याचिका दायर की हुई है। इस जनहित याचिका में है कि 90 फीसदी से ज्यादा व्यावसायिक भवनों का उपयोग बिना कार्य पूर्णता सर्टिफिकेट के हो रहा है। यह निगम के भवन अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वह भवन निर्माण के दौरान समय-समय पर जांच करते रहें, जिससे भवन नक्शे के अनुसार ही बने, लेकिन तब ध्यान नहीं देते और बाद में नोटिस जारी करते हैं।

ये भी पढ़ें...ईडी ने इंदौर नगर निगम के फर्जी बिल घोटाले में जेल में अभय राठौर से की 8 घंटे तक पूछताछ, उसने बड़ों को घेरा

इन सभी को बनाया है पक्षकार

याचिका में मप्र शासन कलेक्टर, इंदौर नगर निगम, निगमायुक्त और भवन अधिकारी जोन 11 को पक्षकार बनाया गया है। वहीं हाईकोर्ट ने इस मामले में आदेश में ही लिखा है कि पक्षकार चार नंबर भवन अधिकारी की ओर से दो नंवबर 2022 को वकालतनामा पेश हुआ था लेकिन दो साल में भी जवाब नहीं आया। अंतिम अवसर दिया जा रहा है। इस मामले में नवंबर के तीसरे सप्ताह में अगली सुनवाई होगी।

उधर बेसमेंट सील करने की कार्रवाई पर उठे सवाल

WhatsApp Image 2024-10-05 at 12.36.26 PM

उधर बेसमेंट में पार्किंग की जगह अन्य कामर्शियल उपयोग करने के मामले में जिला प्रशासन और नगर निगम की चल रही संयुक्त कार्रवाई पर भी सवाल उठे हैं। हाईकोर्ट में लगातार पक्षकार जा रहे हैं और उन्हें अलग-अलग राहत मिली थी, लेकिन अब कार्रवाई पर ही सवाल उठ गए हैं।

सपना-संगीता रोड पर सेंटर प्वांट की बेसमेंट की चार दुकान सील करने के मामले में याचिका लगी। इसमें याचिकाकर्ता के अधिवक्ता जयेश गुरनानी ने पूरी कार्रवाई पर ही सवाल उठाए और कहा नक्शे के विपरीत उपयोग पर निगम भूमि विकास नियम 2012 व मप्र नगर पालिकग एक्ट 1956 के तहत नोटिस जारी कर सकता है लेकिन किसी भी जगह सील करने का प्रावधान ही नहीं है। यह सील करने की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध है। इस मामले में हाईकोर्ट ने तत्काल राहत देते हुए 24 घंटे में सील चारों दुकान खोलने के आदेश निगम को दिए हैं, साथ ही इस मामले में अगली सुनवाई 14 अक्टूबर रखी है।

ये भी पढ़ें...इंदौर में कर्बला मैदान पर नगर निगम ने लिया कब्जा, कोर्ट में वक्फ बोर्ड से जीत के बाद उठाया कदम

इसके पहले बेसमेंट को लेकर यह भी आदेश हुए

इसके पहले एक आदेश हाल ही में जारी हुआ था, जिसमें नोटिस पाने वाले याचिकाकर्ता के पक्ष में हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की उपस्थिति में 8 अक्टूबर को निगम संयुक्त निरीक्षण करें। वहीं देखे कि नक्शे के अनुसार उपयोग है या नहीं, फिर आगे कार्रवाई होगी। 

क्यों हैं पूरी तरह निगम के अधिकारी जिम्मेदार

भवन नक्शा पास होने के बाद भवन अधिकारी की जिम्मेदारी होती है कि वह भवन निर्माण को देखे और समय-समय पर सर्टिफिकेट जारी करें। सबसे पहले प्लिंथ सर्टिफिकेट जारी होता है, इसमें देखा जाता है कि बेसमेंट से ग्राउंड फ्लोर तक निर्माण सही हुआ या नहीं। यही कभी नहीं जांचा गया। यदि यह सर्टिफिकेट नहीं हो तो भवन आगे निर्माण हो ही नहीं सकता। फिर कैसे अब बेसमेंट में अन्य निर्माण हो गए? यह किसी ने झांका तक नहीं है।

इसके बाद फिर कंप्लीशन सर्टिफिकेट, ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट आदि जारी होते हैं। इसमें देखा जाता है कि भवन पूरी तरह से नक्शे के अनुसार बना है या नहीं, भवन में फायर सिस्टम व अन्य फिटिंग सही है या नहीं। इन सभी के ओके होने के बाद ही किसी भी बिल्डिंग का कमर्शियल उपयोग हो सकता है, लेकिन यह कभी देखा ही नहीं जाता है और सांठगांठ कर बिल्डिंग का उपयोग जारी रहता है। बाद में जब इश्यू बनता है तो नोटिस-नोटिस खेला जाता है और इसमें भी कई भ्रष्ट अधिकारी फिर सांठगांठ मामला दबा देते हैं। इसी का खामियाजा शहर भुगत रहा है। 

एक हजार नोटिस जारी हुए थे झांक कर तो देखो 

तत्कालीन निगमायुक्त प्रतिभा पाल और अपर आयुक्त संदीप सोनी के समय पर हर जोन में सैकड़ों नोटिस जारी हुए थे। यह नोटिस उन भवन स्वामियों को दिए गए जो नक्शे के विपरीत निर्माण कर रहे थे, जिसमें आवासीय नक्शा पास कर कर्मिशयल यूज करना, पार्किंग की जगह कमर्शियल निर्माण का मुद्दा अहम था। एक हजार से ज्यादा नोटिस जारी हुए, जिसमें कई में बिल्डिंग तोड़ने की नौबत आने लगी।  इसके बाद पहले सोनी और फिर पाल का ट्रांसफर हुआ और भ्रष्ट बिल्डिंग ऑफिसर ने यह नोटिस के नाम पर करोड़ों रुपए डकार लिए और मामला रफा दफा कर दिया। इसमें एबी रोड से लेकर स्कीम 140 और कई क्षेत्रों की बिल्डिंग थी।

महापौर और निगमायुक्त झांकें तो पता चलेगा हाल

महापौर पुष्यमित्र भार्गव और निगमायुक्त शिवम वर्मा कुछ नहीं केवल दो-तीन साल में बिल्डिंग को जारी नोटिस और उन पर हुए एक्शन का ही हाल सभी बिल्डिंग ऑफिसर को बुलाकर पूछ ले, तो सामने आ जाएगा कि कितने नोटिस सांठगांठ कर दबा दिए गए, जिसके कारण यह शहर ट्रैफिक समस्या भुगत रहा है।

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

MP News इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव मध्य प्रदेश पुष्यमित्र भार्गव इंदौर पुष्यमित्र भार्गव इंदौर नगर निगम ऑर्डर इंदौर नगर निगम न्यूज इंदौर नगर निगम कमिश्नर इंदौर नगर निगम खबर निगमायुक्त शिवम वर्मा इंदौर निगमायुक्त शिवम वर्मा आईएएस शिवम वर्मा आयुक्त शिवम वर्मा इंदौर नगर निगम की कार्रवाई