इंदौर नगर निगम ने बुधवार को कर्बला मैदान पर औपचारिक तौर पर कब्जा ले लिया। वक्फ बोर्ड और कर्बला कमेटी के खिलाफ हाल ही में नगर निगम ने कोर्ट में केस जीता है। इस जीत के बाद बुधवार को महापौर पुष्यमित्र भार्गव के साथ निगम की टीम ने पहुंचकर सांकेतिक कब्जा लिया और वहां पर निगम के कब्जे का बोर्ड भी लगा दिया गया है।
बीते सप्ताह मिली थी जीत
देश में वक्फ संपत्तियों को लेकर चल रहे विवाद के बीच नगर निगम को कर्बला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन पर कोर्ट से स्वामित्व दिया गया। जिला कोर्ट ने पूर्व 2019 के आदेश को पलटते हुए इस जमीन को वक्फ की संपत्ति मानने से साफ इनकार करते हुए निगम का मालिकाना हक पाया और डिक्री करने के भी आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि ताजिए ठंडे होने और मोर्हरम वहां होने भर से संपत्ति वक्फ की नहीं होती है।
महापौर की रही अहम भूमिका
महापौर पुष्यमित्र भार्गव इस जमीन के लिए लंबे समय से लगे हुए थे और इस मामले में उन्होंने ही अपील लगवाई थी और खुद व्यक्तिगत तौर पर भी जमीन की लड़ाई की कानूनी लड़ाई के लिए विविध केस का अध्ययन किया। वकीलों के साथ बैठक कर मजबूती से इसका पक्ष कोर्ट के सामने रखवाया। निगमायुक्त शिवम वर्मा के साथ पूरी टीम के द्वारा मजबूती से इसमें सभी तथ्य जुटाए गए।
निगम ने यह तथ्य रखे थे
जिला कोर्ट न्यायाधीश नरसिंह बघेल ने यह फैसला सुनाया। इसमें नगर निगम याचिकाकर्ता था और प्रतिवादी पक्ष में कर्बला कमेटी और वक्फ बोर्ड था। इसमें निगम का कहना था कि यह जमीन नगर निगम एक्ट 1956 की धारा 82 के तहत हमारी है क्योंकी पूर्व के 1909 एक्ट और बाद में बने एक्ट में भी प्रावधान है कि निगम क्षेत्र की सभी खुली जमीन जो शासन के या किसी व्यक्ति के नाम नहीं वह निगम की होती है। वहीं, निगम के रिकॉर्ड में सर्वे नंबर 17017 में निगम की बंजर जमीन के रूप में और राजस्व रिकॉर्ड के सर्वे नंबर 1041 में यह जमीन चरनोई के रूप में दर्ज है। निगम ने ही यहां पर धोबी घाट बनवाया है, जिसका वह किराया लेता है और साथ ही यहां पर कर्बला मैदान के लिए साल में तीन दिन की मंजूरी भी निगम द्वारा दी जाती है। यहां पर 1979 से कब्जे का प्रयास हो रहा है। कर्बला कमेटी को केवल 0.02 एकड़ जमीन पर ताजिए ठंडे करने के लिए जमीन दी गई।
वक्फ कमेटी और कर्बला कमेटी का यह दावा था
कमेटी का कहना था कि यह संपत्ति 1984 में वक्फ की घोषित हो गई थी, गजट नोटिफिकेशन भी हो गया था। यहां 150 साल से कर्बला मैदान पर मेला लगता है और ताजिए ठंडे किए जाते हैं। होलकर के समय से यहां यह धार्मिक गतिविधि की जा रही है।
इस आधार पर कोर्ट ने निगम की मानी
- वक्फ कमेटी के गजट नोटिफिकेशन पर 1991 में आपत्ति कोर्ट में लग चुकी है, तत्तकालीन कलेक्टर के पास मामला आने पर तहसीलदार से आदेश भी जारी हुए। वक्फ का मुख्य अंश होता है दान दिया जाना, वह इस जमीन को लेकर नहीं है। महाराज ने किसी तरह का पट्टा, दानपत्र नहीं दिया था।
- निगम एक्ट की धारा 82 खुली जमीन निगम को देती है।
- केवल ताजिए ठंडे करने मोर्हरम के लिए जमीन मिलने से जमीन वक्फ की नहीं हो जाती है।
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