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देश में 2 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने वाली है। जिसका असर देश के 17 लाख आदिवासी परिवारों पर पड़ेगा। यह सुनवाई न केवल आदिवासियों के अधिकारों से जुड़ी है, बल्कि उनकी संस्कृति और पहचान की रक्षा से भी संबंधित है। इस सुनवाई का विषय वन अधिकार अधिनियम 2006 और आदिवासियों के वन क्षेत्रों पर अधिकार को लेकर है। इस फैसले से देशभर के लाखों आदिवासी परिवारों का भविष्य तय हो सकता है।
2 अप्रैल को होने वाली सुनवाई
साल 2020 में वाइल्ड लाइफ फर्स्ट नामक संस्था ने एक याचिका दायर की थी। वन अनुसंधान संस्थान (FRI) के नियमों और सामुदायिक अधिकारों को पूरी तरह से खारिज करने की मांग की गई थी। अब, 2 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई होने वाली है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि FRI के नियमों की वैधता पर क्या निर्णय लिया जाएगा, और क्या आदिवासी समुदायों की बेदखली पर कोई स्थायी रोक लगेगी या नहीं। यह सुनवाई आदिवासी समुदायों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका सीधा असर उनके अधिकारों और उनके अस्तित्व पर पड़ेगा।
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एनजीओ और सेवानिवृत्त अधिकारियों का विरोध
2008 में कुछ गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और सेवानिवृत्त अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें वन अधिकार अधिनियम को पूरी तरह से गलत और अवैध बताया गया था। उनका कहना था कि आदिवासियों और वन क्षेत्रों में रहने वालों का वनों पर कोई वास्तविक अधिकार नहीं है और उन्हें वनों से हटाना चाहिए। इस याचिका ने सरकार और आदिवासी समुदायों के बीच एक विवाद खड़ा कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट का स्टे आदेश
2019 के फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों की बेदखली पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। यह आदेश तब आया जब देशभर से इस फैसले के खिलाफ आवाजें उठने लगीं। आदिवासी समुदाय के समर्थक संगठनों और लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी और अपनी आवाज उठाई। इस स्टे के बाद आदिवासी परिवारों को कुछ राहत मिली, लेकिन मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
2015-16 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया था कि आदिवासियों की बेदखली को लेकर सभी मामलों को एक साथ सुना जाए। इसके बाद 13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आदिवासियों और वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जंगलों से बेदखल किया जाए। यह आदेश कई आदिवासी परिवारों के लिए संकट का कारण बना, और देशभर में इस आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
वन अधिकार अधिनियम 2006
2006 में कांग्रेस सरकार ने एक ऐतिहासिक वन अधिकार अधिनियम को पारित किया था। इस कानून के तहत आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक वनों पर अधिकार देने की बात कही गई थी। इसके तहत ग्राम सभाओं को अधिकार मिला कि वे वनों में रहने वाले आदिवासियों को अधिकार प्रदान करें और उन्हें वन पट्टों पर अधिकार दें। यह कानून आदिवासियों को न्याय और उनके जीवित रहने की संसाधन पर अधिकार प्रदान करता था।
4 बिंदुओं में समझिए पूरी स्टोरी
✅ 2 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुनवाई होने जा रही है, जो आदिवासियों के अधिकारों, उनकी संस्कृति और पहचान की रक्षा से जुड़ी है।
✅ यह सुनवाई वन अधिकार अधिनियम 2006 और आदिवासियों के वन क्षेत्रों पर अधिकार के संबंध में होगी, जिसका असर देश के 17 लाख आदिवासी परिवारों पर पड़ेगा।
✅ 2020 में वाइल्ड लाइफ फर्स्ट नामक संस्था ने नियमों और सामुदायिक अधिकारों को खारिज करने की मांग करते हुए SC में एक याचिका दायर की थी।
✅ फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों की बेदखली पर रोक लगा दी थी। यह आदेश तब आया जब आदिवासी समुदाय और उनके समर्थकों ने इस फैसले का विरोध किया।