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उज्जैन महाकाल मंदिर में आम और वीआईपी भक्तों को लेकर हो रहे भेदभाव को लेकर हाईकोर्ट इंदौर में लगी याचिका खारिज हो गई है। इस मामले में हाईकोर्ट ने वीआईपी किसे माने या नहीं माने इसे लेकर अहम टिप्पणी भी की है। साथ ही कहा कि वीआईपी किसे माना जाए यह सक्षम अधिकारी (उज्जैन महाकाल मंदिर के मामले में कलेक्टर) के विवेक पर निर्भर है।
हाईकोर्ट ने यह दिया पूरा आदेश
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि- मंदिर के गर्भगृह में अतिविशिष्ट व्यक्ति ही प्रवेश कर सकता है। महाकालेश्वर मंदिर के प्रशासक (कलेक्टर) की राय में कौन अतिविशिष्ट कौन है इसका फैसला रिट याचिका के जरिए नहीं हो सकता है। यह पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर निर्भर है।
किसी व्यक्ति की स्थिति को देखते हुए किसी विशेष दिन, कलेक्टर उसे भगवान को जल चढ़ाने के उद्देश्य से वीआईपी मानने के लिए सक्षम प्राधिकारी होगा। वीआईपी व्यक्तियों की प्रबंध समिति द्वारा कोई स्थाई सूची या प्रोटोकाल प्रकाशित नहीं हुई है। इसलिए रिट से यह तय नहीं हो सकता है किसी विशेष दिन आने वाले व्यक्तियों में से कौन वीआईपी होगा।
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वीआईपी को कहीं परिभाषित नहीं किया गया है
हाईकोर्ट जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी ने आदेश में यह भी कहा कि किसी भी वैधानिक अधिनियम या नियम में वीआईपी को परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को जिसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा गर्भगृह के अंदर प्रवेश करने के मंजूरी दी जाती है, उसे किसी विशेष दिन और समय पर वीआईपी माना जा सकता है। यह व्यवस्था भारत के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है। ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से व्यथित है, इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है।
यह थी याचिका
हाईकोर्ट में 18 अगस्त को इंदौर निवासी याचिकाकर्ता दर्पण अवस्थी ने वकील चर्चित शास्त्री के माध्यम से जनहित याचिका दाखिल की थी। एडवोकेट शास्त्री ने तर्क दिया था कि दूर-दराज से आने वाले आम श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता। जबकि नेता पुत्रों, सराफा एसोसिएशन अध्यक्ष और कई लोगों को वीवीआईपी मानकर गर्भगृह में प्रवेश दिया जाता है। आम भक्तों को भी गर्भगृह में प्रवेश दिया जाए। इस पर सुनवाई के बाद मामला सुरक्षित रख लिया गया था।
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