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उज्जैन में साधु-संतों के बीच आपसी मतभेद और राजनीति तेज हो गई है। लंबे समय से चल रहे मतभेद अब खुले विवाद में बदल गए हैं। जिसके बाद पूरे ढांचे में बड़ा बदलाव दिखा।
शहर में चर्चा है कि इस बार सिंहस्थ सिर्फ आस्था का मेला नहीं रहेगा, बल्कि अखाड़ों की ताकत दिखाने का मैदान भी बनेगा। इसी पृष्ठभूमि में नए अखाड़ा परिषद का गठन बड़ा कदम माना जा रहा है।
इन पांच प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला | |
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कैसे टूटा पुराना स्थानीय अखाड़ा परिषद
रविवार को शिप्रा तट पर दत्त अखाड़े में साधु-संतों की आपात बैठक बुलाई गई। इस बैठक में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी और महामंत्री हरि गिरि मौजूद थे।
बैठक में स्थानीय अखाड़ा परिषद को भंग करने का प्रस्ताव रखा गया, जिस पर सहमति बनी। इसके बाद महामंत्री महंत रामेश्वर गिरी, उपाध्यक्ष आनंदपुरी और प्रवक्ता महंत श्याम गिरी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
उज्जैन में क्यों बनी रामादल अखाड़ा परिषद
स्थानीय परिषद भंग होने के तुरंत बाद वैष्णव अखाड़ों के महंतों ने अलग बैठक की। यह बैठक मंगलनाथ रोड स्थित श्री पंच रामानंदीय निर्मोही अखाड़े में हुई, जिसमें कई प्रमुख महंत शामिल थे। यहां तय हुआ कि वैष्णव अखाड़ा विवाद के बावजूद, वैष्णव अखाड़े अपना अलग मंच बनाएंगे। जिसे ‘रामादल अखाड़ा परिषद’ नाम दिया गया। संतों का तर्क है कि उनकी परंपरा और प्राथमिकताएं अलग हैं, इसलिए अलग प्रतिनिधित्व जरूरी है।
नई परिषद में किसको क्या जिम्मेदारी
रामादल अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर महंत रामेश्वरदास को चुना गया है। परिषद में कई वरिष्ठ संतों को अलग-अलग जिम्मेदारी देकर मजबूत टीम खड़ी की गई है।
संरक्षक के रूप में मुनि क्षरणदास, अर्जुनदास और खाकी अखाड़ा महंत भगवानदास के नाम तय किए गए हैं। उपाध्यक्ष पद पर महंत काशीदास, रामचंद्रदास, दिगंबर अखाड़ा और हरिहर रसिक खेड़ापति जिम्मेदारी संभालेंगे।
जबकि महेशदास और राघवेंदास को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। मंत्री पद पर बलरामदास, और महामंत्री के रूप में चरणदास व महंत दिग्विजयदास को जगह दी गई है।
शैव अखाड़ों से दूरी, क्या मतलब है?
रामादल अखाड़ा परिषद से जुड़े संत साफ कह रहे हैं कि उनका शैव अखाड़ों से अब कोई संबंध नहीं रहेगा। परिषद के संरक्षक भगवानदास के अनुसार वे पहले की तरह काम तो करेंगे, लेकिन शैव परंपरा से अलग राह पर।
इसका मतलब है कि उज्जैन में अखाड़ों की राजनीति अब दो ध्रुवों में बंटती दिख रही है। आगे सिंहस्थ की हर बड़ी तैयारी में वैष्णव पक्ष अपनी स्वतंत्र भूमिका पर जोर देगा।
सिंहस्थ 2028 की तैयारी पर क्या असर
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी का कहना है कि प्रशासन अक्सर यह नहीं समझ पाता कि स्थानीय स्तर पर किससे बात की जाए। इसी भ्रम को खत्म करने के लिए पुराने स्थानीय परिषद को भंग करने का फैसला हुआ।
अब सिंहस्थ से जुड़े कामों पर प्रशासन के सामने दो अलग मंच होंगे। रामादल अखाड़ा परिषद का दावा है कि सिंहस्थ की तैयारियों पर उनकी बात अलग से सुनी जाए।
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संतों की अंदरूनी राजनीति की कहानी
शैव और वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों के बीच मतभेद कोई नई बात नहीं है। बताया जाता है कि पिछले कई वर्षों से कुंभ और सिंहस्थ के दौरान वरीयता, प्रक्रिया और व्यवस्था को लेकर खींचतान चलती रही है।
इस बार मतभेद इतना बढ़ा कि पूरे ढांचे की पुनर्रचना करनी पड़ी। रामादल अखाड़ा परिषद का गठन उसी असंतोष का औपचारिक रूप माना जा रहा है।
आम श्रद्धालुओं के लिए क्यों मायने रखता है मामला
आम भक्त के लिए अखाड़ों की राजनीति दूर की बात लग सकती है, लेकिन असर सीधा दर्शन पर पड़ता है। अखाड़ों की आपसी सहमति से ही शाही स्नान, शोभायात्रा और कई धार्मिक कार्यक्रम तय होते हैं।
अगर समन्वय में दिक्कत रही तो व्यवस्थाएं प्रभावित हो सकती हैं, भीड़ प्रबंधन से लेकर आवागमन तक चुनौतियां बढ़ेंगी। इसलिए प्रशासन भी चाहता है कि प्रतिनिधित्व स्पष्ट रहे और बातचीत सीधी हो।
आगे क्या, पंजीकरण और औपचारिकता
संतों ने साफ किया है कि रामादल अखाड़ा परिषद का पंजीकरण जल्द पूरा किया जाएगा। पंजीकरण के बाद परिषद कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त संस्था के रूप में सामने आएगी।
इसके बाद सिंहस्थ से जुड़ी समितियों, बैठकों और सरकारी पत्राचार में इसी नाम से प्रतिनिधित्व होगा। आने वाले महीनों में परिषद अपनी कार्ययोजना और कार्यक्रम भी तय करेगी।
उज्जैन के धार्मिक भूगोल पर बदलता असर
उज्जैन वैसे ही महाकाल और अखाड़ों की परंपरा से पहचान बनाता है। अब नए परिषद की वजह से शहर में वैष्णव अखाड़ों का अलग नेटवर्क और प्रभाव रेखा दिख सकती है।
स्थानीय स्तर पर यह बदलाव मंदिरों, आश्रमों और धार्मिक आयोजनों की राजनीति में भी झलक सकता है। सिंहस्थ के दौरान कौन कहां डेरा डालेगा और किसे कितनी जगह मिलेगी, यह भी फिर से तय हो सकता है।
किन स्रोतों पर आधारित है खबर
यह खबर उज्जैन से प्रकाशित मूल रिपोर्ट और अखाड़ा परिषद से जुड़े संतों के बयानों पर आधारित है। सिंहस्थ 2028 की आधिकारिक तैयारियों और परिषद संरचना से जुड़ी जानकारी भी इन्हीं स्रोतों से ली गई है, जिनका पूरा सम्मान किया गया है।
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