रूसी योगिनी ने उज्जैन में की जलधारा तपस्या, 21 दिन ठंडे पानी से किया स्नान

उज्जैन में रूस की योगिनी अन्नपूर्णा नाथ ने 21 दिवसीय कठिन जलधारा तपस्या पूरी की। इस तपस्या नरसिंह घाट स्थित शनि मंदिर में की गई। जहां योगिनी अन्नपूर्णा नाथ ने जनकल्याण और विश्व शांति के लिए विशेष संकल्प लिया।

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Vikram Jain
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Ujjain Russian Yogini 21 day hard penance
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UJJAIN. बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन एक बार फिर विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान की साक्षी बनी। रूस की योगिनी अन्नपूर्णा नाथ ने नरसिंह घाट स्थित शनि मंदिर में 21 दिवसीय कठिन जलधारा तपस्या पूरी कर जनकल्याण और विश्व शांति के लिए विशेष संकल्प लिया। यह तपस्या 7 जनवरी से 27 जनवरी तक चली, जिसमें प्रतिदिन शीतकाल में 108 मटकों से ठंडे जल की धारा में स्नान कर साधना की गई।

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श्री पंचनाम दश अखाड़ा के महंत वेदपुरी नागा महाराज ने बताया कि यह विशेष तपस्या उज्जैन में दूसरी बार आयोजित की गई। यह अनुष्ठान मुख्य रूप से हरियाणा में प्रचलित कठिन तपस्वी साधना का रूप है, जिसमें साधक गहन एकाग्रता और संकल्प के साथ अपने शरीर और मन को कठोर तपस्या में समर्पित करते हैं।

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योगिनी अन्नपूर्णा नाथ की आध्यात्मिक यात्रा

सर्दियों के मौसम में जलधारा तपस्या कठिन मानी जाती है, क्योंकि इसमें ठंडे पानी से स्नान कर मनोबल और आत्मिक शक्ति की परीक्षा होती है। इस प्रकार की साधना तन और मन को शुद्ध कर आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करती है, जिससे साधक उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर सकते हैं।

आपको बता दें कि योगिनी अन्नपूर्णा नाथ वर्तमान में भारत के 52 शक्तिपीठों की यात्रा पर हैं। उनका उद्देश्य भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में गहराई से समर्पित होकर सिद्धि प्राप्त करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग व साधना को प्रचारित करना है।

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तपस्या समापन पर हवन-पूजन और भंडारा

तपस्या के समापन पर विशेष हवन, पूजन एवं भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस अवसर पर बाल योगी दीपक नाथ, औघड़ पीर अंकुश नाथ, पीर गणपति नाथ, बाल योगी जयनाथ सहित अनेक संत-महात्माओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कर योगिनी अन्नपूर्णा नाथ का अभिनंदन किया।

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भारतीय संस्कृति की महिमा का अंतरराष्ट्रीय प्रसार

यह आयोजन न केवल भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं की महानता को दर्शाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय साधना पद्धतियों के प्रति बढ़ते आकर्षण का भी प्रमाण है। रूस की योगिनी द्वारा इस कठिन साधना का संपन्न करना यह सिद्ध करता है कि भारतीय संत परंपरा न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी गहरी श्रद्धा और सम्मान प्राप्त कर रही है।

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