महाकाल लोक की तकिया मस्जिद तोड़ने को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, खारिज की ये अपील

उज्जैन के महाकाल लोक परिसर में तकिया मस्जिद को तोड़े जाने के मामले में हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि नमाज किसी भी स्थान पर अदा की जा सकती है।

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Sourabh Bhatnagar
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उज्जैन स्थित महाकाल लोक परिसर में तकिया मस्जिद के तोड़े जाने के बाद मामला अदालत में पहुंच गया था। हाल ही में Madhya Pradesh High Court की इंदौर बेंच ने इस मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया। 

कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए मस्जिद को फिर से बनाने के संबंध में दायर की गई अपील को अस्वीकार कर दिया। इस फैसले को जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की बेंच ने सुनाया।

मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी, वक्फ की संपत्ति

याचिकाकर्ता मोहम्मद तैयब और कुछ अन्य लोगों ने इस मामले में हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। उनका कहना था कि तकिया मस्जिद लगभग 200 साल पुरानी है और यह जमीन वक्फ (मप्र वक्फ बोर्ड) की संपत्ति है। इस आधार पर उन्होंने यह तर्क प्रस्तुत किया कि सरकार को इस मस्जिद को तोड़ने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि यह वक्फ संपत्ति थी। याचिकाकर्ताओं ने मस्जिद को फिर से बनाए जाने की मांग की और साथ ही इस कार्रवाई में शामिल अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग भी की।

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  1. मस्जिद का तोड़ा जाना: उज्जैन महाकाल लोक परिसर में तकिया मस्जिद को तोड़ा गया, मामला कोर्ट में पहुंचा।

  2. याचिका का खारिज होना: हाईकोर्ट ने मस्जिद फिर से बनाने की अपील खारिज कर दी।

  3. वक्फ संपत्ति का दावा: याचिकाकर्ता ने मस्जिद को वक्फ संपत्ति बताया और तोड़ने पर आपत्ति जताई।

  4. सरकारी पक्ष: सरकार ने कहा कि जमीन कानूनी रूप से ली गई थी और मुआवजा दिया गया था।

  5. नमाज पर कोर्ट का निर्णय: कोर्ट ने कहा कि नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है, इसलिए याचिका खारिज की गई।

मस्जिद की जमीन कानूनी तरीके से ली

सरकार की ओर से वकील आनंद सोनी ने अदालत में यह बताया कि मस्जिद (Takiya Masjid ujjain) की जमीन को कानूनी तरीके से लिया गया था और इसके बदले में उचित मुआवजा भी दिया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि अब यह जमीन सरकार के कब्जे में है। इसके अलावा, वक्फ बोर्ड ने इस मामले को लेकर भोपाल के वक्फ ट्रिब्यूनल में भी केस दायर किया था। सरकार ने इस मामले में अपनी पूरी कानूनी प्रक्रिया को सही ठहराया।

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नमाज कहीं भी अदा की जा सकती

उच्च न्यायालय ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास मस्जिद को फिर से बनाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार किसी विशेष स्थल से जुड़ा नहीं है। नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है। अदालत ने निचली अदालत के आदेश को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया।

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