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बता दें कि यूनेस्को की टीम सोमवार को ग्वालियर स्थित सरोद घर का दौरा करेगी, जहां उस्ताद अमजद अली खान सरोद वादन भी करेंगे। उन्होंने ग्वालियर में संगीत के प्रति घटती रुचि पर चिंता जताई और कहा कि यहां राजनीति का प्रभाव संगीत से अधिक है।
सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान की नाराजगी
सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने तानसेन शताब्दी समारोह में आमंत्रण न मिलने पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार से उन्होंने मिलने का समय मांगा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उस्ताद अमजद अली खान ने कहा, "मुझे देशभर में प्यार और सम्मान मिला, लेकिन मेरे अपने प्रदेश में ही मुझे नजरअंदाज किया गया। तानसेन शताब्दी समारोह में मुझे आमंत्रित नहीं किया गया, जिससे मेरा मन दुखी है।"
ग्वालियर के सरोद घर का ऐतिहासिक महत्व
ग्वालियर स्थित सरोद घर का ऐतिहासिक महत्व है। यह उस्ताद अमजद अली खान के पूर्वजों की विरासत है, जहां उनके पिता और दादा ने भी संगीत सीखा था। उन्होंने कहा, "इस सरोद घर को फकीरों का टीला कहिए। मेरे वालिद, उनके वालिद और फिर मैंने इसी आंगन में संगीत सीखा। बिस्मिल्ला खान साहब से लेकर पं. भीमसेन जोशी तक यहां बैठ चुके हैं।"
यूनेस्को टीम करेगी सरोद घर का भ्रमण
सोमवार को यूनेस्को की एक टीम ग्वालियर के सरोद घर का दौरा करेगी। इस दौरान, उस्ताद अमजद अली खान खुद सरोद वादन करेंगे और टीम को इस ऐतिहासिक स्थल का महत्व बताएंगे।
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ग्वालियर में संगीत के प्रति घटती रुचि पर चिंता
ग्वालियर को संगीत की भूमि कहा जाता है, लेकिन आज यहां के लोग राजनीति में अधिक रुचि लेते हैं। उस्ताद अमजद अली खान ने चिंता जाहिर करते हुए कहा, "संगीत एक अंधेरी गुफा की तरह है। इसमें 100 लोग प्रवेश करें तो सिर्फ 4-5 लोगों को ही उजाला दिखता है। आज के युवा इसे करियर के लिए जोखिम भरा मानते हैं।"
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संगीत से शिक्षा से दूरी पर बोले उस्ताद
उन्होंने यह भी बताया कि कैसे उनके पिता ने उन्हें संगीत के लिए स्कूल छोड़ने की सलाह दी थी। "जब सिंधिया स्कूल के प्राचार्य ने मेरे अब्बू से मुझे स्कूल में दाखिला दिलाने को कहा, तो उन्होंने कहा- अगर ये पढ़ेगा, तो सरोद कौन बजाएगा?" उन्होंने सिर्फ पांचवीं तक की पढ़ाई की और फिर संगीत को अपना जीवन बना लिया।
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