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रवि अवस्थी,भोपाल।
आए दिन विवादों में रहने वाले उच्च शिक्षा विभाग का एक और अनोखा कारनामा सामने आया। विभाग ने अनेक गंभीर शिकायतों से घिरे महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को खुद अपनी जांच कर सात दिन में रिपोर्ट तलब की है। इससे भी हैरत की बात यह कि विश्वविद्यालय ने सरकार के इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं दी।
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को लेकर उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों की दरियादिली किसी से छिपी नहीं है। इसी क्रम में विभाग ने अपनी मेहरबानी का एक और नमूना दिखाते हुए,विश्वविद्यालय के खिलाफ हुई शिकायतों की जांच करने का जिम्मा इसी संस्थान को सौंप दिया है। विभाग के अवर सचिव वीरेन सिंह भलावी के हस्ताक्षर से गत 29 अगस्त को इस आशय का एक पत्र जारी हुआ। इसमें जांच प्रतिवेदन सात दिन में विभाग को भेजे जाने के निर्देश दिए गए हैं।
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विश्वविद्यालय ने आदेश को हवा में उड़ाया
सूत्रों के अनुसार,विश्वविद्यालय ने विभाग के इस आदेश को एक तरह से हवा में उड़ा दिया। नतीजतन,एक सप्ताह तो दूर की बात,करीब 15 दिन गुजरने के बाद भी विभाग को कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी गई। विभागीय अधिकारी अब संस्थान को रिमाइंडर भेजने की बात कह रहे हैं।
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आदेश को लेकर अफसर ही गफलत में
आरोपी संस्था से ही उसकी जांच कराए जाने के सवाल पर विभाग के अवर सचिव वीरेन सिंह भलावी ने कहा कि उन्हें जो ऊपर से अनुमोदित आदेश मिला,उसी आधार पर विश्वविद्यालय से जांच प्रतिवेदन मांगा गया। वहीं,विभाग के ओएसडी डॉ अनिल पाठक कहते हैं,जांच प्रतिवेदन क्यों मांगेंगे? शिकायत पर संस्थान का पक्ष मांगा गया है,लेकिन जब उन्हें विभागीय आदेश दिखाया गया तो वह चुप्पी साध गए।
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शिकायतकर्ता को किया नजरअंदाज
इधर,विश्वविद्यालय के खिलाफ राजभवन समेत विभिन्न स्तरों पर शिकायत करने वाले सागर के सुधाकर सिंह का कहना है कि वह तो स्वयं विभाग के इस निर्णय से हैरत में हैं। इसमें जिसके खिलाफ आरोप उसे ही जांच सौंप दी गई। दूसरी ओर मुझे केवल इसकी सूचना दी गई,जबकि जांच के दौरान शिकायत से जुड़े सभी बिंदुओं पर साक्ष्य उपलब्ध कराने का आग्रह वह कर चुके हैं,लेकिन इस मामले में एक पक्षीय कार्यवाही हो रही है। इससे वह निराश हैं।
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विधानसभा में भी लग चुके हैं आरोप
बता दें कि महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को लेकर राज्य विधानसभा में भी सवाल उठते रहे हैं। इनमें विश्वविद्यालय की कार्यशैली को लेकर सवालिया निशान भी लगाए गए। जवाब में सदन में गलत जानकारियां देने,समय पर सालाना प्रतिवेदन पेश नहीं होने,विद्यार्थियों की संख्या के भ्रमपूर्ण आंकड़े,संस्थान के शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर भी विरोधाभासी तथ्य पेश किए जाने जैसे मामले शामिल हैं। (कटनी,जबलपुर,भोपाल)